सीधे रखे पात्र में ज्ञान संग्रहीत होता है व उल्टे रखे पात्र से प्रवाहित : अवनीश भटनागर

उत्कर्ष संस्थान में अध्ययनरत भावी शिक्षकों को अवनीश भटनागर ने दिए सीखने के मनोविज्ञान के मूल मंत्र

जोधपुर। उत्कर्ष संस्थान में रीट की तैयारी कर रहे अध्यापकों ने संस्कार शिक्षा, सीखने का मनोविज्ञान तथा सीखने में मन की एकाग्रता से जुड़े कई प्रश्न पूछे और विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री अवनीश भटनागर ने भावी शिक्षकों की हर जिज्ञासा का उदाहरण देकर समाधान किया। अवसर था उत्कर्ष क्लासेज में शिक्षकों के लिए आयोजित कार्यशाला जिसमें प्रशासनिक अधिकारी एवं विद्याभारती के राष्ट्रीय मंत्री अवनीश भटनागर मुख्य अतिथि एवं मुख्यवक्ता थे।
उत्कर्ष क्लासेज के निदेशक निर्मल गहलोत ने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य भावी शिक्षकों को सीखने-सीखाने की बारीकियों से अवगत कराना था।इस अवसर पर विद्याभारती जोधपुर के सचिव मिश्रीलाल ने भटनागर का माल्यार्पण कर स्वागत किया।

हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ एवं मन हमारे सीखने का है अहम स्रोत
भटनागर ने बड़े रोचक तरीके से बताया कि हमारे सीखने में आँख, नाक, कान, स्पर्श एवं सूंघने से सम्बंध रखने वाली ज्ञानेन्द्रियों का सबसे बड़ा योगदान है। हमारी ये ज्ञानेन्द्रियां सूचनाओं को मन रूपी स्क्रीन तक पहुँचाती
हैं तथा वहाँ से सूचनाएं बुद्धि द्वारा फ़िल्टर होकर उपयोगी एवं अनुपयोगी दो श्रेणियों में बंट जाती हैं। हम रोचक लगने वाली उपयोगी जानकारियों को लम्बे समय तक याद रखने में सक्षम होते है जबकि अरोचक एवं अनुपयोगी तथ्यों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं।
विद्यार्थियों के लिए मन की शान्ति, एकाग्रता एवं अनासक्ति का बताया महत्व
भटनागर ने विद्यार्थियों को मन की शान्ति, एकाग्रता एवं अनासक्ति का महत्व विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि शान्त मन से व्यक्ति के मन में जो विचार उत्पन्न होते हैं वे अधिक स्थायी एवं सकारात्मक होते हैं। एकाग्रचित्तता से व्यक्ति किसी ज्ञान को स्थायी रूप से धारण करने में सक्षम होता है। अनासक्ति से व्यक्ति का मन अनावश्यक एवं मन को विचलित करने वाली बातों से बच जाता है। जिन विद्यार्थियों में ये सब संतुलन में होते है उनमें ज्ञान सीधे रखे पात्र की तरह शीघ्र भर जाता है। इसके अभाव में ज्ञान उल्टे रखे पात्र में जिस तरह पानी बह जाता है उसी तरह ज्ञान भी धारित नहीं होता है।

भटनागर ने महाभारत के प्रसंगों के उदाहरण देकर तथा विद्यार्थी के व्यावहारिक जीवन से जुड़े हुए कई उदाहरण देकर समझाया कि कोई भी विचार पहले मन में उत्पन्न होता है उसके बाद उसको मूर्त्त रूप दिया जाता है। सीखना एक बीज के उगने के समान है जिसमें वातावरण, खाद, उर्वरकों, मिट्टी, ताप आदि सबका बराबर महत्व है उसी प्रकार सीखने में केवल शिक्षक ही नहीं बल्कि और भी अनेक तत्वों का महत्व होता है। कार्यक्रम के अन्त में 10 मिनट के जीरो सेशन में कई विद्यार्थियों ने अपने प्रश्न पूछे तथा भटनागर ने हर प्रश्न का विश्लेषण कर उसका समाधान किया। निर्मल गहलोत ने दोनों अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया तथा स्मृति चिह्न प्रदान किये।