दर्शकों ने जेकेके में राजस्थान पर आधारित ‘रज़ा की पेंटिंग्स’ की बारीकियों को समझा

जवाहर कला केंद्र (जेकेके) और द रजा फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा आयोजित किए जा रहे ‘रजा पर्व-2021’ के तहत रविवार को जेकेके के रंगायन में सेमिनार का आयोजन किया गया। यह सेमिनार श्री रज़ा द्वारा राजस्थान पर बनाए उनके चित्रों के विशेष संदर्भ पर आधारित था। कार्यक्रम में सभी प्रख्यात पैनलिस्ट्स ने एस.एच. रज़ा की कला शैली के साथ राजस्थान शीर्षक पर आधारित उनके चित्रों पर प्रकाश डाला।

सेमिनार में उपस्थित वक्ताओं में कुलपति, हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर, श्री ओम थानवी; कवि और लेखक, श्री उदयन वाजपेयी; कलाकार, श्री अखिलेश; कला इतिहासकार और कला समीक्षक, डॉ गीती सेन और आर्ट क्यूरेटर, जेसल ठाकर शामिल थीं। इस अवसर पर रज़ा फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री अशोक वाजपेयी भी उपस्थित थे।

ओम थानवी ने कहा कि सेमिनार का उद्देश्य राजस्थान के साथ रज़ा के संबंधों को सामने लाना है। उनके काम की यह एक विशेषता है कि इसमें यह स्पष्ट नहीं रहता कि उन्होंने क्या चित्रित किया है। वे दर्शकों पर छोड़ देते थे, ताकि वे अपने स्वयं की नजरों से समझ सके कि पेंटिंग क्या दर्शाती है।

अशोक वाजपेयी ने कहा कि प्रकृति ने श्री रजा के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके लिए प्रकृति का आरंभिक अनुभव सुंदरता और रात के भय के बीच युद्ध था। उन्होंने प्रकृति की सुंदरता से रात के इस डर पर काबू पाया। वे हमेशा से युवा कलाकारों के साथ जुड़ने और उन्हें सहयोग करने में रुचि रखते थे।

अखिलेश ने कहा कि रज़ा की पेंटिंग्स कभी भी प्रतीकात्मक नहीं रही हैं। उनकी पेंटिंग्स विशेष रूप से रचना के संदर्भ में लघु चित्रों से भी प्रेरित हैं।वे रंग के व्यवहार को इतनी अच्छी तरह समझते थे। जब भी वे लाल रंग का इस्तेमाल करते थे तो वह सुंदरता की बात थी, डर की नहीं।

उदयन वाजपेयी ने कहा कि दुनिया में 2 प्रकार की पेंटिंग्स की जा रही हैं, जिसमें एक प्रतीकात्मक और दूसरी जिसका कलाकार या उसके परिवेश से कोई संबंध नहीं है। रजा ने अपने चित्रों के माध्यम से लोगों को एक नया राजस्थान तोहफे में दिया, उन्होंने रंगों के माध्यम से राजस्थान के लिए अपना प्रेम जाहिर किया। राजस्थान को भावनाओं के रूप में उन्होंने अपने चित्रों में रंगों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

जेसल ठाकर ने कहा कि रज़ा की पेंटिंग्स में, परिदृश्य को प्रेम और लालसा, हावभाव, गति, चमक, मूड, उत्सव और प्रतीकवाद के रूप में दिखाया गया है। इसी के साथ ही, गीती सेन ने कहा कि रज़ा के चित्र राजस्थान के भौगोलिक परिदृश्य को नहीं, बल्कि वे ऐसे मूड को प्रदर्शित करते हैं जो राजस्थान के रूपक को उजागर करते हैं।

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