शुद्ध शहद का सेवन , स्वस्थ निरोगी जीवन – कुलपति डॉ बलराज सिंह

कुलपति डॉ बलराज सिंह
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कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में मनाया गया विश्व मधुमक्खी दिवस

देश में मधुमक्खीपालन को बढ़ाना होगा ताकि मधुमक्खी द्वारा उत्पादित बहुमूल्य उत्पादों का निर्यात किया जा सके

कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया गया । इस कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय कुलपति डॉ बलराज सिंह ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा भी मीठी क्रांति के माध्यम से मधुमक्खी पालन के क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं डॉ बलराज सिंह ने वर्तमान में आंकड़ों पर बात करते हुए कहा कि देश में 2.5 लाख मधुमक्खी पालक हैं तथा 35 लाख बी बॉक्स हैं तथा इस साल देश में रिकॉर्ड शहद उत्पादन 1 लाख 35 हजार मेट्रिक टन रहा। राजस्थान की बात करते हुए उन्होंने कहा की राजस्थान तिलहन उत्पादन का कटोरा होने के कारण मधुमक्खी पालन में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं ।

मधुमक्खियां सौभाग्य व सफलता का प्रतीक – कुलपति डॉ बलराज सिंह

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मधुमक्खी से 20-25% उपज में बढ़ोतरी होती हैं तथा तिलहन में 1- 1.5% तेल की मात्रा बढ़ती हैं । प्याज़ व कद्दूवर्गीय फसलों में परागण में मधुमक्खी का महत्त्वपूर्ण योगदान हैं साथ ही बीज उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान हैं । परागण में 70-75% योगदान मधुमक्खी का होता हैं । देश में एपिस मेलीफेरा व एपीस इंडिका प्रजातियों का पालन किया जाता हैं । मधुमक्खी पालन की सहायता से बालोतरा क्षेत्र अनार उत्पादन का कटोरा बन गया हैं । साथ ही उन्होंने शहद के संघटन के बारे में बताते हुए कहा कि आम तौर पर शहद में 80-85% कार्बोहाइड्रेट, 15-17% पानी, 0.3% प्रोटीन, 0.2% राख और अमीनो-एसिड, फिनोल, पिगमेंट और विटामिन भी सूक्ष्म मात्रा में मौजूद होते है

मधुमक्खियां जैव विविधता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कीट– कुलपति डॉ बलराज सिंह

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साथ ही मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले उत्पादों के बारे में जानकारी देते हुए कहा की मधुमक्खी से हमें शहद प्राप्त होता है जो औषधि के रूप में भी प्रयोग होता है एवं शहद को सुपर फूड की संज्ञा दी गई हैं व बताया कि शुद्ध शहद का सेवन ,स्वस्थ निरोगी जीवन में सहायक हैं। मधुमक्खी से हमें मधुमोम भी मिलता है जो सौन्दर्य प्रसाधनों आदि में प्रयुक्त होता है तथा मधुमक्खी से प्राप्त होने वाला वेनम भी उपयोगी हैं तथा रॉयल जैली व एपी ट्रॉपी भी महत्वपूर्ण उत्पाद हैं तथा बताया कि मधुमक्खियों को सौभाग्य और सफलता का प्रतीक माना जाता है।

शहद प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला एक पौष्टिक पदार्थ– कुलपति डॉ बलराज सिंह

वे आत्मविश्वास, शुद्धता, निष्ठा और उत्पादकता का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। डॉ बलराज सिंह ने मधुमक्खियों के बारे में बताया की इसके वंश एपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं। मधुमक्खी वेगल नृत्य के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों की पहचान करती हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया की आईएआरआई में शहद परीक्षण की तीसरी सबसे बड़ी प्रयोगशाला शुरू की गई हैं तथा बताया की देश भर के सभी संस्थानों में बढ़ चढ़ कर विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जा रहा हैं । देश में मधुमक्खीपालन को बढ़ाना होगा ताकि मधुमक्खी द्वारा उत्पादित बहुमूल्य उत्पादों का निर्यात किया जा सके।

अधिष्ठाता व संकाय अध्यक्ष डॉ एम आर चौधरी ने बताया कि सर्वप्रथम मधुमक्खी दिवस स्लोवेनिया गणराज्य की पहल पर 2018 में मनाया गया। साथ ही इन्होंने कहा कि आवश्यकता से अधिक कीट नाशक प्रयोग करने से मधुमक्खीयों को नुकसान होता है अतः किसान भाई वैज्ञानिकों की सलाह को मानते हुए व आवश्यकता अनुसार कीटनाशक की मात्रा का स्प्रे करें।

कीट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अख्तर हुसैन ने मधुमक्खी पालन की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त किए साथ ही धन्यवाद व्यक्त किया असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शंकर लाल शर्मा ने भी मधुमक्खीपालन से भविष्य में होने वाले लाभ व आवश्यक प्रबंध के बारे में पीपीटी के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए।कार्यक्रम में निबंध व पोस्टर प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में रेडी , स्नातकोत्तर व पीएचडी के 353 विद्यार्थियों ने भाग लिया।