एअर इंडिया ने पांच देशों की उड़ान सेवा बंद करने का लिया फैसला

नई दिल्ली। देश की सरकारी एअर लाइंस एअर इंडिया ने पांच देशों की उड़ान सेवा को भविष्य में बंद करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही इन देशों में ऑफिस को भी बंद कर दिया जाएगा। यह फैसला लगातार हो रहे घाटे के कारण कंपनी ने लिया है। इन देशों में एयरलाइन ने कोपनहेगन (डेनमार्क), मिलान (इटली), स्टॉकहोम (स्वीडन), मैड्रिड (स्पेन) और वियाना (पॉर्चूगल) शामिल हैं।

एयरलाइन इंडस्ट्री की हालत बदतर हो गई है

कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण एयरलाइन इंडस्ट्री की हालत बदतर हो गई है। मौजूदा समय में एयरलाइन इंडस्ट्री जैसे-तैसे रेवेन्यू निकालने में लगी है। एक तिहाई क्षमता के साथ घरेलू फ्लाइट्स चल रही है तो इंटरनेशनल फ्लाइट्स अभी भी बंद हैं।

पहले से ही आर्थिक मंदी से जूझ रही सरकारी कंपनी एअर इंडिया ने पांच यूरोपीय देशों के लिए उड़ान सेवा रोकने का फैसला लिया है। साथ ही वहां स्थित अपने ऑफिस को बंद कर दिए हैं। हालांकि, वंदे भारत मिशन का पांचवां चरण जारी रहेगा। एअर इंडिया के जो कर्मचारी वहां कार्यरत हैं, उन्हें वापस बुलाया जा रहा है।

इन पांच शहरों में बंद हुई ऑफिस

एअर इंडिया ने यात्रियों की संख्या में गिरावट के कारण कम से कम पांच यूरोपीय डेस्टिनेशन के लिए उड़ानों को रोकने का फैसला किया है। इसके पीछे वजह रेवेन्यू में हुए नुकसान को बताया जा रहा है। एयरलाइन ने कोपनहेगन (डेनमार्क), मिलान (इटली), स्टॉकहोम (स्वीडन), मैड्रिड (स्पेन) और वियाना (पॉर्चूगल) में अपनी बुकिंग ऑफिस बंद करने का फैसला किया है। कोरोना से पहले यहां के लिए एअर इंडिया की फ्लाइट जाती थी।

इंडस्ट्री को रिकवर होने में कम से कम 4 साल लगेंगे

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) ने जुलाई में अनुमान लगाया था कि वैश्विक स्तर पर यात्रियों के ट्रैफिक कोरोना से पहले के स्तर पर जाने में कम से कम 4 साल लगेंगे। यानी 2024 से पहले यात्रियों की संख्या बढऩा मुश्किल है। आईएटीए ने कहा था कि 2020 में वैश्विक ट्रेवलर्स की संख्या में 2019 की तुलना में 55 प्रतिशत की गिरावट होने की संभावना है।

एयरलाइन पर करीब 70 हजार करोड़ का भारी कर्ज है

एअर इंडिया गंभीर आर्थिक चुनौती से जूझ रही है। एयरलाइन पर करीब 70 हजार करोड़ का भारी कर्ज है। ऐसे में एयरलाइन अपने ऑपरेशनल कॉस्ट को लगातार घटाने पर फोकस कर रही है। हाल ही में कंपनी ने अपने कर्मचारियों को पांच साल के लिए बिना वेतन के छुट्टी पर भेजने का फैसला लिया था। साथ ही कंपनी ने कर्मचारियों को दी जाने वाली अलाउंस में 50 प्रतिशत की कटौती की थी।