सर्टिफिकेट ले..लो.. सर्टिफिकेट…

हाल-हूलिया और हालात यही रहे तो घर बैठे सुविधा पाइए योजना का लाभ उठाया जा सकता है। इस का सरलीकरण करें तो बनेगा-‘सेवा आप के द्वार। यह आप पर निर्भर कि उन सेवाओं का कितना और कैसे फायदा उठाया जा सकता है। इससे पहले के चरण में गली-गुवाड़ी में नई बांग गूंज सकती है-‘सर्टिफिकेट ले.. लो.. भाई सर्टिफिकेट..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। हाल-हूलिया-हालात पर कई बार दो-तीन-चार धाराएं फूटती दिखाई देती। ऐसा लगता है मानो पक्ष-विपक्ष-तीसरा मोर्चा और चौथे मोर्चे की भूमिका निभाई जा रही है। सियासत में भले ही कितनी ही पारटियां हों मगर समाज मे दो ही धाराएं फूटनी चाहिए। हमारे जमाने में कोई धार थी ना धारा। बुजुर्ग लोग जो रास्ता दिखाते हम उस पे चल देते। जितना हमें उन पर विश्वास, उतना ही उन को हम पे। हमें यकीन रहता कि बड़े-बुजुर्ग हमेशा सही रास्ता ही दिखाएंगे।

दिखाते भी हैं। हम उनके बताए रास्ते पे चले तभी तो कुछ करे जैसे बन गए। हम यह नहीं कहते कि ‘ये कर लिया.. वो कर लिया..। हमने कभी-पट्ठों पे हाथ नहीं मारे कि-‘ये कर लेंगे.. वो कर लेंगे..। हां इतना जरूर कह सकते हैं कि भगवान ने जिस के लिए हमें मनुष्य जनम दिया वो फर्ज बखूबी निभा रहे हैं। भूल-चूक लेणी-देणी। गलती जरूर हुई होगी- गुनाहों से तौबा..। समय बदला तो लोगों की मानसिकता भी बदल गई। विचार बदल गए। बोल और बोली बदल गई। आचरण बदल गया। व्यवहार बदल गया। ऐसी आंधी चली कि चारों ओर धूड़-धाणी धक्का-पाणी वाली स्थितियां हो गई। एक धारा बहु धाराओं में बदल गई। संयुक्त परिवार दरक गए। घर-आंगन में दीवारें खडी हो गई। साझे चूल्हे बुझ गए। बुजुर्ग होशिए पे पटक दिए गए।

एक मां चार बच्चों को पाल-पोस कर मोट्यार बनाती थी, आज चार भाई मिलकर एक मां का बुढ़ापा नही सुधार रहे। जहां देखो तहां-तेरा। जहां नजर डालो वहां-मेरा। चारों ओर तेरा-मेरा। किस के भाई-किस की बहन। कैसे काके। कैसे बड्डे। कौन मामा। कैसी बुआ। लोगबाग म्हैं अर म्हारों गीगलो में कैद होते जा रहे है। ऐसे में धार का धाराओं में बदलना कोई अनहोनी नहीं। आज हालात ये कि सब की अपनी-अपनी धारा। कोई बह जाए तो हाथ पकडऩे वाला नहीं। संयुक्त परिवार में त्याग करना पड़ता है। बड़ी विचारी पड़ती है। सहनशील रहना पड़ता है। सब को साथ लेके चलना पड़ता है। सब के साथ चलना पड़ता है। सबसे बड़ा फायदा ये कि हर दुख-सुख में कुनबा एक। परिवार एकजुट। जहां पैर मारो वहां पानी निकले। भाइयों में एका। औरतों में सम्प। बच्चों में प्यार। इसका आनंद ही कुछ और है वरना तुम अपनी खींचो-हम अपनी ओढते हैं। एक घर में रहते हुए भी अनजान। माना कि जित्ते भाई उत्ते चूल्हे, मगर कम से कम बोले जैसे तो रहो। हवा ने इसे भी घर-घर का खटराग बना दिया।


हथाईबाज इस प्रवृति के कि भगवान ने हमें इंसान बनाया है। इंसान होने का मतलब यह नही कि दुनिया में आए। मोट्यार हुए। नौकरी की। विवाह हुआ। बाल बच्चे हुए। कमाया-खाया। उम्र गुजारी और चले गए। ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। दुनिया में आए हो तो कुछ ऐसे काम करके जाओ कि लोग याद रखें। सच कहें तो आज कल लोग किसी को याद नही रखते। कई लोग तो श्मशान से निकलते ही गुटके-जरदे पे उतर आते हैं। कई लोग ‘कार खींचने के बाद पुरानी रंगत में। घर वाले भी धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर अग्रसर। बरसी-पुण्यतिथि पर याद कर लिया तो ठीक, नितर मामला नक्की। हमारा कहना ये कि कोई चाहे कुछ भी कहे। कुछ भी सोचे। अपन को इतना ध्यान रखना है कि आए हैं तो कुछ करके जाएं तब तो है दमदारी वरना आए और चले गए। इतना याद रखना कि सेवा करना हमारा फर्ज है। जो इस फर्ज को निभाता है-उसे कोई याद रखे या ना रखे लाभान्वित होने वाला जरूर रखता है अगर वो भी नुगरा निकल जाए तो बात ही खलास।


सेवा के अपने रूप है। कोई शरीर से सेवा करता है कोई धन से। किसी को रास्ता बताना भी एक प्रकार की सेवा है। गरीबों की सेवा करो। मुफलिसों की सेवा करो। निशक्तजनों की सेवा करो। बुजुर्गों की सेवा करो। समाज की सेवा करो। देश की सेवा करो। आज कल तो सेवा के साथ शुल्क भी लिया जाता है। कई लोग व्यापारिक फायदे के लिए घर तक सेवा पहुंचाने में लगे हुए हैं। लोग बाग उसे ‘होम डिलीवरी कहते हैं। ऑन लाइन ऑर्डर करो संस्थान का बंदा सामान घर तक पहुंचा देगा। कफन-लकड़ी का कह नही सकते वरना आम जरूरत की हर वस्तु घर पर हाजिर करने की हौड़ मची हुई है। गली-गुवाड़ी में आकर साक-भाजी अथवा दूध-छाछ बेचने वाले भी एक प्रकार से सेवा कर रहे है। पर हथाईबाज जिस सेवा की बात कर रहे हैं उसके तार फिटनेस सर्टिफिकेट से जुड़े हुए। प्रमाण-पत्र कोई शिक्षण संस्था अथवा सामाजिक संगठन सीधे घर भेजता तो समझ में आता यहां तो फिटनेस सर्टिफिकेट की बात हो रही है।


परिवहन विभाग से अनुबंधित निजी फिटनेस सेंटरों पर इन दिनों धांधली की धुंध छाई हुई है। वहां जनता की जान का सौदा किया जा रहा है। गाड़ी वहां भले ही मति ले जाओ, पईसे दो और सर्टिफिकेट घर बैठे आ जाएगा। हां, वाहन के कागजातों का फोल्डर भेजना जरूरी है। उसके बाद की जिम्मेदारी सेंटर वालों की। अब हथाईपंथियों को इस बात की आशंका सता रही है कि कहीं गली-गुवाड़ी में आकर साक-भाजी बेचने वालों की तरह यह लोग भी फेरी लगाना शुरू ना कर दें। ऐसा हुआ तो गली-गुवाडिय़ां गूंज उठेंगी-सर्टिफिकेट ले लो..सर्टिफिकेट..।