हिंदू धर्म में सबसे पवित्र पेड़ है अक्षयवट, जानिए इसके धार्मिक महत्व और पौराणिक कथा

अक्षयवट
अक्षयवट

इस धरती पर वैसे तो करोड़ों पेड़ हैं, लेकिन कुछ ऐसे पेड़ भी हैं जो हजारों सालों से जीवित हैं। इन पेड़ों के बारे में अद्भुत कहानियां प्रचलित हैं। हिंदू धर्म में पांच वटवृक्षों को विशेष महत्व दिया जाता है। इनमें पंचवट, अक्षयवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट हैं। हालांकि इनकी उम्र के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन माना जाता है कि यह बहुत प्राचीन हैं। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अक्षयवट संगम के तट पर स्थित है। हिंदू धर्म में यह सबसे पवित्र पेड़ों में से एक है। इस वृक्ष को अक्षय इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह अमर है। अक्षयवट का अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से रहा है। धार्मिक मान्यता है कि यह वृक्ष कभी नष्ट नहीं होगा और यह मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको अक्षय वट के धार्मिक महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।

जानिए धार्मिक महत्व

अक्षय वट को मोक्ष का द्वार भी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस वृक्ष के दर्शऩ मात्र से ही मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। त्रिवेणी संगम के तट पर स्थित होने की वजह से तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए यह विशेष महत्व रखता है। माघ मेले और कुंभ मेले के दौरान लाखों-करोड़ों की संख्या में भक्त इस पवित्र वृक्ष के दर्शन करने और परिक्रमा करने आते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक इस वट की पूजा करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है। महाभारत और पुराणों में अक्षयवट को ब्रह्मदेव, विष्णु और महेश द्वारा संरक्षित बताया गया है। इसलिए इस वृक्ष को त्रिदेवों की कृपा का स्थान माना गया है।

पौराणिक कथा

सृष्टि की शुरूआत में महाप्रलय के दौरान जब पूरी दुनिया पानी में डूबी थी। तब अक्षय वट नामक एक वृक्ष अडिग रहा। यह अक्षयवट न सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अक्षय वट के एक पत्ते पर भगवान विष्णु बालक के रूप में विराजमान थे। वह इस पूरे ब्रह्मांड का अवलोकन कर रहे थे। इस अद्भुत घटना की वजह से अक्षय वट को भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष न सिर्फ अपनी अमरता के लिए बल्कि भगवान के साथ इसके जुड़ाव के कारण भी पूजनीय है।

अक्षय वट को उन संतों और ऋषियों का तप करने का स्थान माना जाता है। जो मोक्ष पाना चाहते थे। माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने भी इस वट वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। जैन धर्म के लोगों का मानना है कि इस धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव ने भी अक्षयवट वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इस वजह को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से भी जाना जाता है।

वहीं जब प्रभु श्रीराम अपने वनवास के दौरान प्रयागराज पहुंचे, तो उन्होंने भी इस वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने अनेक तपस्याएं की थी। यही वजह है कि यह स्थान रामभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। ऐसे में वर्तमान समय में श्रद्धालुओं को भगवान श्रीराम के चरणों में शीश झुकाने का अद्भुत अवसर मिलता है।

Advertisement