अगस्त बोले तो-मस्त

कोई हंसी-खुशी से रहना चाहे तो हर लम्हा मस्त है। लम्हें से की गई शुरूआत अंतिम यात्रा तक चल सकती है-बशर्ते -‘हर पल यहां जी भर जीओ। इसकी पलट में कोई मिण मिण कर जीए तो उसके साथ जीना तो दूर, थोड़ी, देर रहना भी गवारा नहीं। कौन, कैसे जीना चाहे यह उस पर निर्भर। एक बात और कोई हंस-खेल कर जीना चाहे तो लोग जीने नही देते। कुल जमा जिंदगी यूं ही चलती रही है..चल रही है और चलती रहेगी। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
कई लोग शीर्षक को महज तुक्का या कि पेरोडी अथवा तर्ज समझ रहे होंगे। कई लोग इसका प्रयोग दूसरे महिनों पर भी कर रहे होंगे। मसलन-जनवरी-फरवरी बोले तो ये करी-मसखरी। मार्च-अप्रैल बोले तो ये पेल-वो पेल। इसी प्रकार तर्ज-तरन्नुम और तुक्के मिलाते रहो और महिने गिनते रहो। दिसंबर आ जाए उसके बाद नया कैलेंडर। कोई चाहे तो साल-दर-साल ऐसे खेल वापस खेल सकता है-नितर सब अपने-अपने काम में व्यस्त।
यह सही है कि मस्त की तर्ज अगस्त पर जा के रूकी। यह भी सही है कि मस्त का टांका अगस्त से जाकर भिड़ा। यह महज संजोग नहीं है, कोई समझे तो समझे। ऐसा यहीं नहीं, कई स्थानों पर हो चुका है। बाजवक्त संजोग सच्चाई में बदलता नजर आता है। कई बार हम जो सोचते हैं उसकी आहट सुनाई पड़ जाती है, कई बार उस का उलटा हो जाता है। अगर सब कुछ सोच के अनुसार होने लग जाए तो नीली छतरी वाले को कौन पूछेगा। कुल जमा खट्टा-मीठा चलता रहता है। इसी का नाम जिंदगी है।
संत-सयानों ने हमें जीवन जीने की कला समझाई। अपने उवाच-प्रवचन-संदेश में उन्होंने कहा कि जीवन हंस कर जीओ। अगर कोई समस्या-तकलीफ आती है तो उस का मुस्करा कर मुकाबला करो। सुख में इतराओ मति और दुख में घबराओ मति। लोग आपके साथ एक बार रो लेंगे-दो बार रो लेंगे। तीन बार रो लेंगे। बाद में ‘रोवणिए का टेग टांग कर कन्नी काटने लग जाएंगे। इसकी पलट में जो हंसता-मुस्कराता रहता है उसका कारवां बढता जाता है। मस्त-मौलाओं के लिए क्या जनवरी और क्या दिसंबर। वो सदाबहार रहते हैं। मगर हथाईबाजों ने महज अगस्त को मस्त बताया है तो यकीनन इस के पीछे कोई कारण रहा होगा। हथाईबाज जो भी बात करते हैं, ठावी करते हैं। उनके चासों में भी चूटिएं होते हैं। यह बात दीगर है कि कोई चासों को मजाक समझ बैठता है, तो किसी को उनके पीछे छुपे तंज और गंभीरता का एहसास हो जाता है। मस्त अगस्त भी वैसा।
कई लोगों को इस मस्त-मस्ती पे हैरत हो रही होगी। ऐसा होना लाजिमी है, कारण ये कि इस साल में अच्छों-भलों की हस्ती पे कोहरा छा गया। मस्ती का भी नाम-ओ निशान नहीं। कोरोना ने सारी हंसी-खुशी-मौज और मस्ती पे ग्रहण लगा दिया। कुछ लोग अपवाद। वह भी एक-सवा माह के लिए। उन्होंने इस काल में जो मलगोजे सरकारी पईसों से मारे वैसे पहले कभी किसी ने नही मारे होंगे। मौज मस्ती तो की मगर इतनी लंबी नही। पूरी सरकार सवा महिने ऐट स्टार बाड़े मे रही। भविष्य में इतनी लंबी मस्ती फिर चलेगी या इस मियाद का रिकॉर्ड टूटेगा, कह नही सकते। इत्ता जरूर है कि राज्य में सत्तारूढ कांगरेस के विधायकों की मौज मस्ती ने नया इतिहास रच दिया। उनका पौन जुलाई और आधा अगस्त मस्त, तो सरकारी कारिंदों के लिए पूरा अगस्त मस्त। भाईसेण इस पर भी सवाल खड़े कर सकते हैं। अगस्त में स्वाधीनता दिवस। अगस्त में बकरीद। अगस्त में रक्षाबंधन। अगस्त में बाबे की बीज।

अगस्त में मोहर्रम। अगस्त में जन्माष्टमी। अगस्त में गणेश चौथ। सबके सब कोरोना की चपेट में आ गए और आप राग मस्त-मल्हार छेड़े जा रहे हैं, ये कौन सी मस्ती हुई भाई? जवाब ये कि जब 31 का महिना सरकारी करमचारियों के लिए 18 का बन जाए तो तू माह बड़ा है मस्त.. मस्त.. के सुर बिखरेंगे कि नहीं। मजदूर पेशा लोगों को पूरे माह खपना पड़ता है। निजी संस्थानों में कार्यरत लोगों को महिने में चार छुट्टिएं मिलती हैं, कई बार उन का भी कत्ल हो जाता है। बीच में छुट्टी चाहिए तो तनखा में कटौती और उधर सरकारी जमाइयों को देखो। आगे-पीछे जाणे की जरूरत नहीं मस्त अगस्त को ही ले लीजिए। यह महिना 31 दिन का, इन में पांच रविवार और पांच शनिवार की छुट्टी पीछे रहे 21 दिन। इनमें एक छुट्टी राखी की एक जन्माष्टमी की और एक बाबे की बीज की। दस और तीन तेरह तो कार्य दिवस हुए डेढ दर्जन। तिस में दो अवकाश किल हो गए। स्वाधीनता दिवस शनिवार और मोहर्रम अदीतवार को नही पड़ता तो अवकाश और कार्य दिवस में उन्नीस-बीस का फरक। अब आप सोचिए कि जब 31 का महिना 18 का हो जाए तो इस से बड़ी मस्ती क्या होगी। इक्का-दुक्का मौके ऐसे भी आए जब एक छुट्टी में तीन-चार छुट्टियां पक्की। तभी तो अगस्त को सरकारी करमचारियों के लिए मस्त बताया।