सलाह देने की सजा

हमें नहीं पता कि उलटी गंगा वाली कहावत किसने, कब और किस प्रसंग पे घड़ी। अब जान गए कि बंदे में दम था तभी तो उसने धार और धारा को बदलने की कोशिश की। कामयाबी मिलना या ना मिलना दूसरी बात है, कोशिश करना पहली प्राथमिकता। हम पहली या दूसरी सीढी ही नही चढेंगे तो तिपड़े पे कैसे पहुंचेंगे। इसके बारे में कोई राय दे सके तो स्वागत है। कोई सीख दे सके तो तहे दिल से धिनवाद है।

शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। बातें भतेरी है। नही भी हैं तो बनाई जा सकती है। निकाली जा सकती है। ऐसा करने में कोई कलाकारी नही है, ना कौशल विकास की जरूरत है। फर्ज करो कि अगर विश्व स्तर की आईआईटी होती और उसमें बातें बनाने का विशेष विषय होता तो उसमें शर्तिया तौर पर हमारे बच्चे बाजी मारते। उनके अभिभावक भले ही बातों के बलवंत रहे हों पर बच्चे बलवंत के साथ पढाई में भी मीर तभी तो वल्र्ड लेवल की शिक्षण संस्थान में दाखिला मिला। खालीपीली बातों के बादशाह होते तो दिन को प्राइवेट नौकरी और रात को हथाई कर रहे होते।


आप को याद होगा कि हथाईपंथी गाहे-बगाहे सस्तीवाड़े की सूची परोसते रहे हैं। देश में महंगाई का आलम है। आम जरूरत की वस्तुएं जुटाना भी भारी पड़ रहा है। दाल ने थाली का साथ कब का छोड़ दिया और अब साक भी आंखें तरेर रहा है। आए दिन बढते पेटरोल-डीजल के दाम जनता का तेल निकाल रहे है। ये दोनों चीजें महंगी तो हर वस्तु महंगी। आटा महंगा। चावल महंगा। घी-तेल महंगे।

मिर्च-मसाले महंगे। चाय-दूध महंगे। कपड़े लत्ते महंगे। चप्पल-जूते महंगे। शिक्षा और चिकित्सा तो कचूमर निकाल रही है। दोनो सेवा हर परिवार से जुड़ी हुई तभी तो इनके नाम पर गला कटाई हो रही है। ऐसे मौसम में सस्तीवाड़े के बारे में सुनकर बांछे खिल जाती है। चेहरे पर ढाई इंच मुस्कान बिखर जाती है। इसके बारे में पहले भी जानकारी दी जा चुकी। ‘वन्स मोर में पेटरोल खरच होणे वाला नहीं। ना पांडु चालान काटने को दौडेगा। जीएसटी का भी लोचा नहीं।


अपने यहां बातें बड़ी सस्ती है। आप भी बनाइए, अड़ोसी-पड़ोसी से भी बनवाइए। ऐसा करने की भी जरूरत नही। आसपास वाले खुद इसमें पारंगत है। लोगबाग खाए-पीए बगैर रह जाते हैं। भाईसेण हगे-मूते बिना घंटों काट देंगे मगर कहे बिना पांच मिनट भी निकालना मुहाल। जब तक यहां की वहां और वहां की यहां ना कर लें। जब तक बातों पर मिर्च-मसाला ना भुरका लें। जब तक एक फूल का चौसरा ना बना लें, तब तक पेट के मरोड़े शांत नहीं होते। उनके लिए बात सफा तो हर रोग दफा। दूसरी सबसे सस्ती चीज राय। सीख। एडवाइज। सलाह। कोई ना मांगे तो भी देने वाले तैयार। एक फ्री के साथ पांच सलाह ऊपर।


एक जमाने में ‘ऊपर देने की परंपरा थी। सेठजी ऊपर के रूप में नारंगी और चूरण की गोलिएं या-चणे मखाणे और गुड़ का भेळिया दिया करते थे। हम बच्चा लोग उसी दुकान से सौदा-सुल्फा लेने जाते जहां ऊपर मिलता। साक मंडी में मालण मासी या माळी काका कांदे की पुळी-धनिया और हरी मिर्च ऊपर दिया करते। ऊपर देने वाले ऊपर चले गए मगर सलाह-सीख देने वाले ठाठ-बाट से डटे हैं। आप छत पे खड़े होकर चिल्लाइए-मेरे को बुखार चढ गया है, कोई ईलाज बताइए, तो कई डॉक्टरों-हकीमों के जवाब आ जाएंगे। कोई क्या नुस्खा बताएगा। कोई क्या दवा। कोई उकाळी पीने की सलाह देगा तो कोई मादळिया लेने की। इतनी सीख-सलाहें मिल जाएंगी कि रोगी डाफाचूक।


मगर हथाईबाज जिस क्षेत्र की बात करना चाहते हैं वहां सलाह देना मना है। वहां सलाह देने वालों को बागी कहा जाता है। वहां सीख देने वालों के बाल नोंच दिए जाते हैं। वहां राय देने वालों पर ‘गद्दार का टेग टांग दिया जाता है। भाईलोग ‘दोळे हो जाते है,-‘तुम्हारी इतनी हिम्मत कि आका को सलाह दो..। कई लोग इसे उलटी गंगा करार देते हैं। बहाने वालों का इरादा नेक। सलाह नेक मगर मानने वालों का टोटा। उलटे खाने को दौड़ते हैं। मानों सलाह देना गुनाह हो गया हो।


बात कांगरेस की। नई अटंग सलाह की बात करें तो कपिल सिब्बल की। सिब्बल किसी जमाने में कांगरेस के वरिष्ठ नेतों में शुमार थे पिछले दिनों उनने पार्टी आलाकमान को नेक सलाह क्या दे डाली मानो गुनाह कर दिया। राय के बदले वो हाशिए पे आ गए। वही गुनाह उनने बिहार चुनाव और यूपी-एमपी-गुजरात उपचुनाव के नतीजे आने पे कर दिया। कहा-पार्टी को आत्मचिंतन की जरूरत है।

इस पर भी पार्टी आलाकमान के चंगु-मंगु भड़क गए। किसी ने कहा-उन्हें पार्टी मंच पे यह बात उठानी चाहिए-मीडिया में नही जाना चाहिए। अरे यार पार्टी में आला कमान किसी की सुनता कब है जो मामला उठाते। किसी ने कहा-सलाह देने की बजाय कपिल जी को दूसरा घर कर लेना चाहिए। कुल जमा खुद कांगरेसी उनके दुश्मन बन गए। एक हिसाब से यह सलाह देने की सजा ही तो है। ऐसी सजा मिलती रही तो ना आत्मा रहेगी ना चिंतन होगा।