
जयपुर। जयपुर नगर निगम हैरिटेज की निलंबित मेयर मुनेश गुर्जर के तीसरे निलंबन मामले में गुरुवार को हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। जस्टिस अनूप ढंड ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया है। मुनेश गुर्जर की ओर से सीनियर एडवोकेट अशोक मेहता ने कहा कि इस मामले में नैसर्गिक न्याय की अवधारणा की पालना नहीं की गई। निलंबन से पहले सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।
सरकार जनप्रतिनिधि के साथ कर्मचारियों के समान व्यवहार नहीं कर सकती है। यह जनता के प्रतिनिधि है। इन्हें पद से हटाने से पहले पूरी प्रक्रिया को अपनाना जरूरी हैं। लेकिन मामले में सरकार ने एकतरफा कार्रवाई की हैं। सरकार का निर्णय पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित हैं। सरकार की ओर से कहा गया कि हमने निलंबन से पहले सुनवाई का पूरा मौका दिया था। नोटिस दिए गए थे, लेकिन इनका जवाब सही नहीं पाया गया। निलंबित मेयर के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। इसलिए निलंबन सर्वथा उचित है।
दो जांच अधिकारी किए नियुक्तः
मुनेश की ओर से कहा गया कि मामले में राज्य सरकार ने दो-दो जांच अधिकारी नियुक्त कर दिए। एक जांच अधिकारी का कोई भी लेटर नहीं मिला। दूसरे जांच अधिकारी का जो लेटर मिला। उस पर कोई दस्तखत नहीं थे। सुनवाई के लिए दी गई तारीख पर सार्वजनिक अवकाश था। सरकार को स्थिति स्पष्टीकरण का पत्र लिखने के दूसरे ही दिन निलंबित कर दिया। पूरी प्रक्रिया में उन्हें किसी भी स्तर पर सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
13 महीने के कार्यकाल में तीन बार निलंबनः
मेयर मुनेश गुर्जर का कार्यकाल करीब 13 महीने का रहा। 13 महीने के कार्यकाल में राज्य सरकार ने उन्हें तीन बार निलंबित किया। पहली बार तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पांच अगस्त, 2023 और 22 सितंबर, 2023 को निलंबित किया था। इन दोनों निलंबन आदेश हाईकोर्ट ने रद्द हो गए थे । वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी होने के आधार पर उन्हें 23 सितंबर, 2024 निलंबित कर दिया था।
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