
वाकई में कौन जीतेगा। सच्ची-मुच्ची में कौन जीतेगा यह वोटों की गिनती के बाद पता चलेगा। खुल जा इवीएम… और इवीएम खुल कर फैसला सुना देगी दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी। उधर सत्तुजी नाई भाई भी शान से कहेंगे… ले, बाल गिन ले। पर उनको कौन समझाए जिन्होंने जोड़-बाकी निकाल के खुद को विजेता घोषित कर दिया। समर्थकों ने भी लहरियां उछाल दी…”बोले रे भाई बम… जीत गए हम… चित कर के पुट मारा है..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, कई बार हो चुका है। हर चुनाव में ऐसा ही होता है, भले वो कोई सा चुनाव हो। हम बातें भले ही ऊंची-ऊंची करें मगर सच्चाई इससे पलट है। हम बात करते हैं कौम-जमात-जातिवाद से ऊपर उठके काम करने की मगर ऐसा होता नहीं है। सियासत में तो कौम-कुनबावाद कूट-कूट के भरा है। जिस क्षेत्र में जिस जात के ज्यादा वोट उसी के नुमाइंदे को टिकट। पहलीपोत इक्का-दुक्का पारटियां इस रंग में रंगी हुई थी, अब तो सभी दल जातिवाद के कुंड में डुबकियां लगा रहे है। कई स्थानों पर मुख्य मुकाबला एक ही जात के दो उम्मीदवारों के बीच। ऐसे में वो अन्य जातियों के वोटर्स को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करते हैं।
प्रत्याशियों और सियासत अलियों का अपना चुनावी गणित है। ये लोग इस गणित-बीज गणित से ऊपर ही नहीं उठ पातें। नगर निगम चुनावों का पहला दौर निपटने के बाद हथाईबाजों ने कई क्षेत्रों में यह टोटका चलते देखा। रात को भाई लोग वोटर लिस्ट और डायरी-पेन के साथ हिसाब-किताब करते दिख गए। जैसा नजारा जयपुर हेरिटेज में दिखाई दिया वैसे ही नजारे जोधपुर और उत्तर निगम क्षेत्र में नजर आए। इत्ते वोट इस कौम के उत्ते उस जमात के। उतने इस जाति के इतने उस समाज के। ब्राह्मण इतने। माली इतने। राजपूत इतने। इतने कायस्थ। मान लो इतने वोट अगली पार्टी को मिल गए। उतने वोट फलां निर्दलीय और इत्तने ढीमका निर्दलीय ले जाएगा। पीछे बचे इतने इसका मतलब अपनी जीत पक्की। जाति-बिरादरी का जोड़ गणित निकलते ही जीत गए हम…की सुर लहरियां शुरू। कई उत्साहित प्रत्याशियों ने तो विजयी जुलूस भी निकाल लिए।
इस गुणा-भाग में नाई अंकल… नाई अंकल वाली कहावत का भी तड़का। अभी तो वहां भी कयास की बयार चल रही होगी। वोटों की गिनती वाले दिन वो भी कह देंगे कि आजा गिन ले। इसका मतलब ये नहीं कि कोई बाल गिनने को बैठ जाएगा। बैठ भी जाएं तो गिनने वालों के सात पुश्तों को कामयाबी नहीं मिल सकती। यह तो कहावत भर है जो अरसों से कही जा रही है और बरसों तक कही जाएगी। मूल कहावत है-”नाई-भाई…नाई-भाई बाल कितने। इसके जवाब में नाई भाई कहते हैं-”थावस रखो.. अभी सामने आ जाएंगे।ÓÓ कहावत के अंदर की बात करे तो बाल कटकर सामने गिरते दिख जाएंगे, मगर गिनना दुश्वार। नाई भाई का संदेश हमें धैर्य-धीरज रखने की सीख देता है। कहावत से बाहर आकर देखे तो भतेरे लोग आपा खोते मिल जाएंगे। आपे के बाहर जाते दिख जाएंगे। ना किसी में धैर्य ना धीरज। ना किसी में सहनशीलता ना सहनशक्ति। उनका बस चले तो तवे पर रखी रोटी खा लें। पलटने और तवे से नीचे उतार कर चुपडऩे का भी इंतजार नहीं।
हथाईबाजों का कहना है कि ऐसा होना नया नहीं है। धैर्य-धीरजवानों की पीढ़ी लगभग समाप्त हो गई। जो हैं उनकी संख्या अंगुलियों पर गिने जितनी। देश भर में ऐसे सौ-पचास लोग बिराजे भी होंगे तो हाशिए पर। नीली छतरी वाले के साथ-साथ वो भी संसार और इंसान के गिरगिटपने पर ”धमीडे ले रहे होंगे। संत-सुजानों ने संकटकाल में जिन को परखने की बात कही, उस में ”धीरज भी एक महत्वपूर्ण खांप है मगर उनकी सीख को जीवन में उतारने वाला कोई नहीं। हमें सुबह की परीक्षा का परिणाम दोपहर तक चाहिए। नो दिखाई। नो बात पक्की। नो अन्य कोई सामाजिक रस्मों का निर्वहन। चट मंगनी परसादी। फेरे लेने से दस मिनट पहले सगाई कर ली और निभ गई रस्म। सगाई भी जरूरी नहीं है। डायरेक्ट शादी। जब शादी करनी है तो बाकी के चोंचले क्यूं। वो भूल जाते है कि जब शादी रचानी है तो सारे गीत गाने पडेंगे।
हथाईबाज देख रहे है कि कौम जमात के वोटों की गणित-बीज गणित निकालने में जुटे लोग भी गीतों से परहेज करते दिख रहे हैं। उन्होंने इवीएम के स्ट्रांग रूम में पहुंचने से पहले ही खुद को विजेता घोषित कर दिया। भाईसेण भूल गए कि अभी पहले दौर के वोट पड़े है। दूसरे दौर के एक नवंबर को पडऩे हैं। उतावले लोग वहां भी यही गीत गाते दिख जाएंगे। वो भूल गए कि हार-जीत का फैसला वोटों की गिनती के बाद होगा। टेंट-तंबू में बैठकर हिसाब-किताब करने के कोई मायने नहीं। इसके बावजूद कोई ”जीत गए हम… बोलो रे भाई बम… के नारे लगाए तो लगाए।