सरकार ध्यान दे तो, अब जोधपुर का हो कायाकल्प-12

If the government pays attention, now Jodhpur is rejuvenated - 12
If the government pays attention, now Jodhpur is rejuvenated - 12
रमेश कुमार जैन
  • सूर्य नगरी ने तीव्र विकास के सपने संजोए हैं
  • सरकारी रिक्त पदों की समयबद्ध पूर्ति की अहम आवश्यकता
  • रिक्त पदों की बढ़ती खाई- युवाओं के साथ निर्दयी मजाक
  • स्वास्थ्य विभाग के रिक्त पद का जीवन-मरण से सीधा संबंध
  • नियमित रिक्रूटमेंट के लिए एक नीति की आवश्यकता
  • मुख्यमंत्री द्वारा मासिक समीक्षा की गई आरंभपरिणामों का इंतजार

जोधपुर: यदि किसी भी समय किसी भी विभाग की समीक्षा की जाए तो ज्ञात होगा कि उसमें अनेकानेक पद रिक्त हैं और उनके भरने की न कोई चिंता है, न प्राथमिकता और नह ही कोई नीति है।

जोधपुर। सूर्य नगरी ने तीव्र विकास के सपने संजोए है सरकारी रिक्त पदों की समयबद्ध पूर्ति की अहम आवश्यकता यह एक विडंबना है कि जहां युवा बेरोजगार की चिंता और चर्चा प्रतिदिन हो रही है, वहां प्रत्येक सरकारी विभागों में स्थाई रूप से असीमित रिक्तियां चली आ रही हैं। सरकार हर वर्ष भारी संख्या में विभिन्न विभागों में पद सृजन की घोषणा करती है। लेकिन पहले से चली आ रही रिक्तियों व नव सृजित भर्तियों का कभी अंत नहीं होता, कभी समापन नहीं होता है। प्रत्येक सृजित पद चाहे वह कितना भी छोटा हो, जैसे कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, लिपिक, पटवारी, ग्राम सेवक, ड्राइवर, शिक्षक, नर्सिंगकर्मी अथवा लेखाकार, चिकित्सक, प्राध्यापक, प्रशासक जैसे कोई भी उच्च अधिकारी का हो उसका एक बहुत बड़ा महत्व है। प्रत्येक रिक्त पद गुड गवर्नेस व फ्लेगशिप योजनाओं के क्रियान्वयन को दुष्प्रभावित करता है।

यदि किसी भी समय किसी भी विभाग की समीक्षा की जाए तो ज्ञात होगा कि उसमें अनेकानेक पद रिक्त हैं और उनके भरने की न कोई चिंता है, न प्राथमिकता और नह ही कोई नीति है। यहां तक की राजस्थान लोक सेवा आयोग का रिकॉर्ड भी इस संबंध में अच्छा नहीं है। पद भरने की घोषणा करने व पद भरने के समय में बहुत बड़ा अंतराल है। न्यायालयों का हस्तक्षेप भी कई बार विचित्र स्थिति उत्पन्न करता है।

उदाहरणार्थ 30 हजार रिक्त पदों की भर्ती को मात्र 10 अयर्थी द्वारा दायर याचिका अनिश्चितकाल के स्थगन आदेश का कारण बन जाती है। जितना मूलभूत अधिकार इन चंद 10 अभ्यर्थी का है, उतना ही अधिकार बाकी के 30 हजार अभ्यर्थी का रोजगार समय पर पाने का भी है। बिना ‘मालाफाइड’ आधार के मात्र तकनीकी कारणों पर अनिश्चितकालीन स्थगन बेरोजगारों पर भारी कुठाराघात है। स्वास्थ्य विभाग के रिक्त पदों का सर्वाधिक कठोर परिणाम जनता को भुगतना पड़ता है।

हाल ही में कोटा के जे.के. लोन अस्पताल में बड़ी सं या में नवजात शिशुओं के काल कवलित होने को एक बड़ा कारण अस्पताल में डॉक्टर व पैरामेडिक स्टॉफ में कमी का होना है जो जोधपुर में वर्ष 2011 में हुई एक के बाद एक लगभग 25 प्रसूताओं की मौत की याद दिलाती है। उस समय भी यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर हावी रहा था। दिल्ली एवं जयपुर से विशेषज्ञों के दल नेजोधपुर भ्रमण कर संपूर्ण स्थिति का आकलन किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वयं अपने साथ हवाई जहाज में एसएमएस जयपुर के अधीक्षक अशोक पनगडिया को जोधपुर लेकर आए थे।

समस्त जांचों के परिणामों में यह बात स्पष्ट उभरकर सामने आई थी कि चिकित्सकों व नर्सिंग स्टॉफ की कमी भी इस दु:खांतिका का एक मुख्य कारण रहा था। उस समय स्थिति यह थी कि तत्कालीन एम.सी.आई के मानदण्डों से लगभग आधे पद ही अस्पताल में स्वीकृत थे और उन स्वीकृत पदों में से भी लगभग आधे कर्मी ही कार्यरत थे।

