जयपुर। हरिदेव जोशी जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. सुधि राजीव ने अपनी पुरानी स्मृतियों का स्मरण करते हुए कहा कि राजस्थानी और हिन्दी साहित्य के उन्नयन के साथ मीडिया मैनेजमेंट में भी नन्द भारद्वाज को पूर्ण महारत हासिल है।
टेक्नोलोजी के इस युग में अपनी पुरानी रचना त्मकता को संजोकर आने वाली पीढ़ी को विरासत के रूप में सौंपना बड़ा काम है । इससे हम समाज को समृद्ध कर सकते हैं । यह हुनर उनके पास है। भारद्वाज लोक संस्कृति से गहरा जुड़ाव रखते हैं। राजस्थान उनके दिल में बसता है । नदी जैसे अपना रास्ता स्वयं बनाती है वैसे ही नंद भारद्वाज साहित्य में अपना रास्ता बनाकर आगे चलते रहे हैं ।
वे नन्द भारद्वाज के 75 वें बसंत पर अभिनंदन समारोह में बोल रही थी।डॉ सुधीर राजीव ने कहा कि भारद्वाज की रचनाओं में गांव और शहरों के बीच स्पष्ट सीमांकन। इनकी रचनाओं में वंचितों के लिए आवाज उठाने का उनका प्रयास हुआ है कलम और किताब से लेखक कितना ही बड़ा हो लेकिन वह एक्टिविस्ट के रूप में भी काम करता है। इसकी प्रतिबद्धता साफ दिखाई देती है। इनका साहित्य लोगों को समाजिक सरोकारों से जोड़ता है। मातृभाषा राजस्थानी के संवर्धन में इनका अमूल्य योगदान है।
वरिष्ठ पत्रकार लेखक और पूर्व कुलपति ओम थानवी ने कहा कि नंद भारद्वाज ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजन किया जो अपने आप में अनुकरणीय है। इनका सृजन साहित्य की उजास और समझ को बढ़ाता है। प्रचार माध्यमों को साहित्य संस्कृति के उन्नयन के प्रयास करने चाहिए।
नन्द जी की कविताओं की रेंज काफी बड़ी है।व्यक्ति के रूप में उनका संयम उनके साहित्य में भी दिखाई देता है जीवन के प्रति उनकी पकड़ गहरी है जो रचनाओं की प्रामाणिकता को बढ़ाती है।।थानवी ने कहा कि राजस्थानी की मान्यता का सवाल अपनी जगह है परन्तु प्रांत की विभिन्न बोलियों की रक्षा करना भी जरूरी है।
प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि लोगों के जीवन में जहां संश्लिष्टता बार-बार झलकती है वहां नंद भारद्वाज के जीवन और उनकी रचनाओं में सादगी और सौम्यता के दर्शन होते हैं। उन्होंने इसकी सत्यता की परख के लिए उनकी तीन कविताएं उद्धृत की।
प्रमुख आलोचक डॉ. राजाराम भादू ने कहा कि नंद भारद्वाज की पृष्ठभूमि आकाशवाणी और दूरदर्शन की रही है लेकिन यह वह दौर था जब प्रगतिशील आंदोलन के समान्तर जनवादी आंदोलन में विमर्श चल रहा था । इस विमर्श में नंद भारद्वाज ने महत्वपूर्ण और सक्रिय भागीदारी निभाई।डॉ. भादू ने कहा कि उनकी रचनाएं खास तौर से दौर अर और दायरो, साहित्य परंपरा, साहित्य आलोचना रो आधार महत्वपूर्ण कार्य हैं।
उन्होंने राजस्थानी साहित्य आलोचना को आगे ले जाने का काम किया। जब तक लेखक के भीतर अंतर्दृष्टि ना हो तो वह मूल्य संबंध संवर्धन का कार्य नहीं कर सकता। प्रतिष्ठित लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि समाज में अच्छा व्यक्ति वही हो सकता है जो अपने परिवार को साहित्य को और समाज को समय देता है। नंद भारद्वाज ने अपने जीवन में समय प्रबंधन का बहुत अच्छा निर्वहन किया है।
उन्होंने अपने जीवन में आए कई उतार-चढ़ावों का धैर्य से अविचल रहकर सामना किया।संवाद निरंतर और नंद जी री हथाई उनकी कृतियां समय से साक्षात्कार कराती हैं। प्रोफेसर राम बक्श ने कहा कि आलोचना और साहित्य में उन्हें नंद भारद्वाज ही लेकर आए। आज के दौर में जब सामाजिक रिश्ते खत्म हो रहे हैं तो सीखने की जरूरत है कि ऐसी अवस्था में शालीनता को कैसे बरकरार रखा जा सकता है।
युवा लेखिका डॉ निरूपमा चतुर्वेदी ने नन्द भारद्वाज की कविताओं और साक्षात्कार पर और कविता मुखर ने नन्द भारद्वाज की कहानियों में समाज के वंचित वर्गों की पीड़ा, अकाल त्रासदी भरे जीवन और लेखक के संवेदनशील पक्ष को प्रस्तुत किया।
नन्द भारद्वाज ने कहा की उनकी कृतियाँ ही उनके लेखन का आईना है।लेखक जन भावनाओं को अपनी रचनाओं में व्यक्त कर्ता है। रचनाओं में जीवन अनुभव बोलता है। कार्यक्रम का संचालन नीरज ने किया। इस अवसर पर यूवा युवा चित्रकार प्रजापत ने स्वयं द्वारा तैयार चित्र भारद्वाज को भेंट किया।
राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सचिव राजेन्द्र बोड़ा ने आभार व्यक्त किया। इस मौके पर शहर के प्रतिष्ठित लेखक, संस्कृतिकर्मी और गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। प्रारम्भ में राही सहयोग संस्थान के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार प्रबोध गोविल ने शाल ओढ़ाकर भारद्वाज का अभिनंदन किया।