
समझने वाले शीर्षक पढते ही समझ गए होंगे कि उसमें से क्या टपक ‘रिया है। गिरफ्ता के आगे ‘र और उसके आगे ‘रिया जोड़ दें तो अर्थ-मायने बदलते नजर आएंगे। हमें अर्थ से कोई मतलब नही है। हमारा उस मायने से ना कोई साबका पड़ा है, ना पडऩे वाला है। उस जोड़ा-जोड़ी को हरफों में उतारें तो बनेगा-‘गिरफ्तारिया और अगर ‘या पर बिन्दी लगा दें तो बनेगा गिरफ्तारी का बहुवचन ‘गिरफ्तारियां। पर शीर्षक में गिरफ्तारी के साथ-साथ उससे भी पीछा- छूटने के आसार जिस की बांग खबरिया चैनल्स पिछले करीब पौने तीन महिने से लगा ‘रिया है।
हमें नहीं लगता कि अब और ज्यादा पत्ते खोलने की जरूरत है। इशारा शीर्षक मे ही कर दिया गया था उसके बा द कलम का रूख-टपक ‘रिया की ओर किया। उम्मीद थी कि दूसरे दौर में बाकी बचे लोग समझ जाएंगे। पहले दौर में कोई समझा तो ठीक नही समझा तो ठीक। दूसरे चरण में कई लोग समझ गए होंगे, हो सकता है फिर भी कोई रह गया हो तो उसके लिए ‘बांग लगा ‘रिया का विकल्प खोला। बाद तो लोगबाग यकीनन समझ गए होंगे कि हथाईबाज क्या कहना चाहते हैं। हो सकता है-इतनी मगजमारी के बावजूद कोई रह गया हो, तो भाई उनके लिए सारे पत्ते खोलने पडेंग़े। कारण ये कि उनकी जिज्ञासा शांत करना हमारा फर्ज है।
हथाई पे केवल सवाल नही सुलगाए जाते वरन उनके जवाब भी परोसे जाते हैं। वहां जिज्ञासाएं की जोत जगाई जाती है तो जिज्ञासाएं शांत भी की जाती है। हम दावे के साथ कह सकते है कि ‘रिया-रिया की ओर इशारा करने के बाद हर जागरूक नागरिक समझ गया होगा कि कौन क्या कहना चाहता है। इसका मतलब ये नही कि तुमने आपी-आपी समझ लिया तो आगे समझाने की हमारी जिम्मेदारी खल्लास। ऐसा नही है। समझा तो ठीक-नही समझें तो समझ-समझ के समझो, समझना भी एक समझ है।
इस जुमले को हथाईबाज पहले भी कई दफे याद कर चुके हैं। याद रखना और करना अच्छी बात है। इस पर बड़े-सयाने कहते है कि अच्छा-अच्छा याद रखो। अच्छा-अच्छा सोचो। अच्छा-अच्छा करो। अच्छा-अच्छा बोलो। अच्छा-अच्छा सुनो। हमें बचपन में गाय पर लिखा लेख आज भी याद है। हमे मेरा गांव पर लिखा लेख आज भी याद है। लिख भी लेंगे- बोल भी सकते हैं। लिखाई भी धड़ाधड़ और रटाई भी कंठस्थ। हमने समझ-समझ के समझो का रट्टा मारा तो कौन सा गुनाह हो गया। रट्टा मारना कानूनी अपराध तो नहीं, न ही ऐसा करने से आईपीसी की कोई धारा लगती हैं। माट्साब ने जो रट्टे मरवाए थे, उन्ही पे चल कर हम एक जागरूक नागरिक बने। कभी-कभार रट्टे आफत भी खड़े कर देते हैं। कान पका देते हैं। खीज पैदा कर देते हैं। रट्टा ढंग का हो तो मारने मे कोई हर्ज नहीं, यहां तो सारे के सारे खबरिया चैनल्स रट्टों पे उतर गए। सुबह से लेकर शाम तक। शाम से लगा कर रात तक घंटे-दो घंटे तो पचा लेवें, यहां तो चौंबीसों कलाक एक ही रट्टा। पिछले करीब पौने तीन माह से एक रट्टा। एक ही सुर। एक ही राग। इस चैनल पे रिया। उस चैनल पे रिया। जहां देखो वहां रिया मानो रिया-रिया ना होकर विश्व की बहुत बड़ी तोप हो गई हो।
हमें नही लगता कि अब किसी प्रकार की साफगोई पेश करने की जरूरत है। हथाईबाजों ने पिछले दिनों-‘बंद करो ये राग रिया शीर्षक से छपी हथाई में सारे पत्ते खोल दिए थे। ताश की एक नही पांच-पच्चीस जोडि़एं खोल दी थी। उसमें भी पिछले दिनों से चल रहे राग रिया पर जोरदार लानत भेजी गई थी। रिया देश की इतनी बड़ी हस्ती नही है जो उसका रट्टा रात-दिन मारा जाए, पर खबरियों को कौन समझाए। समझाए तो भी समझे कौन। देश और देशवासी फिल्म अभिनेता सुशांतसिंह राजपूत की मौत के बाद से खबरिया चैनल्स पर राग रिया सुन रहे है। गत 14 जून की रात सुशांत का शव उसके मुंबई स्थित फ्लैट के एक कमरे में फांसी के फंदे पर लटका पाया गया। कोई उसे हत्या तो कोई उसे आत्महत्या बता रहा है। अभिनेत्री रिया चक्रवती सुशांत की गर्लफ्रेंड थी और उसके साथ लिव इन में रह रही थी। सुशांत प्रकरण के करीब एक हफ्ते पहले उसने उसका घर छोड़ दिया था। इस प्रकरण में रिया और उसके परिजनों को संदिग्ध माना जा रहा है। फिलहाल सीबीआई मामले की जांच कर रही है।
देश और देशवासी तब से इलेक्ट्रोनिक मीडिया पे ‘रिया..रिया.. सुन रहे है। सारे के सारे चैनल्स उसी के पीछे। वो कहां है। घर से कब निकलेगी। उससे किसने पूछताछ की। कित्ती देर की। नशे के कारोबार से उसका क्या संबंध है। वो क्या खा रही है। क्या पी रही है। कौनसी कार मे सवार है। हर चैनल की पूरी टीम रिया के पीछे फांफूं करती दिखी। अब नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो ने उसे ड्रग्स केस में गिरफ्तार कर लिया। उसका भाई और दो-तीन और लोग इस मामले में पकड़े जा चुके हैं। हथाईबाजों के अनुसार अब या तो रिया-रिया थम जाएगा या फिर ड्रग से निकल कर फिर सुशांत की मौत के चारों तरफ घूमेगा लगेगा फिलहाल तो गिरफ्ता ‘रिया।