
शिंगल्स त्वचा से जुड़ी दर्दनाक बीमारियों में से एक है, जो अक्सर कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों मे देखने को मिलती है। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के अलावा हार्ट, किडनी और डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे लोगों में शिंगल्स बीमारी होने का संभावना ज्यादा बनी रहती है, क्योंकि इन बीमारियों में व्यक्ति की इम्युनिटी धीरे-धीरे कमजरो होने लगती है। इस बीमारी को लेकर लोगों में जानकारी और जागरूकताकी दोनों की ही कमी है। जिस वजह से बढ़ते वक्त के साथ ये समस्या गंभीर रूप ले सकती है। इस खतरनाक बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल ‘शिंगल्स जागरूकता सप्ताह’ मनाया जाता है, जो इस साल 26 फरवरी से 3 मार्च तक मनाया जा रहा है।
इन वजहों से होती है शिंगल्स की समस्या?

शिंगल्स बीमारी के लिए वही वायरस जिम्मेदार है, जिससे चिकनपॉक्?स होता है। चिकनपॉक्?स का वायरस वेरिसेला ज़ोस्टर इसके ठीक होने के बाद भी मरीज के नव्र्स में लंबे समय तक बिना कोई नुकसान पहुंचाए पड़ा रहता है। यह दो से पांच दशकों तक या उससे भी ज्यादा समय तक ऐसे ही शरीर में पड़ा रह सकता है, लेकिन जैसे ही शरीर की इम्युनिटी कमज़ोर होने लगती है, ये वायरस फिर से जिंदा हो जाता है। जिस वजह से शिंगल्?स हो जाता है। इसके चलते बॉडी पर रैशेज हो जाते हैं। इन रैशेज में चुभन, जलन के साथ दर्द भी होता रहता है। तनाव, चोट, कुछ दवाओं के रिएक्शन भी इन बीमारी के होने के अन्य कारणों में शामिल हैं।
इन लोगों को होता है शिंगल्स का ज्यादा खतरा?

जैसे-जैसे इंसान की औसत उम्र बढ़ती है, उसकी इम्युनिटी घटने लगती है जिस वजह से शिंगल्स होने का खतरा बढ़ जाता है। कोविड-19 के बाद वैसे शिंगल्स के मामलों में तेजी देखने को मिली है क्योंकि इस महामारी के चलते लोगों की इम्युनिटी कमजोर हुई है। दूसरा डायबिटीज, एचआईवी, कैंसर और किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट मरीजों की भी इम्युनिटी होने लगती है इस वजह से इनमें भी शिंगल्स का खतरा बना रहता है।
बढ़ जाता है इन बीमारियों का खतरा
शिंगल्स के चलते रैशेज वाली जगहों पर नर्व पेन होता है और ऐसा नहीं कि ये तुरंत ठीक हो जाता है, बल्कि रैशज ठीक होने के कई महीनों या सालों तक बना रह सकता है। डॉक्टर इसके लिए मरीज़ों को दवाइयों का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन ये दवाइयां महंगी आती हैं। इसके अलावा, शिंगल्स के चलते रैशेज़ में सेकेंडरी बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने की भी संभावना बनी रहती है। समय रहते इलाज न कराने पर मरीज अंधा हो सकता है, सुनने की क्षमता जा सकती है और मानसिक समस्याओं का भी शिकार हो सकता है।
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