
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए, यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र के सबसे अंधकारमय काल में हुआ, जब लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित थे और न्याय व्यवस्था तक पहुंच संभव नहीं थी।
धनखड़ ने लोकतंत्र के मंदिरों, संसद और विधानसभाओं की गरिमा पर भी चिंता जताई और कहा कि इन संस्थानों का अपवित्रीकरण नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवधानों के कारण लोकतंत्र की यह पवित्र भूमि आज संकट में है। धनखड़ ने कहा कि यह विचारणीय है कि हम भारत के लोग के नाम पर संविधान की आत्मा में परिवर्तन तब किया गया जब वे लोग स्वयं स्वतंत्र नहीं थे।
The founding fathers of the Constitution thought it befittingly wise to give us the Preamble. No country's Preamble has undergone change — except Bharat.
But devastatingly, this change was effected for Bharat at a time when people were virtually enslaved, during the 22 months of… pic.twitter.com/HWtKbepI04
— Vice-President of India (@VPIndia) June 28, 2025
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक केसों- केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) और गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका ने भी प्रस्तावना को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना है। उन्होंने भीमराव अंबेडकर के योगदान को याद करते हुए कहा कि वे राजनेता नहीं, बल्कि राष्ट्रपुरुष और एक महामानव थे।
इस अवसर पर धनखड़ ने कहा कि प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और इसका परिवर्तन उस आत्मा को ठेस पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि भारत को छोड़कर किसी भी देश की संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हुआ। क्योंकि प्रस्तावना एक मूल, अपरिवर्तनीय आधार होती है, लेकिन भारत में इसे उस समय बदला गया, जब देश आपातकाल के अंधकार में था।