क्या आप जानते हैं धूप में सुखाकर बनाई जाती थी गुजिया, जानिए इस डिश का है तुर्की कनेक्शन

गुजिया
गुजिया
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चारों तरफ इस समय होली की धूम मची हुई है। रंगों का यह त्योहार कुछ ही दिनों में आने वाला है। ऐसे में लोग इस त्योहार की तैयारियों में व्यस्त है। होली हिंदू धर्म के अहम और सबसे बड़े पर्व में से एक है। यह त्योहार अपने रंगों के अलावा अपने खानपान के लिए भी काफी मशहूर है। इस दौरान कई सारे व्यंजन बनाए जाते हैं, जिसे लोग बड़े चाव से खाते हैं। गुजिया इन्हीं व्यंजनों में से एक है, जिसे होली पर बनाने का अपना अलग महत्व है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में जानेंगे गुजिया के इतिहास और होली से इसके कनेक्शन के बारे में-

गुजिया का इतिहास

गुजिया का इतिहास
गुजिया का इतिहास

गुजिया का सबसे पहला उल्लेख 13वीं शताब्दी में मिलता है। यह भारत में मिडिल ईस्ट से आई थी और इसे बनाने का तरीका वर्तमान में बनाई जाने वाली गुजिया से काफी अलग है। उस समय इसे मैदे की जगह गेहूं के आटे से बनाया जाता था और भरावन के लिए गुड़ और शहद के मिश्रण का इस्तेमाल क्या जाता है। इसके अलावा तेल में तलने की जगह इसे धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है।

गुजिया का तुर्की से कनेक्शन

गुजिया का तुर्की से कनेक्शन
गुजिया का तुर्की से कनेक्शन

इसे समोसे का मीठा प्रकार माना जाता है। साथ ही इसे लेकर ऐसी मान्यता भी है कि गुजिया तुर्की के बकलावा से प्रेरित एक व्यंजन है, जिसे आटे से तैयार की गई परत में शहद, चीनी और ड्राई फ्रूट्स भरकर बनाया जाता है। इसके अलावा इसे लेकर एक और थ्योरी है, जो कहती है कि भारत में गुजिया को सबसे पहले 17वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश बनाया गया था। यहीं से यह पूरे देश में मशहूर हो गई।

कैसे शुरू हुआ होली पर इसका चलन

ये तो हुई गुजिया के इतिहास की बात, लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर होली से इसका क्या कनेक्शन है। आइए आपको बताते हैं होली पर कैसे शुरू हुआ गुजिया खाने का चलन। पीछे मुडक़र देखा जाए, तो पता चलेगा कि होली पर इसे खाने की शुरुआत सबसे पहले ब्रज में हुई थी। कहा जाता हैं कि तब भगवान कृष्ण के भोग के लिए इसे विशेष रूप से बनाया गया था। उसी समय से ब्रज से शुरू हुआ होली में गुजिया बनाने का चलन पूरे देश में फैल गया।

इन नामों से भी जानी जाती है गुजिया

होली के अलावा दिवाली और बिहार में छठ पूजा के मौके पर भी लोग गुजिया बनाते हैं। इसे देशभर में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। इसे बिहार में पेड़किया, गुजरात में घुघरा, महाराष्ट्र में करंजी, तमिलनाडु में सोमास, तेलंगाना में गरिजालु, आंध्र प्रदेश में कज्जिकायलु, कर्नाटक में करजिकायी या करिगादुबु के नाम से जाना जाता है।

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