राजस्थान के इस शहर में निकाली जाती है बेंतमार गणगौर, कुंवारों का पिटना माना जाता है शुभ

सुहागन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्व रखने वाला गणगौर तीज का त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गणगौर माता यानि माता गौरा की पूजा की जाती है। इस बार गणगौर तीज 15 अप्रैल 2021 दिन गुरूवार को मनाई जाएगी। गणगौर तीज का व्रत राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से किया जाता है। वैसे यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। सिर्फ सुहागन स्त्रियों के साथ अविवाहित कन्याएं भी इस दिन व्रत रखती हैं। भावी जीवनसाथी की कामना के साथ गणगौर तीज का व्रत को करती हैं। गणगौर राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न तरीके से संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाई जाती है। इसी कड़ी में राजस्थान का प्रमुख क्षेत्र मारवाड़ में भी गणगौर का बड़ा महत्व है। यहां गणगौर बड़े ही अलग अंदाज में मनाई जाती है। इस पर्व को जोधपुर में दो अलग-अलग नाम से मनाने की परम्परा चली आ रही है। पहले पखवाड़े में पूजे जाने वाली गणगौर घुड़ला गवर कहलाती है। जबकि दूसरे पखवाड़े में धींगा गवर का पूजन होता है। प्रथम पखवाड़े में गवर का पूजन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल तीज तक किया जाता है।

जोधपुर में मनाई जाती है बेंतमार गणगौर
जोधपुर में गणगौर के दौरान मनाएं जाने वाले एक और प्रमुख उत्सव है। इसका नाम है धींगा गवर। इस उत्सव को बेंतमार गणगौर के रूप में भी जाना जाता है। इस उत्सव में रात में शहर की गलियों में महिलाएं विभिन्न स्वांग रचकर निकलती हैं। इस दौरान पुरुषों के उनके पास से गुजरने पर बैंत की मार खासी प्रसिद्ध है। साल में केवल एक बार आने वाले इस मेले में जब महिलाएं शहर की गलियों में बैंत लेकर चलती हैं तो उनके पास गुजरने वाले पुरुष अपनी खैर मनाते हैं। हालांकि पुरुषों को भी महिलाओं द्वारा पिटने में अलग ही मजा आता है। ऐसी भी लोक मान्यता है कि यदि कुंआरे युवक को तीजणियों की बैंत पड़ जाए तो उसका विवाह जल्द ही हो जाता है। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती। बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय वह कहीं छिप जाएं। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत डंडा की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है।

इसलिए मनाया जाता है यह त्यौहार
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है – गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं, चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।

पर्व में लोकगीतों का बड़ा महत्व
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है।

पति से छिपकर किया जाता है व्रत
हालांकि इस व्रत की सबसे बड़ी खासियत ये है कि सुहागिन महिलाएं इस व्रत को पति से छिपकर रखती हैं। पति को व्रत के बारे में कुछ भी नहीं बताना होता और यहां तक कि पूजा का चढ़ाया गया प्रसाद भी महिलाएं पति को नहीं देती हैं। गणगौर का व्रत खासतौर पर राजस्थान और मध्य प्रदेश की महिलाएं रखती हैं और इस दिन गणगौर माता यानी माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है।

ऐसे होती है गणगौर की पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती होली के दूसरे दिन अपने मायके चली जाती हैं और 8 दिनों के बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं, इसलिए यह त्योहार होली के दिन से यानी चैत्र महीने की प्रतिपदा से आरंभ हो जाता है। इस दिन से सुहागिन महिलाएं और कुंंवारी लड़कियां मिट्टी के शिव जी यानि गण और माता पार्वती यानि गौर बनाकर रोजाना उनकी पूजा करती हैं। इसके बाद चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज की पूजा की जाती है। इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठकर दूब और फूल चुनकर लाती हैं और उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन किसी नदी, तालाब के पास जाकर अपनी पूजी हुई गणगौर को पानी पिलाती हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया की शाम को गणगौर का विसर्जन कर दिया जाता है। गणगौर व्रत के दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।