चोरी से लाए गए थे भारत में कॉफी के बीज, आप भी जानिए इसका इतिहास

कॉफी के बीज
कॉफी के बीज

आज दुनियाभर में कॉफी का व्यापार बड़े स्तर पर अपने पैर पसारे हुए है। इसके स्वाद या फिर यूं कहें कि नशे के आगे हर कोई बेबस हो जाता है। दिन की शुरुआत हो, काम के बीच का तनाव या फिर सोने से पहले दिमागी थकान से राहत पानी हो, हर एक मौके पर कॉफी की चुस्कियों से लोगों की दोस्ती देखने को मिलती है। लेकिन क्या यह दीवानगी हमेशा से थी? इसका जवाब है- नहीं! जानकारी के लिए बता दें कि शुरुआत में कई धर्माचार्यों ने इस पर प्रतिबंध लगवाने के प्रयास किए, इसके बावजूद आज यह करोड़ों दिलों पर राज कर रही है। आइए आपको बताते हैं इसकी दिलचस्प कहानी। कॉफी बीज

मशहूर हैं इसके कई प्रकार

कॉफी के बीज
कॉफी के बीज

दुनियाभर में आज ब्लैक कॉफी के साथ-साथ, कैपेचीनो, लात्ते, एस्प्रेसो, इटेलियन एस्प्रेसो, अमेरिकैनो, टर्किश और आईरिश खूब शौक से पी जाती है। मार्केट में इसके बड़े-बड़े मशहूर ब्रांड्स तो हैं ही, लेकिन गली-नुक्कड़ पर मौजूद चाय वाले भी आज कॉफी की डिमांड को पूरा करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत भला कहां से हुई थी? अगर नहीं, तो आइए आपको बताते हैं।

9वीं शताब्दी में हुई कॉफी की खोज

कॉफी के बीज
कॉफी के बीज

जानकारों की मानें, तो कॉफी की पहचान इथियोपिया के लोगों ने 9वीं शताब्दी में की थी। दरअसल, इसे लेकर एक दंत कथा काफी चर्चित है, कहा जाता है कि पहाड़ी पर स्थित एक गांव में चरवाहे ने अपनी बकरियों को झाडिय़ों में मौजूद कुछ बेर खाते हुए देखा, इसके बाद बकरियों में स्फूर्ति आ गई और वे उछलने-कूदने लगीं। जिज्ञासा के चलते उसने ऐसे ही कुछ बेर खुद खाकर देखे, तो पाया कि इसके कुछ देर बाद ही उसे ताजगी महसूस होने लगी और दिनभर रहने वाली थकान में भी काफी कमी देखने को मिली। कहा जाता है कि इसी घटना से कॉफी को एक बड़ी पहचान मिली।

यूरोप के लोगों से कब हुआ परिचय?

बताया जाता है कि सुलेमान आगा जो कि तुर्की के राजदूत थे, उन्होंने पेरिस के शाही राजदरबार से कॉफी का परिचय कराया था। इसके बाद यहां के लोग इसके इस कदर दीवाने हुए कि साल 1715 तक सिर्फ लंदन में ही 2000 से ज्यादा कॉफी हाउस खोले जा चुके थे।

क्यों हुई इस पर प्रतिबंध की कोशिशें?

कई विद्वान इन कॉफी हाउस को मयखानों से भी खराब जगह कहकर पुकारते थे। उनका मानना था कि ये महज सामाजिक और राजनीतिक बहस का अड्डा मात्र हैं। साल 1675 में चाल्र्स द्वितीय ने तो यहां तक कह दिया था कि कॉफी हाउस में केवल असंतुष्ट और सत्ता के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले लोग ही मिलते हैं। ऐसे में, इन पर प्रतिबंध की भी तमाम कोशिशें की गई थीं।

13वीं सदी में हुई थी इसे पीने की शुरुआत

कॉफी पीने की शुरुआत 13वीं सदी में यमन से मानी जाती है। सबसे पहले सूफियों व धर्मावलंबियों ने इसे पीसा और फिर पानी में उबालकर इसका सेवन करना शुरू किया। इसे पीने से शरीर को तुरंत एनर्जी मिलती थी और धार्मिक विमर्श के दौरान दिमाग एकाग्र और शांत रहता था। शारीरिक थकान को दूर करने के लिए यह पेय काफी मशहूर हो गया और पूरे अरब में कॉफी हाउस खुलते गए। बताया जाता है कि 16वीं से 17वी सदी के बीच मक्का, मिस्र और तुर्की जैसे कई अरब देशों ने इन कॉफी हाउस पर रोक भी लगाई, लेकिन जिस रफ्तार से ये बंद होते थे, उससे दोगुनी रफ्तार से यह खुलते भी गए।

चोरी से आए थे भारत में इसके बीज

17वीं शताब्दी के आखिर तक सिर्फ उत्तरी अफ्रीका और अरब देशों में ही इसकी खेती की जाती थी। इसके सौदागरों की यही कोशिश थी कि इसकी खेती का फॉर्मूला किसी भी सूरत में उनके देश से बाहर न जाए। यही वजह है कि अरब देशों के बाहर कॉफी को सिर्फ उबालकर या भूनकर ही देखा जाता था, जिससे यह बीज खेती के लायक न रह पाएं।

जानकार बताते हैं कि 1600 के आसपास एक सूफी हजयात्री बाबा बुदान अरब से कॉफी के सात बीज चुराकर अपने साथ भारत ले आए थे। वे कर्नाटक के चिक्कामगलुरु जिले के रहने वाले थे और बताया जाता है कि अपनी कमर में बांधकर वे इन बीजों को भारत ले आए थे। इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत के मैसूर में इसका पौधा लगाया और पहली बार भारत के लोगों ने कॉफी का स्वाद चखा।

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