जयपुर। राजस्थान की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय हुई एसआई भर्ती में भारी धांधली की बात अब स्पष्ट हो गई है। 6 मंत्रियों की समिति ने अपनी पहली बैठक में इसे स्वीकार किया, लेकिन क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता है? समिति के संयोजक मंत्री जोगाराम पटेल ने गृह और पुलिस विभाग के अधिकारियों से रिपोर्ट ली और कहा कि नकल माफिया और डमी कैंडिडेट्स ने योग्य उम्मीदवारों की मेहनत को बेकार किया। यह एक गंभीर मामला है। इससे पूर्ववर्ती सरकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर भी उंगली उठती है।
समिति के संयोजक एवं मंत्री जोगाराम पटेल ने कहा, “कांग्रेस का कार्यकाल कलंकित करने वाला रहा है। आरपीएससी के सदस्यों का इस मामले में लिप्त होना बेहद चिंता का विषय है।” उन्होंने आगे बताया कि सरकार में आने के तुरंत बाद, उन्होंने एसआईटी का गठन किया, जिसने इस मामले में अच्छे परिणाम दिए हैं।समिति की अगली बैठक 10 अक्टूबर को होगी, जिसमें जांच के विस्तृत तथ्यों का खुलासा होगा। जोगाराम पटेल ने कहा कि अब तक 100 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, लेकिन बड़े आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई अभी बाकी है।
छोटे मगरमच्छों से बड़े मगरमच्छों की गिरफ्तारी
जोगाराम पटेल ने कहा, “अभी तक हम केवल छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ पाए हैं, लेकिन जल्द ही बड़े मगरमच्छों को भी पकड़ा जाएगा।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने ही लोगों के फोन टैप कराए थे, जिसका प्रमाण अब सरकार के पास मौजूद है। यह पूरा मामला राजस्थान की राजनीतिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है, और यह साबित करता है कि भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और ईमानदारी की कितनी कमी थी। अब देखना यह है कि इस जांच की प्रक्रिया से क्या नई जानकारी सामने आती है और क्या न्यायालय भी इस मामले में गंभीरता से कार्रवाई करेगा।
उधर, एक्सपर्ट का कहना है कि सरकार के मंत्री लगातार कह रहे हैं कि वे जल्द ही “बड़े मगरमच्छों” को पकड़ेंगे, लेकिन जब तक ठोस कार्रवाई नहीं होती, ये सब बातें केवल चुनावी साख बचाने के लिए की जा रही हैं। जोगाराम पटेल ने कहा कि अभी तक 100 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, लेकिन बड़े आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई अब भी लंबित है। यह स्पष्ट है कि जब तक वादों को निभाने में वास्तविकता नहीं होती, तब तक सिर्फ शब्दों की महत्ता है। अंततः इस मामले से यह संदेश निकलता है कि राजस्थान की राजनीति में वादों और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता है। अब देखना यह है कि क्या सरकार अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य स्थापित कर पाएगी या यह सब महज एक खेल है।