महादेव के शीश पर इसलिए धारण है चंद्रमा

महादेव के शीश पर चंद्र
महादेव के शीश पर चंद्र

देवों के देव महादेव, भगवान शिव अपने शीश पर चंद्र धारण किए हुए हैं. उनके जिस भी रूप को देखें, उनके मस्तक पर चंद्रमा नजर आते हैं. आखिर ऐसा क्?यों है? शिवजी ने क्?यों चंद्र को अपने शीश पर धारण किया? पौराणिक कथाओं में इस प्रसंग को लेकर काफी कुछ कहा गया है. एक कहानी शिवपुराण में इस प्रकार है। समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष का स्वयं शिव ने पान किया था, ताकि सृष्टि की रक्षा हो सके. विष उनके कंठ में जमा हो गया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए. कहा जाता है कि विषपान के प्रभाव से उनका शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था. तब चंद्र आदि देवताओं ने प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें, ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे क्?योंकि श्वेत चंद्रमा बेहद शीतल हैं और उनसे सृष्टि को शीतलता प्रदान होती है, इसलिए शिवजी ने उन्?हें अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

कथा

महादेव के शीश पर चंद्र
महादेव के शीश पर चंद्र

सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में असुरों के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। स्वर्ग नरेश इंद्र भी भयभीत हो उठे। उस समय देवी-देवता और ऋषि-मुनि सभी जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचें। उन्हें स्थिति से अवगत कराया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों की मदद से समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने की सलाह दी। साथ ही भगवान विष्णु ने कहा- समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत का पान करने से आप सभी देवता अमर हो जाएंगे, लेकिन असुर अमृत पान न करें। अगर कोई असुर अमृत पान कर लेता है, तो वह अमर हो जाएगा। उस समय देवताओं और असुरों ने वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए। इनमें सबसे पहले विष प्राप्त हुआ था।

महादेव के शीश पर चंद्र
महादेव के शीश पर चंद्र

जब समुद्र मंथन से विष प्राप्त हुआ,तो देवताओं और असुरों में हाहाकार मच गया कि कौन विष ग्रहण करेगा? उस समय भगवान शिव ने तीनों लोकों की रक्षा हेतु विषपान किया। विष पान के चलते भगवान शिव के गले में जलन होने लगा। उनका शरीर तपने लगा। यह देख देवी-देवता व्याकुल हो उठे। तब देवताओं ने भगवान शिव को अपने शीश पर चंद्रमा धारण करने की सलाह दी। चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है। अत: भगवान शिव ने अपने शीश पर चंद्रमा को धारण किया।

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