
पश्चिम बंगाल के बाद अब सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन की नजर उत्तर प्रदेश पर है। रिवर फ्रंट मामले में सोमवार को सीबीआई की एंटी करप्शन विंग ने एक साथ यूपी, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में 40 जगहों पर छापेमारी की। शुक्रवार को ही सीबीआई ने इस मामले में 190 लोगों पर एफआईआर दर्ज की थी।
इसमें समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के कई करीबी नेता आरोपी बनाए गए हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले रिवर फ्रंट का ये मामला तूल पकड़ सकता है।
सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन विंग ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा, आगरा में छापेमारी की है। अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सियासी गलियारे में सीबीआई की इस कार्रवाई को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के लिए सपा सरकार ने 1513 करोड़ स्वीकृत किए थे। इसमें से 1437 करोड़ रुपए जारी होने के बाद भी 60 प्रतिशत काम ही हुआ। 95 प्रतिशत बजट जारी होने के बाद भी 40 प्रतिशत काम अधूरा ही रहा। जब प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो इसकी न्यायिक जांच शुरू हो गई।

आरोप है कि डिफाल्टर कंपनी को ठेका देने के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया था। पूरे प्रोजेक्ट में करीब 800 टेंडर निकाले गए थे, जिसका अधिकार चीफ इंजीनियर को दे दिया गया था। मई 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में कराई गई न्यायिक जांच में कई खामियां उजागर हुईं। इसके बाद रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
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