एआई होगा ओवेरियन कैंसर की जांच के लिए कारगर, शुरुआत में ही पहचानेगा लक्षण

ओवेरियन कैंसर
ओवेरियन कैंसर

तेजी से बदलती लाइफस्टाइल की वजह से इन दिनों लोग कई गंभीर समस्याओं का शिकार होते जा रहे हैं। कैंसर इन्हीं गंभीर बीमारी में से एक है, जो किसी को भी अपने चपेट में ले सकता है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा तक साबित हो सकता है। कैंसर के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिन्हें शरीर के अलग-अलग हिस्सों में होने की वजह से उन्हीं नामों से जाना जाता है। ओवेरियन कैंसर इन्हीं में से एक है, जो महिलाओं के लिए एक घातक बीमारी मानी जाती है। हाल ही में अब इसे लेकर एक ताजा स्टडी सामने आई है।

हाल ही में सामने आए इस अध्ययन में ओवेरियन कैंसर के निदान पर रिसर्च की गई। चीन में बड़े पैमाने पर किए गए इस अध्ययन में ओवेरियन कैंसर का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया गया। इस अध्ययन का नतीजा यह था कि एआई मॉडल ने विशेष रूप से शुरुआती चरण में इस कैंसर का सटीक पता लगाने में पहले से मौजूद तरीकों से बेहतर प्रदर्शन किया। आइए जानते हैं इस कैंसर के बारे में कुछ जरूरी बातों के बारे में-

क्या है ओवेरियन कैंसर?

ओवेरियन कैंसर
ओवेरियन कैंसर

क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक ओवेरियन कैंसर तब होता है, जब आपके अंडाशय यानी ओवरी या फैलोपियन ट्यूब में असामान्य सेल्स बढ़ती हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। ओवरी फीमेल रीप्रोडक्टिव सिस्टम का हिस्सा हैं। ये दो गोल, अखरोट के आकार के ऑर्गन होते हैं, जो आपके रीप्रोडक्टिव ईयर के दौरान अंडे बनाते हैं।

ओवेरियन कैंसर के लक्षण क्या हैं?

ओवेरियन कैंसर
ओवेरियन कैंसर

ओवेरियन कैंसर कोई भी लक्षण नजर आने से पहले ही विकसित हो सकता है और यह आपके पूरे पेट में फैल सकता है। इससे इस बीमारी का शुरुआती स्टेज में या जल्दी पता लगाना मुश्किल हो सकता है। ओवेरियन कैंसर के कुछ प्रमुख लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं:-

पेल्विक या पेट में दर्द, बेचैनी या सूजन।
जल्दी पेट भर जाना और भूख कम लगना।
वजाइनल ब्लीडिंग, खासकर पीरियड साइकिल पूरी होने या मेनोपॉज के बाद
पेट से जुड़ी समस्या, जैसे- दस्त या कब्ज।
आपके पेट के आकार बढऩा
बार-बार पेशाब आना

ओवेरियन कैंसर के क्या कारण हैं?

क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक ओवेरियन कैंसर का सटीक कारण अभी तक पता नहीं पाया है। हालांकि, जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, इस कैंसर विकसित होने का खतरा भी बढ़ जाता है। खासकर कुछ लोगों में इसके विकसित होने का जोखिम थोड़ा अधिक होता है।

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