
जयपुर। जयपुर नगर निगम की टैक्स वसूली व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। निजी फर्म को वसूली का काम सौंपने के बाद भी निगम को राजस्व की भारी कमी झेलनी पड़ रही है, जबकि इस प्रक्रिया में करोड़ों रुपए का अतिरिक्त खर्च किया जा रहा है।
शहर में यूडी टैक्स और हाउस टैक्स की वसूली का जिम्मा स्पैरो सॉफ्टटेक कंपनी को दिया गया है, जिसे औसतन सालाना 8 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है। लेकिन, इसके बावजूद वसूली घट रही है और जनता पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक एक तरफ निगम अपनी वसूली घटने का रोना रो रहा है, दूसरी ओर निजी फर्म को मोटी रकम दी जा रही है। साल 2020 से पहले नगर निगम खुद टैक्स वसूली करता था, तब इसका खर्च मात्र 7-8 लाख रुपए सालाना था। इसके बावजूद टैक्स कलेक्शन अच्छा होता था।
लेकिन, स्पैरो कंपनी को वसूली का ठेका देने के बाद से निगम को घाटा ही उठाना पड़ रहा है। स्पैरो कंपनी को शहर में जियो टेक सर्वे करके हर प्रॉपर्टी पर आरएफआईडी टैग लगाने थे, ताकि टैक्स वसूली में पारदर्शिता बनी रहे। लेकिन, पांच साल बाद भी यह कार्य अधूरा पड़ा है।
साल 2005 में हुए एक सर्वे में 6.5 लाख प्रॉपर्टी टैक्सेबल पाई गई थीं, जिनमें से 1.5 लाख को यूडी टैक्स के दायरे में रखा गया था। सामान्य गणना के अनुसार, 2020 तक टैक्स देने वाली प्रॉपर्टी की संख्या कम से कम 3 लाख हो जानी चाहिए थी।
लेकिन, वास्तविकता में टैक्स वसूली लगातार गिरती जा रही है। स्पष्ट है कि सरकार और नगर निगम की नीतियों की विफलता के कारण जनता पर टैक्स का बोझ तो बढ़ा, लेकिन वसूली घटती चली गई। यह सवाल उठता है कि जब खुद की वसूली प्रणाली निगम के लिए फायदेमंद थी, तो उसे खत्म करके निजी कंपनी को करोड़ों रुपये क्यों दिए जा रहे हैं?