
भारतीय जीवनशैली में उपवास को अक्सर धार्मिक आस्था से जोडक़र देखा जाता है। उपवास के दौरान संयमित खाना खाने से स्वास्थय संबंधी लाभों के बारे में समय-समय पर बताया गया है। उपवास के दौरान हमें सीमित समय में खाना खाना होता है, जिस कारण से होने वाले लोभों के बारे में कई बार बात हो चुकी है। इस बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस बारे में अध्ययन किया और पाया कि इंटरमिटेंट फास्टिंग यानी सविराम उपवास से दिमाग की नेचुरल एजिंग प्रोसेस की गति को कम किया जा सकता है। साथ ही, यह लाइफ स्पैन यानी जीवनकाल बढ़ाने में भी मददगार है।

इस अध्ययन से यह समझा गया कि इंटरमिटेंट फास्टिंग के साथ डाइटरी पैटर्न और लिमिटेड कैलोरी खाने को अपनी इटिंग हैबिट में शामिल किया जाए, तो यह स्वास्थय के लिहाज से काफी फायदेमंद हो सकती है। कैलिफोर्निया के बक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की एक टीम, जो एजिंग पर रिसर्च करती है,ने ओएक्सआर1 नाम के जीन की भूमिका की पहचान की, जो सीमित और संयमित आहार की मदद से लाइफ स्पैन बढ़ाने और दिमाग की नेचुरल एजिंग की प्रक्रिया पर प्रभाव डालते हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में रिसर्चर्स ने बताया कि ओएक्सआर1 जीन न्यूरोलॉजिकल डिजीज और एजिंग से बचाने वाला एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। इस टीम ने इसके अलावा, एक और विस्तृत सेलुलर सिस्टम का पता लगाया है कि किस तरह सीमित व संयमित आहार, एजिंग की प्रक्रिया को धीमा और न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज की रफ्तार को कम कर सकता है। फ्रूट फ्लाई और ह्युमन सेल्स पर किए गए अध्ययन में एजिंग और उम्र से संबंधित न्यूरोडिजेनेरेटिव डिजीज के संभावित चिकित्सीय लक्षणों की पहचान की गई है।
अध्ययन के नेतृत्वकर्ताओं में से एक भारतीय मूल के विज्ञानी तथा बक इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पंकज कपाही ने बताया कि न्यूरॉन-स्पेसिफिक प्रतिक्रिया की खोज की गई है, जो संयमित आहार की वजह से न्यूरोप्रोटेक्शन में मदद करता है। उनके अनुसार, इंटरमिटेंट फास्टिंग या लिमिटेड कैलोरी जैसे प्रैक्टिस, जिनमें पोषक तत्वों की मात्रा सीमित होती है, इन प्रोटेक्टिव जीन के लेवल को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
रिसर्च टीम ने इस स्टडी के लिए अलग-अलग जेनेटिक बैकग्राउंड वाली लगभग 200 मक्खियों की प्रजाति को स्कैन किया। इन मक्खियों को दो तरह की डाइट में पाला गया, जिनमें एक को सामान्य डाइट और दूसरे को रिस्ट्रिक्टेड डाइट दी गई, जो सामान्य पोषण का केवल 10 प्रतिशत था। उन्होंने पाया कि इंसानों में ओएक्सआर1 जीन के लॉस की वजह से न्यूरोडिजेनेरेटिव डिजीज और समय से पहले मृत्यु होती है। वहीं, चूहों में ओक्सआर1 जीन का बढऩा, एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) के एक माडल में जीवित रहने में सुधार करता है।
न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों से बचाव में होता फायदा, परिक्षणों की एक शृंखला में पाया गया कि ओएक्सआर1, रेट्रोमर नाम के एक कॉम्प्लेक्स को प्रभावित करता है, जो सेलुलर प्रोटीन और फैट्स की रिसाइकिलिंग के लिए आवश्यक होता है। रेट्रोमर डिस्फंक्शन उम्र से संबंधित न्यूरोडिजेनेरेटिव डिजीज से जुड़ा है, लेकिन सीमित और संयमित आहार की मदद से अल्जाइमर और पार्किंसंस डिजीज से रक्षा करने में मदद करता है।
ओएक्सआर1 रेट्रोमर फंक्शन को बचाता है और न्यूरोनल फंक्शन, स्वस्थ मस्तिष्क की एजिंग और सीमित आहार से संबंधित जीवनकाल के विस्तार के लिए आवश्यक है। रिसर्चर विल्सन के मुताबिक, कम खाने से सेल्स में प्रोटीन को ठीक से क्रमबद्ध करने में मदद मिलती है क्योंकि कोशिकाएं ओएक्आर1 के एक्सप्रेशन को बढ़ाता है।
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