विश्व अस्थमा दिवस : इस उपाय से कंट्रोल होगा अस्थमा

अस्थमा
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इस बार विश्व अस्थमा दिवस की थीम है- जागरूकता और सशक्तीकरण। अगर किसी को अस्थमा है तो उसे नियंत्रित करने के उपायों को लेकर जागरूक रहना चाहिए। आमतौर पर अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए इनहेलर और कुछ दवाएं दी जाती हैं। लेकिन, इसे कब, कैसे और कितना लेना है, यह भी जानना आवश्यक है। दूसरा, अगर किसी व्यक्ति में अस्थमा के लक्षण उभर रहे हैं तो उसकी जांच और उपचार को लेकर भी जागरूक रहने की आवश्यकता है।

किस तरह की होती है समस्या?

अस्थमा
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अस्थमा के कुछ सामान्य लक्षणों की बात करें तो सांस लेने में तकलीफ, खांसी, सांस लेते समय आवाज आती है। ऐसी समस्या हो रही है तो अस्थमा की जांच करा लेनी चाहिए। इसमें पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पीएफटी) से सही जानकारी मिल जाती है। इसी आधार पर डाक्टर अस्थमा को नियंत्रित करने के उपाय निर्धारित करते हैं।

क्यों और क्या होता है अस्थमा?

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अस्थमा में सांस की नली सख्त या सिकुड़ जाती है और उसमें सूजन आ जाती है। इससे सांस लेते समय परेशानी महसूस होती है। सांस फूलने और खांसी (खासकर सूखी खांसी) की समस्या भी इसी कारण होती है। छाती में जकडऩ महसूस हो सकती है और सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आती है। धूल, धुएं से एलर्जी है, तो समस्या बढ़ जाती है, वहीं संक्रमण जैसे-सर्दी, जुकाम होने पर अस्थमा की तकलीफ बढ़ जाती है।

सतर्कता है जरूरी

अगर परिवार में किसी को परेशानी हो रही है तो अस्थमा की जांच करा लेनी चाहिए। माता-पिता से बच्चे को भी अस्थमा होने की आशंका रहती है। हालांकि, अस्थमा बच्चे या बुजुर्ग, किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। बेहतर होगा इसकी जांच कराके जल्द उपचार शुरू करा देना चाहिए।

इनहेलर है बेहतर उपाय

अस्थमा नियंत्रण में इनहेलर की भूमिका सबसे मुख्य है। इनहेलर की मेडिसिन, ओरल मेडिसिन की तुलना में 10 से 15 गुणा कम होती है, यानी अगर उतनी ही दवा टेबलेट के रूप में देनी होगी तो वह 10-15 गुणा अधिक मात्रा में होगी। इनहेलर का प्रभाव किसी टेबलेट आदि की तुलना में बेहतर भी होता है। यह दो तरह का होता है, पहला प्रिवेंट्स यानी रोग प्रतिरोधी, जिसे नियमित लेना होता है और दूसरा समस्या रोकने वाली दवाएं, जिसे लंबे समय तक लेना होता है।

इन बातों का रखें ध्यान

जिन कारणों से अस्थमा गंभीर होता है, उन सभी से बचना चाहिए।
निर्माण स्थल या प्रदूषित इलाके में जाने से पहले मास्क आदि सुरक्षा उपायों को अपनाना है।
अगर परिवार में कोई धूमपान करता है तो पैसिव स्मोकिंग से अस्थमा की समस्या निश्चित रूप से बढ़ेगी। स्वजनों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
पालतू जानवरों और पक्षियों से एलर्जी रहती है, तो उनसे दूर रहना चाहिए।
अगर आसपास वायरल फैला हुआ है तो बाहर निकलते समय मास्क पहनें। इससे संक्रमण और धूल आदि से भी बचाव होता है।
हार्ट, किडनी, डायबिटीज की समस्या है, तो संक्रमण होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है, ऐसे लोगों का टीकाकरण जरूरी है। इससे निमोनिया से बचाव होता है।
वार्षिक फ्लू वैक्सीन से हाई रिस्क ग्रुप को सुरक्षा मिल जाती है।
बैक्टीरियल निमोनिया वाले वैक्सीन आमतौर पर 65 वर्ष से ऊपर या जिन्हें हार्ट, किडनी आदि की बीमारी रहती है, उन्हें दी जाती है।
फ्लू वैक्सीन (स्वाइन फ्लू) सभी को लगाना चाहिए। हाइ रिस्क ग्रुप के लिए यह अनिवार्य है। यह बचाव का बेहतर उपाय है।

व्यायाम-प्राणायाम भी उपयोगी

अभी शारीरिक व्यायाम घर के अंदर ही करें।
प्राणायाम खासकर अनुलोम-विलोम फेफड़े को स्वस्थ रखते हैं। फेफड़े स्वस्थ रहेंगे तो बीमार होने की आशंका कम रहेगी।
एलर्जी वाले खाद्य (जैसे-कुछ लोगों को मूंगफली आदि से एलर्जी होती है) से बचना चाहिए।
सर्दी-जुकाम कराने वाले खानपान से बचें। बहुत ठंडी, तैलीय, मिर्च-मसाले वाले भोजन न करें।
सामान्य तौर पर खान-पीने की चीजों से अस्थमा की समस्या नहीं बढ़ती।

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