नेपाल में सियासत संकट में : आंतरिक कलह से भंग हुई संसद, पार्टी टूटने के करीब

प्रधानमंत्री केपी ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा संसद भंग करने के बाद नेपाल में सियासी संकट गहरा गया है। ओली ने इस संबंध में सोमवार को देश को संबोधित करते हुए कहा कि देश और पार्टी हित में उन्होंंने ये कदम उठाया है। प्रचण्ड और माधव कुमार नेपाल पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी के भीतर अंदरुनी संघर्ष ने संसद को शर्मिंदा किया है। वहीं, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सहअध्यक्ष प्रचंड ने बयान जारी कर ओली के इस फैसले को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, निरंकुश और पीछे ले जाने वाला बताया है।

जानकारों के मुताबिक संसद भंग होने और हालिया राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर की अन्तर्कलह है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के साल 2018 में एकीकरण के बाद केपी ओली को प्रधानमंत्री चुना गया था।

सीपीएन (माओवादी) के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड एकीकृत पार्टी के सहअध्यक्ष बने थे। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के एकीकरण के दौरान एक गुप्त समझौता हुआ। समझौते में कहा गया था कि ओली ढाई साल तक प्रधानमंत्री रहेंगे और फिर प्रचंड प्रधानमंत्री होंगे। इसके अलावा, प्रचंड चाहते थे कि प्रधानमंत्री ओली हर मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले सरकार के साथ समन्वय करें। हालांकि, ओली ने प्रचंड के साथ समन्वय नहीं किया।

बदली परिस्थितियों में ओली और प्रचंड ने पिछले साल नवंबर में सहमति जताई कि ओली पूरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने रहेंगे और प्रचंड कार्यकारी शक्तियों के साथ पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे। लेकिन प्रचंड ने हमेशा शिकायत की कि उन्हें कार्यकारी शक्ति नहीं मिली। ओली शिकायत करते रहे कि उन्हें कभी प्रचंड से कोई मदद नहीं मिली।

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