पर्युषण पर्व से आत्मा को मिलती है अच्छी खुराक : महाश्रमण

महाश्रमण
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तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का आध्यात्मिक शुभारम्भ

370 क्षेत्र और 1300 से अधिक संभागियों को आचार्य ने प्रेम, सौहार्द और एकता की दी प्रेरणा

छापर (चूरू)। छापर मे चतुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण के ज्ञान प्रकाश से छापर की फिजा तो बदली ही थी। शनिवार को जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में आयोजित तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश-विदेश के लगभग 370 क्षेत्रों के 1300 से अधिक प्रतिनिधि छापर में अपने आराध्य के सान्निध्य में पहुंचे तो चतुर्मास प्रवास स्थल पूरी तरह जनाकीर्ण बन गया।

मंगलपाठ का श्रवण किया

अपने गुरु के प्रति आस्था व विश्वास लेकर पहुंचे महासभा के पदाधिकारियों व सभा/उपसभाओं के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन के शुभारम्भ के संदर्भ में प्रात: 8.15 बजे आचार्यश्री के प्रवास कक्ष में ही उपस्थित होकर आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण किया तो वहीं मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री की अमृतवाणी से भी लाभान्वित हुए। आचार्यश्री ने भगवती सूत्राधारित अपने प्रवचन, कालूयशोविलास के उपरान्त उपस्थित संभागियों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘संघे शक्ति कलियुगेÓ का मंत्र प्रदान किया।

श्रावकों के लिए पाक्षिक प्रतिक्रमण का विधान

आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण पंडाल में आचार्यश्री ने उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं को भगवती सूत्राधारित अपने मंगल प्रवचन से पावन पाथेय प्रदान करते भगवान महावीर और भगवान पार्श्वनाथ के काल की व्यवस्थाओं में कुछ अंतरों का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान पाश्र्वनाथ के समय में चार महाव्रत थे और भगवान महावीर के समय में ब्रह्मचर्य सहित पांच महाव्रत थे। प्रतिक्रमण तो साधुओं को सुबह-शाम करनी अनिवार्य है तो श्रावकों के लिए पाक्षिक प्रतिक्रमण करने का विधान है।

प्रतिदिन प्रतिक्रमण करें

पर्युषण के समय तो श्रावकों को भी प्राय: प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने का प्रयास करना चाहिए। संवत्सरी तो मानों उसका शिखर दिन है। पर्युषण पर्व धर्माराधना की दृष्टि से इतना महत्त्वपूर्ण है कि मानों पूरे वर्ष भर के लिए उससे आत्मा को खुराक प्राप्त हो जाती है। इस धर्माराधना का अच्छा आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाया।

कलियुग में संघ में शक्ति बताई गई है

आज के कार्यक्रम में तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के पदाधिकारियों तथा उपस्थित समस्त प्रतिनिधियों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ‘संघे शक्ति कलियुगेÓ कलियुग में संघ में शक्ति बताई गई है। किसी समाज या संस्था के बहुत से लोग एक साथ होते हैं तो एक शक्ति की बात होती है। तेरापंथ समाज में अनेक संस्थाएं हैं, किन्तु जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा तेरापंथ की रीढ़ की तरह महत्त्वपूर्ण है।

महासभा के रूप में निखार आया

महासभा और सभा/उपसभाओं में तो मानों मां-बेटी का संबंध है जो एक-दूसरे की सार-संभाल आत्मीयता के साथ कर सकती है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि जैसा मेरा आकलन पहले से था, महासभा के रूप में निखार आया है। कालूगणी की जन्मधरा पर इस सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। परम पूज्य कालूगणी के समय में ही इसकी स्थापना मान लें। सभी सभाएं व उपसभाएं अपने क्षेत्र की प्रतिनिधि संस्था होती है। साधु, साध्वियों, समणियों, उपासकों आदि की क्षेत्रों में अच्छी सार-संभाल का प्रयास हो। इस त्रिदिवसीय सम्मेलन से अच्छी प्रेरणा और अच्छी ऊर्जा प्राप्त करने का प्रयास हो। परस्पर खूब सौहार्द और एकता का भाव बना रहे। संगठन की मजबूती, सेवा और कल्याण के काम हो।

धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे

खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथी सभा संचालन मार्गदर्शिकाÓ पुस्तक के विषय में फरमाते हुए कहा कि यदि प्रतिनिधिगण इस पुस्तिका को पढ़ लें तो उनकी बहुत सारी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमारजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने महासभा के विभिन्न कार्यक्रमों आदि की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन महासभा के महामंत्री विनोद बैद ने किया।

इसके पूर्व प्रात:काल आचार्यश्री से मंगलपाठ श्रवण के पश्चात प्रवचन पंडाल शुभारम्भ सत्र के आयोजन में सभा गीत का संगान हुआ। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने सम्मेलन के शुभारम्भ की घोषणा की व श्रावक निष्ठापत्र का वाचन किया। महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमार ने संभागियों को उत्प्रेरित किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचन्द नाहटा, तेरापंथी सभा-छापर के अध्यक्ष विजयसिंह सेठिया व महासभा के आंचलिक प्रभारी व सम्मेलन व्यवस्था संयोजक श्री नरेन्द्र नाहटा ने अपना स्वागत वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन महासभा के महामंत्री विनोद बैद ने किया।

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