ऑटोमोबाइल कंपनियों वाहनों की कीमतें घटाकर बिक्री को बढ़ा सकती है

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ऑटोमोबाइल सेक्टर के मौजूदा हालातों को देखते हुए वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की तरफ से कहा गया है कि, कोरोनोवायरस संकट और आर्थिक मंदी की वजह से कंपनियों को सरकार से टैक्स में छूट मांगने की जगह विदेशी पेरेंट कंपनियों के रॉयल्टी भुगतान में कटौती करके वाहनों की कीमतों में कमी लानी चाहिए।

मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड, टोयोटा किर्लोस्कर मोटर, हीरो मोटोकॉर्प लिमिटेड और अशोक लीलैंड लिमिटेड जैसी दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियां ऑटोमोटिव पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की दर में कटौती की मांग कर रही हैं, साथ ही पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के लिए प्रोत्साहन देने की मांग भी कर रही है, जिससे वाहनों की बिक्री को दोबारा पटरी पर लाया जा सके। दरअसल महामारी और मंदी की वजह से वाहनों की बिक्री काफी कम हुई है।

15 सितंबर को ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में टोयोटा किर्लोस्कर के वाइस-चेयरमैन शेकर विश्वनाथन का हवाला देते हुए कहा गया है कि उच्च करों के कारण कंपनी का भारत में विस्तार नहीं करेगी। हालांकि बाद में कंपनी ने इस बात को गलत बताया था और भारत में 2,000 करोड़ निवेश की बात कही थी।

सरकारी अधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, उन्होंने वाहन निर्माताओं द्वारा किए गए सुझावों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि हाई टैक्सेज ने वाहनों की मांग को कम कर दिया है, उन्होंने यह तर्क दिया कि भारत में एक मध्यम कॉर्पोरेट कर व्यवस्था है जो कंपनियों को प्रतिबंधों के बिना रॉयल्टी भुगतान करने की अनुमति देता है।

फिर भी, पेरेंट कंपनी की तकनीक और ब्रांडिंग का इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करना टैक्स विवादों का विषय रहा है, और सरकार ने कई बार अत्यधिक भुगतानों को सीमित करने के लिए इसे फिर से लागू करने पर विचार किया है।

आपको बता दें कि अगर ऑटोमोबाइल कंपनियां नुकसान में भी होती हैं तो भी उन्हें अपनी विदेशी पेरेंट कंपनियों को रॉयलिटी देनी पड़ती है। अगर ये कंपनियां पेरेंट कंपनियों को किए जाने वाले भुगतान को कम कर लें तो वाहनों की कीमत कम की जा सकती है और बिक्री को भी बढ़ाया जा सकता है जिसके बाद जीएसटी कम करने की जरूरत महीन पड़ेगी।