
जयपुर। राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष कुलदीप रांका ने कहा कि बाल विवाह केवल सामाजिक कुरीति ही नहीं बल्कि मानवता के लिए भी गंभीर समस्या है। जब तक समाज में महिलाओं के लिए समानता और समता का अधिकार नहीं मिलेगा तब तक राष्ट्र सही मायनों में विकसित नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जनसमुदाय की सक्रिय भागीदारी से बाल विवाह की कड़ी को तोड़ना संभव है। रांका गुरुवार को इंदिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान के सभामार में राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग एवं बाल अधिकारिता विभाग द्वारा आयोजित बाल अधिकार एवं संरक्षण विषय पर आयोजित राज्य स्तरीय आमुखीकरण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बाल विवाह संपूर्ण विश्व के लिए कितनी बड़ी समस्या है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया के 45 फीसद बाल विवाह साउथ एशिया में होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2030 तक पूरे विश्व को बाल विवाह से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।

बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि हालांकि प्रदेश में पिछले एक दशक में बाल विवाह के मामलों में जबरदस्त गिरावट देखी गई है। जहां प्रदेश पहले पायदान पर आता था, वहीं अब छठे स्थान पर आता है लेकिन यह संतोष की बात नहीं है। आमजन से लेकर लोकसेवक सभी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए बाल विवाह की कड़ी को तोड़ने का कार्य करें। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में आने वाली अक्षय तृतीया और पीपल पूर्णिमा पर राज्य में बाल विवाह की पंरपरा रही है। खासतौर पर गांवों में प्रभावशाली लोगों, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के सहयोग से लोगों से संवाद करके उन्हें जागरूक करें। सोशल मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, आपसी संवाद हर वह तरीका अपनाएं जिससे इस कुरीति पर अंकुश लगाया जा सके। उन्होंने इस दौरान सभागर में उपस्थित लोगों को ‘बाल विवाह मुक्त राजस्थान’ की शपथ भी दिलाई।
आयुक्त बाल अधिकारिता विभाग बचनेश अग्रवाल ने कहा कि विश्व की आबादी की 40 प्रतिशत जनसंख्या 18 वर्ष से कम उम्र की है। यह उम्र सपनों में रंग भरने की होती है। इसी दौरान यदि बच्चों का बाल विवाह हो जाता है तो उनके सपने बेरंग हो जाते हैं। यह स्वयं उनके साथ समाज के विकास की गति में अवरोध का काम करता है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए समाज के माइंडसेट को बदलने की जरूरत है। इसके लिए हमें स्वयं को शुरुआत करनी होगी।
राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण के सदस्य सचिव अविचल चतुर्वेदी ने कहा कि इस कुरीति के अंत के लिए समाज की सोच में बदलाव होना बेहद जरूरी है। हमें लड़के और लड़कियों में समानता की सोच रखनी होगी। बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक और शारीरिक विकास पर समान रूप से ध्यान देना होगा। उन्होंने कार्यशाला में बाल विवाह से जुड़े कानूनों एवं उनके क्रियान्वयन पर जोर दिया। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव पल्लवी शर्मा ने बाल विवाह से जुड़े कानूनों के बारे में विस्तार और कानूनों के प्रति लोगों को जागरूक करने पर भी जोर दिया।
इस दौरान यूनिसेफ राजस्थान के बाल संरक्षण विशेषज्ञ संजय निराला और यूएनएफपीए के स्टेट हैड दीपेश गुप्ता ने प्रदेश भर में चल रहे विशेष अभियानों और शोधों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि बाल विवाह मुक्त राजस्थान अभियान प्रदेश में बाल विवाह के क्षेत्र में परिदृश्य बदल सकता है। उन्होंने कहा कि राजस्थान उन विकसित राज्यों में से एक है जिसने देश में सबसे पहले गर्ल चाइल्ड पॉलिसी बनाई, बाल अधिकारों के लिए अलग से विभाग बनाया। राज्य में जनसमुदाय की भीगीदारी होगी तो बहुत जल्द ही प्रदेश से बाल विवाह की कुरीति का कलंक मिट जाएगा।
राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग तथा बाल अधिकारिता विभाग के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राज्यस्तरीय कार्यशाला के अंतिम सत्र में बाल आयोग के माननीय सदस्यगण संगीता गर्ग, ध्रुव कुमार चारण तथा धनपत राज गुर्जर के साथ शासन सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग, सदस्य सचिव, राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग तथा आयुक्त, बाल अधिकारिता विभाग मंच पर उपस्थित रहे ।उक्त सत्र के अंतर्गत कार्यशाला में उपस्थित आगंतुको तथा आयोग सदस्य एव अधिकारी गणों के मध्य संवाद स्थापित हुआ। उक्त संवाद के अंतर्गत बाल विवाह की रोकथाम में आने वाली विविध व्यवहारिक समस्याओं तथा अन्य बाधाओं पर विस्तृत चर्चा की गई तथा भविष्य बाल विवाह ना हो, इस हेतु प्रभावी कार्ययोजना बनाने पर मंथन किया गया। इस दौरान ज़िला प्रशासन, पुलिस, सामाजिक न्याय, बाल अधिकारिता, महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी, सीडब्लूसी अध्यक्ष तथा सदस्य, जेजीबी सदस्य, साथिन आदि एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधिगण उपस्थित रहे।