
ब्लैक गोल्ड ! काला सोना ! यानी अफीम । जिसका नाम लेते ही न केवल पुलिस बल्कि प्रशासन, सरकार संगठन और देश, सभी चौकन्ने हो जाते हैं। अपनी गतिविधियों में ऐसी तेजी ला देते हैं, जैसे कोई बहुत बड़ा खतरा सामने आ गया हो । इतिहास गवाह है कि एक ओर जहां अफीम और इसके उप उत्पादों के कारण आज तक न केवल अनेक सम्राटों तख्त-ताज बदल गए, वहीं अनेक राजनेता और व्यवसायिक भी लिप्तता के कारण विवादों में रहे हैं। इसी अफीम ने कई देशों की भावी पीढी को बर्बाद कर दिया। वहीं, दूसरी ओर इसका उपयोग जीवनदायिनी औषधियों में होने के कारण अब तक असंख्य मरणासन्न लोगों को नया जीवन भी मिलता रहा है।
भारत में सबसे ज्यादा उत्पादन

ब्लेक गौल्ड यानी काला सोना जो की अफीम पदार्थ के पर्यायवाची नाम से विख्यात है। इसी अफीम की विश्व में भारत से अस्सी प्रतिशत से अधिक मांग की आपूर्ति की जाती है। अर्थात सम्पूर्ण दुनियां में सर्वाधिक अफीम उत्पादनकर्ता के रूप मे आज भी भारत देश ही प्रमुख है। अफीम के पौधे की कई प्रजातियां होती हैं, जिसमें कोर्न पोस्ट, आइसलैण्ड पोस्त, अल्पाइन पोस्त, पापावर, केलीफोर्निया, प्रिंकली, होण्ड, ब्रेक्टीऐटम, अर्गामन, मेकनोपसीज, पापावर, सोम्नीफोरम, आदि प्रमुख हैं, जिसमें अन्तिम तीन किस्में हमारे देश में पायी जाती हैं।
चार-पांच फीट ऊंचा होता है अफीम का पौधा

अफीम में प्राथमिक अल्कोलाईडस के रूप में रोहडीन, कोडामीन, नारकोटिन,ग्लोस्कोपीन, जान्टालीन सूडोमार्फिन, प्रोटोपीन, हाइड्रो कारानीन, लोडोनीडीन, लोडानोसीन, माफिन कोडिन, थीवेन, पापावरीन, मकोडीन अल्कालाइडस होते हैं, जिसमें भारत में बनाए जाने वाले अल्पकोलाइडस अन्तिम पांच है। अफीम का पौधा चार से पांच फीट की ऊंचाई लिए होता है, जिस पर फूल आते हैं जो खेतों मे दूरी से देखने पर गुलाब के फूलों की खेती का आभास कराते हैं। यही फूल परिपक्व होने पर बाद में फल बन जाता है, जिसे डोडा कहते है। इसी डोडे पर चीरा लगाने से जो दूध निकलता है, उसे अफीम कहते हैं। इसी तरल दूध को सुखाकर बाद में केक का रूप देकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दवा निर्माताओं को बेच दिया जाता है। कृषकों को अफीम की खेती से लेकर उसके उम्पादन को सीधे क्रय करने का एकाधिकार नारकोटिकस विभाग के पास है, जो संकलित अफीम को पूरी सुरक्षा के साथ देश के अफीम संशोधन केन्द्रों के लिए जो कि नीमच (मध्य प्रदेश) तथा गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) स्थित कारखाना में भेज दिया जाता है, जहां इसे सुखाकर बेचने के लिए केक का रूप दे दिया जाता है।
भारत देश आज 80 प्रतिशत से अधिक अफीम की विश्व मांग की पूर्ति कर रहा है अर्थात दुनियां में सर्वाधिक अफीम उत्पादक कर्ता के रूप में भी अपना नाम अग्रणी बनाए हुए हैं। एक अनुमान के आधार पर करीब एक हजार टन से अधिक अफीम का उत्पादक वार्षिक रूप से भारत में होता है, जिसकी खरीद केवल सरकार के द्वारा ही की जाती है। सरकार के द्वारा लाइसेंस के आधार पर इस अफीम का वितरण औषध निर्माता कम्पनियों के देने के बाद शेष बची अफीम का उपयोग विश्व व्यापार में निर्यात कर किया जाता है। अफीम निर्यात से प्रत्येक वर्ष लगभग दस अरब से भी अधिक विदेशी मुद्रा मिलती है। यह भी एक अनुमान है कि देश में अफीम उत्पादक जो कि इसका उत्पादन लाइसेन्स के आधार पर करते है और वे उन्हे निर्धारित अफीम उत्पादन का हिस्सा सरकार के नारकोटिक्स विभाग को दे देने के बाद शेष बची अफीम को चोरी चुपके तस्करों के हवाले कर देते हैं, ताकि उन्हें तस्करों से सरकार के मुकाबले कई गुणा अधिक राशि मिल सके, जिसे बाद में तस्कर अफीम में गुड़, मावा, शक्कर, बोर्नवीटा आदि मिला कर उसका वजन बड़ा कर और उसकी गंध कम कर नेशेडियों में 50 हजार से 1 लाख रुपए कीलो से अधिक दर से बेच देते है। एक अनुमान के आधार पर अफीम उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन काले बाजार में चोरी चुपके तस्करों को बेच दी जाती हैं।
अफीम का पौधा भी पूरा उपयोगी होता है। इसकी फसल के हरे पत्तों को जिन्हें मालवी भाषा में आलणी कहते है, को अलग कर उन्हें सुखा लिया जाता है, जिनका वर्ष भर सब्जी बनाने के काम में लिया जाता है। इन पत्तों पानी में भीगोकर पालक की सब्जी की तरह सब्जी बनाई जाती है जो कि पेट से सम्बन्धित बिमारियों के लिये बहुत उपयोगी होती है। वहीं इस पोधें के फल, को जिसें डोडा कहा जाता है, के अन्दर बीज होता है, जिसे खस कहा जाता है। खस का उपयोग सर्दी में गरम और गर्मी में ठंडी तासीर होने के कारण सर्दी में इसके बीजो को याने की खस को पीस कर हलवा बनाने व गर्मी में इसको पीस कर ठंडाई के रूप में तथा सब्जियों और मिठाई को बनाने के उपयोग में लिया जाता हैं।