डोल का बाढ़ जंगल को बचाने जनता की हुंकार, पेड़ों की कटाई पर भड़का जनाक्रोश

भड़का जनाक्रोश
भड़का जनाक्रोश
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जयपुर। राजधानी के डोल का बाढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित पीएम यूनिटी मॉल परियोजना के लिए चल रही पेड़ों की कटाई के विरोध में आज एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई को और मजबूती मिली। पूर्व डीएफओ देवेंद्र भारद्वाज के मार्गदर्शन में की गई वृक्ष गणना के आंकड़े सामने रखे गए, जिन्होंने सरकारी दावों की पोल खोल दी। वृक्ष गणना में बताया गया कि जिस भूमि पर विकास परियोजना प्रस्तावित है, वहां 203 पेड़ मौजूद हैं। इनमें से 14 पेड़ पूरी तरह विकसित खेजड़ी के हैं, जो राजस्थान का राजकीय वृक्ष भी है। यह आंकड़ा रीको द्वारा बताए गए महज 38 पेड़ों के दावे को झुठलाता है।

इस गणना में सभी पेड़ों को जियो-टैग किया गया है, जिससे उनकी उपस्थिति का डिजिटल प्रमाण भी उपलब्ध है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि यह आंदोलन सिर्फ पेड़ों को बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समूचे पारिस्थितिक संतुलन और जनता की भूमिका को केंद्र में रखने की एक व्यापक पहल है।आंदोलन से शुरुआत से जुड़े शौर्य गोयल ने कहा कि यह सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि एक सकारात्मक विकल्प भी है। उन्होंने बताया कि परियोजना को डोल का बाढ़ जैसे संवेदनशील क्षेत्र से हटाने की मांग को लेकर एक वैकल्पिक विकास योजना भी पेश की गई है। यह योजना वास्तुकारों, पर्यावरण विशेषज्ञों और शहर नियोजकों की मदद से तैयार की गई है, ताकि विकास और संरक्षण दोनों के बीच संतुलन बना रहे।

डोल का बाढ़ समिति के सदस्य आशुतोष रांका ने बताया कि समिति ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, उद्योग मंत्री, मुख्य सचिव और रीको अध्यक्ष से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की है। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ के अनुरोध पर समिति ने ‘बायोडायवर्सिटी पार्क’ की विस्तृत योजना भी अधिकारियों को सौंपी थी, लेकिन अफसोस की बात है कि अब तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है।वहीं, पक्षी एवं पर्यावरण प्रेमी कोमल वास्तव ने इस क्षेत्र की जैव विविधता की जानकारी देते हुए बताया कि इस इलाके में बड़ी संख्या में पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं, जिन्हें डॉक्युमेंट किया गया है। उन्होंने कहा कि यह जंगल पारिस्थितिक रूप से अत्यंत समृद्ध है और इसकी उपेक्षा करना आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी खुलासा किया गया कि रीको ने हाल ही में पेड़ों की छंटाई के नाम पर बड़े पैमाने पर कटाई शुरू कर दी है। जिन पेड़ों को उनके आंकड़ों में शामिल ही नहीं किया गया, वे सबसे बड़े खतरे में हैं। कटाई की रफ्तार और तरीकों से यह स्पष्ट हो रहा है कि पर्यावरणीय पहलुओं को पूरी तरह से दरकिनार किया जा रहा है।कल शाम जंगल में अचानक हुई कटाई के विरोध में समिति ने तुरंत धरने का आह्वान किया, जिसका जवाब शहरवासियों ने बड़े जनसमर्थन से दिया। आज सुबह आठ बजे से ही दो सौ से अधिक नागरिक डोल का बाढ़ पहुंचे और कटाई के विरोध में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। यह साफ संकेत है कि जयपुर की जनता पर्यावरण को लेकर अब जागरूक और संगठित है।

समिति की मांग है कि कुंज क्षेत्र में चल रही पेड़ों की कटाई को तुरंत रोका जाए और उनके द्वारा प्रस्तुत वैकल्पिक विकास प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर कोई समाधान निकाला जाए। समिति ने साफ कहा है कि वे इस आंदोलन को मजबूती से आगे बढ़ाएंगे और पर्यावरण विनाश के हर प्रयास का पूरी ताकत से विरोध करते रहेंगे।यह आंदोलन न सिर्फ एक जंगल बचाने की लड़ाई है, बल्कि यह उस सोच का भी प्रतीक है, जो विकास के साथ-साथ प्रकृति को सम्मान देने की वकालत करती है। अब यह जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की है कि वह जनभावनाओं की आवाज़ को सुने और संतुलित विकास की ओर ठोस कदम उठाए।