नेट-थियेट पर भवाई का रंग जमा

कला साधना का रचनात्मक स्वरूप है: रूपसिंह शेखावत

जयपुर। लोकनृत्य भवाई के प्रख्यात कलाकार गुरु रूपसिंह शेखावत ने कहा कि कला किसी की बपौती नही बल्कि यह साधना और नियमित अभ्यास से ही निखरती है और अपने रचनात्मक स्वरूप से लोगों का मनोरंजन करती हैं। शेखावत शनिवार की शाम नेट-थियेट पर वरिष्ठ रंगकर्मी ईश्वर दत्त माथुर से लोक कलाकार और लोक डाउन में कलाकारों की स्थिति पर चर्चा कर कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि पारिवारिक विरोध के बाद भी उन्होंने अपनी कला यात्रा जारी रखी। लाकडाऊन सकारात्मक बताते हुए उन्होंने कहा कि कलाकारों के लिये रियाज करने का यह अच्छा मौका रहा, वे अपनी कला को खूब तराशे। इस अवसर पर उनके शिष्य आशीष रूप मनोहर ने भवाई नृत्य की प्रस्तुति से दर्शकों को बांधे रखा द्य भवाई नृत्य की प्रस्तुति कथक से शुरू कर लोकगीत रुपयों तो लेर मैं दर्जिडा क गई थी से शुरुआत की।

Net-theat के राजेन्द्र शर्मा राजू ने बताया राजस्थान की लोक गीतों के माध्यम से अपनी भवाई की प्रस्तुति में उन्होंने गिलास , तलवार, परात और कांच के टुकड़ों पर भवाई नृत्य की आकर्षक प्रस्तुति से नेट-थियेट के दर्शकों के बीच अपनी पहचान स्थापित की प्रस्तुति इतनी आकर्षित रही की लोग तालियां बजाकर कलाकार का उत्साहवर्धन कर रहे थे। प्रकाश एवम संगीत विष्णु कुमार जांगिड़ तथा मंच सज्जा मनोज स्वामी जितेन्द्र, भव्य तिवाड़ी और अंकित शर्मा नोनू की थी।