जयपुर। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने प्रदेश के काश्तकारों को बांस उत्पादन के लिए प्रेरित करने और इस क्षेत्र में सुनियोजित कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि कम पानी वाले क्षेत्रों में बांस की खेती न केवल आर्थिक लाभदायक हो सकती है, बल्कि इससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
राजभवन में आयोजित “ग्रामीण आजीविका सृजन में बांस की भूमिका” विषयक बैठक में राज्यपाल ने अधिकारियों से कहा कि वे प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और प्रदर्शन मॉडल के माध्यम से किसानों को बांस की खेती के लिए तैयार करें।
प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग
राज्यपाल ने कहा कि बांस एक ऐसी फसल है जो घास की तरह तेजी से बढ़ती है और इसे अब वन अधिनियम से बाहर कर घास श्रेणी में रखा गया है ताकि काश्तकार इससे आर्थिक रूप से लाभान्वित हो सकें। उन्होंने बांस से उत्पादों के विपणन, निर्यात, और स्थानीय रोजगार सृजन की संभावनाओं को देखते हुए विशेष रणनीति बनाए जाने की बात कही।
महाराष्ट्र मॉडल पर चर्चा
इस बैठक में महाराष्ट्र मुख्यमंत्री टास्क फोर्स – पर्यावरण एवं सतत विकास के अध्यक्ष पाशा पटेल ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि महाराष्ट्र में बांस उत्पादन को नरेगा से जोड़ा गया है और किसानों को लाखों का अनुदान मिल रहा है। उन्होंने कहा कि बांस उत्पादन के जरिए जलवायु परिवर्तन से भी प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है।
विशेषज्ञों और अधिकारियों की भागीदारी
बैठक में बांस विशेषज्ञ संजीव कार्पे (टाटा ट्रस्ट), पद्मश्री श्यामसुंदर पालीवाल, कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल, अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रेया गुहा व आनंद कुमार, कुलगुरु डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, मौसम विभाग निदेशक सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी व काश्तकार प्रतिनिधि मौजूद रहे।
राज्यपाल ने इस पहल को “हरित भारत और आत्मनिर्भर किसान” के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि अब समय आ गया है कि राजस्थान में बड़े पैमाने पर बांस की खेती को अपनाया जाए।
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