लेखक रिटायर्ड आयकर अधिकारी ने राजस्थानी भाषा में लिखी इनकम टैक्स पर किताब

राजेंद्र सिंह राजपुरोहित
राजेंद्र सिंह राजपुरोहित

बोले-असंभव को संभव कर दिखाया, तीन साल लिख रहे हैं पुस्तक

जयपुर। इनकम टैक्स को राजस्थानी भाषा में आवकलाग कहते हैं। जबकि टैक्सपेयर या आयकरदाता को लागदेणार कहा जाता है। व्यापार से जुड़े पुराने लोग शायद इसका सही उत्तर दे दें। लेकिन, आज की पीढ़ी के अधिकतर युवाओं को नहीं पता कि इनकम टैक्स व टैक्सपेयर को राजस्थानी में क्या कहेंगे। राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने को लेकर आंदोलन चल रहे हैं। तर्क दिया जाता है कि राजस्थान के हर हिस्से में अलग-अलग तरह की बोलियां बोली जाती हैं। मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी, पंजाबी, राठ, मेवाती, शेखावाटी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती, ब्रज आदि। इसलिए राजकाज (प्रशासनिक काम) राजस्थानी में नहीं हो सकता। तरह-तरह की बोलियां तो तमिलनाडु में भी हैं।

राजेंद्र सिंह राजपुरोहित
राजेंद्र सिंह राजपुरोहित

पूरे तमिलनाडु में एक ही तरह की तमिल नहीं बोली जाती। न गुजरात में एक जैसी गुजराती, न महाराष्ट्र में एक जैसी मराठी, न पंजाब में एक जैसी पंजाबी और न पश्चिम बंगाल में एक जैसी बंगाली। बस, इन राज्यों के पास अपनी अलग लिपि है और अपनी भाषा पर गर्व है। राजस्थान में बच्चा राजस्थानी बोलता है तो परिवार में उसे टोका जाता है। गंवार कहा जाता है।

इनकम टैक्स पर किताब
इनकम टैक्स पर किताब

हिंदी में बात करने की हिदायत दी जाती है। जब हम राजस्थानियों को ही यह यकीन नहीं है कि राजस्थानी भाषा में राजकाज हो सकता है और राजस्थानी बोलने में गर्व महसूस नहीं करते तो कोई क्यों राजस्थानी भाषा को विशेष दर्जा दे? बिल्कुल यही सवाल कौंधता था रिटायर्ड आयकर अधिकारी राजेंद्र सिंह राजपुरोहित के मन में। उन्होंने यह साबित करने के लिए कि प्रशासनिक कामकाज राजस्थानी भाषा में हो सकते हैं, इनकम टैक्स पर पूरी 700 पेज की किताब लिख दी, वह भी राजस्थानी भाषा में। किताब का नाम है आवकलाग अर लागणेदार (इनकम टैक्स एवं टैक्स पेयर्स)

कौन हैं राजेंद्र सिंह राजपुरोहित

राजेंद्र सिंह राजपुरोहित जून 2018 में मुंबई से इनकम टैक्स अपीलीय अधिकरण मेंबर के पद से रिटायर हुए। वर्तमान में वे बॉम्बे हाईकोर्ट में इनकम टैक्स से जुड़े लॉ-पर्सन के रूप में काम कर रहे हैं। मुंबई में ही उनका निवास है। उनकी माता श्रीहरिकंवर थीं व पिता नरसिंह खांडप राजस्थानी के माने हुए साहित्यकार थे। उनकी कई रचनाओं पर बंगाली, तमिल, तेलुगू में फिल्में बन चुकी हैं।

इनकम टैक्स पर किताब
इनकम टैक्स पर किताब

राजेंद्र सिंह का जन्म बाड़मेर के खांडप गांव में हुआ था। दसवीं तक पढ़ाई बाड़मेर में ही की। 11वीं कक्षा से जोधपुर में पढऩा शुरू किया और फिर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से आट्?र्स में यूजी और इतिहास में पीजी किया। दोनों में ही प्रथम स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल अर्जित किया।राजेन्द्र सिंह के दोनों बेटे मुंबई में डॉक्टर हैं। पत्नी सन फार्मा में इंडिया एचआर हेड हैं। इनकम टैक्स अधिकारी के तौर पर वे गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में काम कर चुके हैं। इनकम टैक्स पर लिखी उनकी दो पुस्तकें भारत सरकार के गृह मंत्रालय से पुरस्कृत हैं।

