तनखा काटी-बाकी रकम वापस कर दी

उन्होंने जो किया उसे जायज नही कहा जा सकता। थोडी देर के लिए उस गैर कानूनी और समाज विरोधी कृत्य पर ‘ईमानदारी का ठप्पा जरूर ठोका जा सकता है। बिचारों ने इतनी बड़ी रिस्क ली। मेहनताना तो बनता है। अपनी मेहनत का पैसा काट के तेरा तुझको अरपण कर दिया। पांडु पुलिस के भरोसे रहते तो पता नहीं क्या होता। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

जो है, सो है। अगर वो कृत्य जायज होता तो जायज कहते-नाजायज है तो कहने में कैसी शरम। हम उनमें से नही, जो दिखती मक्खी निगल जाएं। इस पर एक लतीफा याद आ गया। लतीफा तो लतीफा है, उसमें सच-झूठ का सवाल नही उठता। उसमें सच्चाई भी टपकती हैं और मसखरी भी। ढाई-तीन-चार फुटिए चीनी रेस्त्रा में चाय पीने जाएं और चाय में मक्खी गिरी दिख जाए तो वो चाय के साथ मक्खी का भी भुगतान करते हैं। रूसी या अमेरिकी की चाय में मक्खी आ जाए तो वो ना चाय पीते हैं ना मक्खी निगलते हैं मगर चाय के पैसे थमा कर बाहर निकल जाते है। हमारे यहां ऐसा हो जाए तो चाय में पड़ी मक्खी निकाल कर पी लेते है। शिकायत करो तो उलटा सुनने को मिलता है-‘पांच रूपिया में माखी नहीं तो माखीमाळो आवेला..। हम भी उन्हीं में से। देखती आंख मक्खी कौन गिटे।

वो अगर अच्छा काम करते तो पीठ थपथपाते। शाबासी देते। हौंसला बढाते। आगे बढने की प्रेरणा देते। क्यूं कि उनने बुरा काम किया लिहाजा लानत तो बनती है। रियायत इसलिए करनी पडी कि उनकी बुराई में तनिक ही सही, अच्छाई की झलक तो नजर आई। उनने गुनाह किया-पश्चाताप भी तो कर लिया। यह नजरिया मानवीय दृष्टिकोण से तो ठीक लगता है, मगर कानूनी तौर पे गुनाह तो गुनाह है। न्याय की देवी की आंखों पे काली पट्टी बंधी रहती है। उसके मंदिर में कोई बड़ा है ना कोई छोटा। कोई तेरा है ना मेरा।

कोई हरा है ना भरा। कोई अमीर है ना गरीब। वहां गवाह और सबूतों के आधार पर फैसले होते हैं। कोई किसी का कत्ल करके कह दे कि गलती हो गई.. आइंदा ऐसा नही होगा.. तो उसका गुनाह माफ नहीं होता। कोई यह नही कहता कि चलो मार दिया तो मार दिया.. आइंदा किसी की हत्या मती करना..। ऐसा होने लग जाए तो अफरा-तफरी मचना तय। कोई ना कोई किसी ना किसी को टपका के बरी हो जाएगा। कोर्ट-कचहरी में हर गुनाह-अपराध की सजा तय है। साबित होने पर सुनाई भी जाती है। यह बात दीगर है कि अपराध साबित करने में बरसों लग जाते हैं।

यहां भी कटाक्ष और तंज भरा लतीफा तैयार। जज साब ने कटघरे के पास खड़े चचा को देख कर हैरत भरे शब्दो में कहा-‘इस उम्र में आप ने इन अम्मा को छेड़ा..शरम नही आई..। चचा ने झुका हुआ सिर उठाया और पोपली जुबान से फरमाया-‘हुजूर साठ साल पहले का वाकया है..। मैं अपने पोते और ये मोहतरमा अपने नवासे के साथ पेशी पे आए है। कई बार गैरकानूनी कृत्यों में से थोड़ी खुशबू भी आ जाती है। इसका मतलब यह नही कि कानून की नजर में अपराध क्षम्य हो गया। हां सामाजिक तौर पर देखें तो थोडी रियायत बनती नजर आती है।

हमने ऐसे किस्से भी सुने कि चोरों ने पूरा घर साफ कर दिया। दूसरे दिन अखबारों में छपा कि फलाणजी लोन लेकर अपनी बेटी की शादी की तैयारियां कर रहे थे। चोर सारा माल ले गए। अगले दिन चमत्कार हुई गवा। चोरी गया सारा माल वापस दरवाजे पे मिला वह भी क्षमा याचना के पत्र और पांच सौ एक रूपए के नेग वाले लिफाफे के साथ। हम चोरों को भले ही चोर या चोरटा कह दें मगर उनका भी धरम-ईमान होता है। घर से निकलने से पहले वो सफल चोरी की कामना करते हैं। उनके घर में भी भगवान का ‘आळा होता है। वो भी हमारे बीच से निकले है। उनके लिए अलग विधान-संविधान होता हो, ऐसा नहीं है।

जैसे हम-आप वैसे वो। उनका अपना धंधा है-इनका अपना। धंधे में मजूरी तो बनती है। घोड़ा घास से यारी कर लेगा तो भूखा मर जाएगा। माना कि उनने कानून तोड़ा मगर तनखा और मेहनताना काट के प्रायश्चित भी तो कर लिया। हवा बड़ी खाटू क्षेत्र से आई। वहां के एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल से चोर ढाई माह पहले दो-तीन लाख रूपए चुरा ले गए। यह पईसे दान पात्र में रखे थे।

मामला थाने में दर्ज भी हुआ मगर कार्रवाई के नाम पे कुछ नही हुआ। कल-परसों चमत्कार हुई गवा। लोग उस धार्मिक स्थल में गए तो देखा कि वहां नोटों का ढेर लगा था। गिने तो करीब 94 हजार निकले। यह वही रूपए थे जो दान पात्र से चोरी हो गए थे। दान पात्र में से चोरी तब हुई जब बिजली गुल थी और रकम वापसी के समय चोर भाईयों ने सीसीटीवी के तार काट दिए। कुल जमा थोड़ी रकम वापस आ गई। बाकी की तनखा समझ लो या दिहाडी या कि जितनी रकम चाहिए थी उतनी काम में ले ली बाकी वापस पूगती कर दी। चोरों ने चोरी तो की मगर ईमानदारी भी तो दिखाई। ऐसे में उन पर ईमानदार चोर की मुहर तो बनती है। पकड़े गए तो कानून अपना काम करेगा।