धृष्टता यह भी थी कि एक शहर के सरकारी अस्पताल की एमसीआई की मान्यता प्राप्त करने के लिए दूसरे शहर के निष्णात चिकित्सकों को दो दिन के लिए स्थानान्तरण कर दिया जाता था। हम भूल जाते हैं कि सरकारी अस्पताल की किसी भी एक रिक्ती का सीधा असर जनता के जीवन-मरण से संबंधित है। हमारी आंख तब खुलती है जब कहीं सामूहिक मृत्यु की घटना सामने आती है और कुछ दिन बाद ही फिर आंखें मूंद ली जाती है।

आज भी प्रत्येक सरकारी चिकित्सालय में बेशुमार रिक्त पद चल रहे हैं। ऐसी ही परिस्थितियों के चलते व सरकारी लैगशिप योजनाओं की आई बाढ़ को दृष्टिगत रखते तथा सरकारी कार्यालयों में रिक्तता की लाचारी देखते हुए तत्कालीन संभागीय आयुक्त, जोधपुर आर. के. जैन ने दि. 09.08.2012 को राज्य के मुख्य सचिव को एक नीतिगत सुझाव प्रेषित किया था, जो उनके आरपीएससी की सेवा के अनुभव पर आधारित था व आज भी समीचीन है। उस समय अकेले जिला कलक्टर जोधपुर के कार्यालय में कुल मिलाकर 90 रिक्त पद चले आ रहे थे।

उक्त प्रस्ताव में निम्र बिंदुओं का समावेश था
(1)सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी जाए। आज के परिवेश में यह 65 वर्ष किया जाना आवश्यक हो गया है। यह एक बहुप्रचलित भ्रांति है कि सेवानिवृृत्ति की आयु बढ़ाई जाने से बेरोजगार युवकों के लिए अवसर कम हो जाएंगे। केन्द्र सरकार की शिक्षण संस्थाओं में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, लेकिन आज भी प्रत्येक शिक्षण संस्थान में रिक्त पदों की संख्या निरंतर रहती है।

(2)कानून में समुचित संशोधन कर कतिपय पदों को लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर करना उचित होगा। यह आयोग के संसाधन की सीमितता, प्रक्रियागत होने वाले अवश्यभांवी विलंब व आयोग की प्राथमिकताओं के मद्देनजर होने वाली अनाश्यक देरी को दूर करेगा। (कालांतर में राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक कर्मचारी चयन बोर्ड की स्थापना कर लोक सेवा आयेाग का कार्यभार कम किया गया है, यद्यपि यह पर्याप्त नहीं है।)

(3)कई प्रकार के पदों की भर्तियोंं को आयोग एवं बोर्ड की परिधि से बाहर कर रिक्रूटमेंंट प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण करना चाहिए। एक पारदर्शी व्यवस्था के अंतर्गत जिला कलेक्टर, संभागीय आयुक्त, विभागीय अध्यक्ष, तकनीकी विश्वविद्यालय प्रशासन के अधीन समितियों को गठित कर उन्हेंं रिक्रूटमेंट हेतु अधिकृत करना चाहिए।

(4) रिक्रूटमेंट को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दृष्टि से प्रत्येक विभाग को ‘मिशन मोड’ में कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी स्टेज पर कोई लाल फीताशाही (अनावश्यक पत्राचार, रिसीट, डिस्पैच) के कारण विलंब न हो। इस हेतु एक रिक्रूटमेंट सेल का गठन कर एक जि मेदार अधिकारी द्वारा समस्त विभागों में चल रही रिक्रूटमेंट प्रक्रिया की मॉनिटरिंग की जानी चाहिए। हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वयं ने अब तक उपेक्षित ‘रिक्रूटमेंट प्रक्रिया’ को स्वयं प्रतिमाह प्रति विभागवार मॉनिटरिंग करने का निर्णय लिया है। इस बैठक में आरपीएससी को भी आमंत्रित किया जाता है।

आशा की जाती है कि सरकारी कार्यालयों में और विशेषकर सरकारी चिकित्सालयों में कुशल प्रबंधन से रिक्त पदों की नियमित भर्ती की जाएगी ताकि पूर्व में जोधपुर की प्रसूता दु:खांतिका व हाल में कोटा की शिशु दु:खांतिका की पुनरावृत्ति न हो। मुख्यमंत्री जी ने सुशासन व बेरोजगारी की समस्या को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष के बजट में भी पद सृजन की घोषणा की है।

इन सभी विभागों में समय-आबद्ध रिक्रूटमेंट पूरा हो ताकि गुड गवर्नेस आश्वस्त हो सके व सरकारी लैगशिप योजना सही मायने में धरातल पर उतर सके। हाल ही में कोविड महामारीके चलते मुख्यमंत्री ने रिक्त पद भरने की प्रगति की विभागवार समीक्षा की है। यह उनकी बेरोजगारों के प्रति संवेदनशीलता भी दर्शाती है। आशा है कि रिक्त पदों की शीघ्र भर्ती होकर सुशासन आश्वस्त किया जा सकेगा।