मुंबई और उदयपुर में किताब का विमोचन

राजेंद्र सिंह राजपुरोहित की किताब आवकलाग अर लागदेणार का पहला विमोचन इसी साल मार्च में राजस्थान दिवस के मौके पर मुंबई में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस विनीत कुमार कोठारी ने किया। इसके बाद 18 जून को उदयपुर में हल्दीघाटी युद्ध के 447वें वर्ष के मौके पर मोहनलाल सुखाडिय़ा यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. इंद्रवर्धन त्रिवेदी ने इस किताब का विमोचन किया।

अब बात इनकम टैक्स पर राजस्थानी में लिखी पहली किताब की

राजेंद्र सिंह ने बताया- यह किताब उन लोगों को जवाब है, जो कहते हैं कि राजस्थानी में राजकाज नहीं हो सकता। इसलिए इनकम टैक्स के नियमों पर किताब लिख दी। इसे लोकसभा सांसदों और राजस्थान के सभी विधायकों को भेजूंगा। रिटायर होने के बाद जून 2020 में किताब लिखना शुरू किया था। तीन साल में 1500 रफ पेज तैयार कर लिए। किताब की शक्ल में वह मैटर आया तो 700 पेज हुए। किताब का मूल्य 600 रुपए रखा है। जोधपुर के साइंटिफिक पब्लिशर्स ने इसका प्रकाशन किया है।

इनकम टैक्स शिक्षितों का सब्जेक्ट है। इस किताब की भाषा आम आदमी से लेकर व्यापारी तक को भी आसानी से समझ आएगी। सरल भाषा में इनकम टैक्स नियमों को समझाने के लिए पौराणिक ग्रंथों, रामचरित मानस और लोकोक्तियों का सहारा लिया। राजस्थानी कहावतों को भी शामिल किया है। किताब में टैक्स के इतिहास के बारे में भी बताया है। दाढ़ी पर लगने वाले टैक्स, कुंवारे युवकों पर टैक्स, मारवाड़ में लगने वाले 108 लाग-बाग का भी जिक्र है। टैक्स की भाषा इस तरह समझाई गई है कि किसी बच्चे को मिठाई का एक पीस दें, उसका तीसरा हिस्सा वह खुद खा जाए। यही इनकम टैक्स है।

इसके अलावा टैक्स चोरी, अपराध और सजा के बारे में बताया है। इसका उदाहरण इस तरह दिया है- ककड़ी चुराने वाले को थप्पड़ मारा जाता है, हाथ-पैर नहीं तोड़े जाते। इनकम टैक्स की किताब में 23 अध्याय हैं। इनमें इनकम टैक्स की परिभाषा, मूल सिद्धांत, हानि-लाभ, प्रतिनिधि निर्धारिती, इंटरनेशनल टैक्सेशन, चैरिटेबल ट्रस्ट, हाउस प्रॉपर्टी, कैपिटल गेन, सोर्स इनकम, डिमांड, लॉस, ट्रांसफर प्राइसिंग सहित कई महत्वपूर्ण विषयों और कानूनों के बारे में लिखा गया है।

3 साल में लिखे 1500 पेज

राजेंद्र सिंह ने कहा- किताब को लिखने में 3 साल लगे। शब्दों के चयन और विषय के सभी बिंदु समाहित करने में समय लगा। कोरोना के बाद काम ने गति पकड़ी। इसे टाइप करना भी चुनौती था। क्योंकि हिंदी और अन्य मान्यता वाली भाषाओं में बोलकर लिखा जा सकता है, इसके बहुत सारे अक्षर की-बोर्ड पर नहीं मिलते। हाथ से 1500 पेज लिखे।

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