दलाल भाई

उनने जो कुछ किया। अच्छा नहीं किया। आप भले ही राह चलते किसी अजनबी को घटना की समरी सुना के पूछ लेना कि सही है या गलत। उसका वोट गलत की पेटी मे ही जाणा तय है। हमारी संस्कृति यही कहती है कि अगर कोई गलत टे्रक में जा रहा है तो उसे सही रास्ते पे लाया जाए। समझाया जाए। अच्छे-बुरे का भेद बताया जाए, पण वहां तो साव सपाट। जैसा होना चाहिए उसका उलटा हुआ। तभी तो सजा मिली। अब भुगतो। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


शुरूआत से ही शुरूआत करते हैं। चाहते तो बीच में से या ठेठ लास्ट में से भी कर सकते थे। ऐसा होता आया है। कई लोग ऐसा करते हैं मगर हम हौडाहौड़ गोड़ा फोडऩे वालों में से नहीं। अपने यहां देखा-देखी करना लोगों की फितरत में शुमार है। फलाणे ने ऐसा किया तो ढीमका भी करेगा। कौन-क्या कर रहा है, वो जाणे और उसके काम जाणे, मगर समाज में भतेरे ऐसे पंचायती लाल और पंचायती देवियां हैं जिन्हें नकल करने में आनंद आता है। कई बार लगता है कि देखादेखी करना उनकी आदत में शुमार हो गया है। बीस नंबर वाली ने अपना घर पुतवाया तो अपन भी पुतवाएंगे। तीन नंबर वाली के यहां नया सामान आया तो अपने यहां भी आएगा। जब तक वैसा नही हो जाता तब तक पंचायतीलालों को चैन नही ना पंचायती देवियों को करार।


कई लोगों को इन दो नामों पर हैरत हो रही होगी। लाल तो सुणे पर ऐसे नहीं। देवियां तो सुनी मगर ऐसी नही। अपने यहां लालों और देवियों की भरमार है। अब तो खैर इनकी खेप में कमी आ रही है, वरना एक जमाने में इन का जोरदार रूतबा हुआ करता था। लगभग हर आधी आबादी के साथ देवी का जुड़ाव। शांति देवी से लेकर विमला देवी। मंजू देवी से लेकर मधु देवी। इनके बीच भतेरी देवियां। सीता देवी-योगिता देवी-यशोदा देवी। अब नामों के अक्षरों में भी कटौती। लोगबाग अपनी बच्चियों के नाम शॉर्टकट में रखना ज्यादा पसंद करते हैं। ज्यादा से ज्यादा दो-तीन अक्षर। उन का बस चले तो एक पे उतर जाएं। छोरियों का नाम पी-की-ची-भी रख दें, वरना हमारे टेम में लगभग हर गुवाड़ी में भगवती देवी मिल जाती थी। बच्ची के नाम के बहाने मां अंबे का स्मरण भी हो जाता। यही स्थिति लालों की। हर दूसरी गली में हीरालाल-पन्नालाल मिल जाते। रामलाल-श्यामलाल तो घर-घर में। हरियाणे में लालों पर सुर लहरियां फूट चुकी हैं-‘लाली मेरे यार की जिते देखूं तित लाल.. लाली देखण मैं चली.. हो गई लालम लाल। राजनीति में लालों की भरमार। देवीलाल-भजनलाल-मनोहरलाल। यहां तक तो ठीक है, ये पंचायतीलाल और पंचायती देवी कहां से टपक पड़े।


कई लोग-लुगाइयों को पराई पंचायती करने की लत लगी हुई है। उन्हें खुद के अलावा दूसरों के घर में ताकाझांकी करने में मजा आता है। भले ही लोग ऐसों को देखकर दरवाजा बंद कर लेते हों, मगर वो बाहर खड़े-खड़े खिड़की में झांक कर पंचायती करने से बाज नहीं आते। ऐसे लोग-लुगाई हर गली-गुवाड़ी में मिल जाएंगे। घर का काम भले ही आधा-अधूरा पड़ा है। बच्चों ने रोटी खाई या नही खाई। पतिदेव टिफिन ले के गए या नही गए इसकी तनिक भी परवाह नही मगर चांतरियों पे बैठकर पंचायती करना जरूरी। इस घर की उस घर में उस घर की इस घर में। यही उनकी दिनचर्या। ऐसे लोगों का नाम मौहल्ले वालों ने पंचायतीलाल और पंचायतीदेवी रख रखा है। लिहाजा उन्हीं से बिस्मिल्लाह किया। अब आते है अच्छे-बुरे पर। एक हिसाब से देखा जाए तो दोनों एक-दूसरे के पूरक है। जहां अच्छाई होगी वहां बुराई और जहां बुराई होगी वहां अच्छाई भी पाई जाती है। मैं अगर यह समझूं कि हमसे अच्छा कौन, तो यह मेरी गलतफहमी है।

कोई मानखा हंडरेड परसेंट बुरा या अच्छा नही होता। एटी-ट्वेंटी सब जगह चलता है। कोई अगर बुराई के रास्ते पे चल रहा है तो उसे सद्मार्ग पे लाना जरूरी है। वरिष्ठजन-संत सुजान-अभिभावक-काके-बड्डे और शुभचिंतकगण हमें नेकी पर चलने की सीख देते हैं। भाई भाई को रास्ता दिखाता है। बहन भाई की प्रेरणास्रोत बनती है। भाई बहन का आदर्श बनता है पर वहां सब कुछ उलटा-पुलटा हुई गवा। भाई को बुराई से बचाना चाहिए था, मगर उसने बुराई का साथ देकर दलाल भाई का रोल निभा डाला।

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने चूरू के रतनगढ क्षेत्र में बिजली विभाग के एक जेइन और उसके भाई को घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। बिजली कनेक्शन देने के बदले जेइन साहब ने 27 हजार की घूस मांगी थी। पइसे लेने के लिए उनने भाई को आगे कर दिया। हिसाब से तो उसे जेइन भाई को समझाना चाहिए। ईमानदारी से काम करने की सीख देनी चाहिए। सद्मार्ग दिखाना चाहिए। मगर लालच ने उसे दलाल भाई बना दिया। अब दोनों ताडिय़ों के पीछे। अगर भाई ने भाई को अच्छी सलाह दी होती तो ये दिन नही देखने पड़ते। लालच में खुद भी मरा और भाई को मरवा दिया। ऐसी भाईपंथी ठीक नही है।