‘मापदण्ड और प्रक्रिया समाप्त कर आरक्षण का जाति आधार पर हो गया राजनीतिकरण’

साक्षात्कार: कुशल विचारक, प्रबुद्ध लेखक, कांग्रेस विचारधारा के कट्टर समर्थक,सेवानिवृत आई.ए.एस, राजनीतिज्ञ, पिछड़ी जाति के आरक्षण के प्रणेता डॉ. सत्यनारायण सिंह

साक्षात्कारकर्ता- डॉ. यश गोयल

सरल, सहज, सौम्य, मृदुभाषी, और सुसंस्कृत जैसी उपमाओं के धनी हैं- डॉ. सत्यनारायण सिंह। कुशल विचारक, प्रबुद्ध लेखक, कांग्रेस विचारधारा के कट्टर समर्थक, मंजे हुए भारतीय सेवा के प्रशासक (सेवानिवृत आई.ए.एस.), छात्र जीवन से राजनीतिज्ञ, गरीबों के मसीहा, पिछड़ी जाति के आरक्षण के प्रणेता डॉ. सिंह अपने जीवन के 86वें वर्ष में भी समाज, जाति, शहर, साहित्य और संस्कृति के उन्नयन के लिये कटिबद्ध हैं। आपने पत्रकारिता के लिये भी प्रयास किये और गणराज्य और संदेश साप्ताहिक को अपनाया । लॉ की डिग्री और पीएच.डी. तक के उच्च अध्ययन और अपने लंबे आई.ए.एस. के कैरियर में आप 18 विभागों में हेड रहे । इसके अलावा डॉ. सिंह 16 समितियों के सदस्य, 7 महत्वपूर्ण पद जिसमें सदस्य सचिव, राजस्थान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग भी है जिसकी छह रिपोर्ट भी आपने सरकार को प्रस्तुत की थीं । आपने न्यायालय में 18 जनहित याचिकाएं भी दाखिल की। इन सब खूबियों और जन-प्रशंसाओं के साथ डॉ. सिंह आज भी सक्रिय हैं, कांग्रेस सरकार के अघोषित वरिष्ठ सलाहकार हैं, और राष्ट्रीय समाचारपत्र-मैग्जींस में नित लिख रहे हैं।

जयपुर के राज परिवार से जुड़ी धाभाई फैमली में 16 जुलाई, 1935 को जन्में सत्यनारायण के पिता वकील थे। बड़े भ्राता विद्यार्थी नेता व श्रमिक नेता थे। राजनीति में सक्रिय थे। वे जयपुर की राजनैतिक-समाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय थे। उनसे प्रेरित होकर आप राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े। विद्यार्थी जीवन में विश्वविद्यालय महाराजा कॉलेज छात्रसंघ का अध्यक्ष चुने गये। युवक कांग्रेस का प्रथम संयोजक मनोनीत किया गया। भूतपूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा, किसान नेता कुम्भाराम आर्य और श्री जयनारायण व्यास का सानिध्य व आर्शीवाद मिला। छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ आप राष्ट्रीय स्तर के राज नेताओं जैसे आचार्य विनोबा भावे, पंडित जवाहरलाल नेहरु, जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री आदि के संपर्क में आये और उनके आदर्शों को जनता तक पहुंचाने के लिये कठिन कार्य किये। डॉ. सिंह की डॉ. यश गोयल से हुई अनवरत वार्तालाप के महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं।

इन गत दो दशकों में गुर्जर आरक्षण ने भी विश्व में सभी के कान खड़े कर दिये थे और आज भी विधिवेता लगे हुए हैं । कांग्रेस और भाजपा सरकारें कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से भयभीत रही हैं । ऐसा क्यों होता आया है?
बैंसला ने आरक्षण को लेकर जो आन्दोलन शुरू किया था उसे पहले हमने शुरू किया था-सामाजिक न्याय मंच से। जिसमें आरक्षित को संरक्षण और उपेक्षित को आरक्षण जिसमें इकोनोमिक आधार पर भी लोगों को आरक्षण मिल गया। उस समय में जाटों का जो आरक्षण हुआ तो उस पर गुर्जरों (ये जाति यूनाईटेड और औरगेनाइज्ड है, एग्रेसिव जाति है सारे साधन भी है, पॉलिटिकल भी। ने पहले तो मांग की कि उन्होंने जनजाति बनाने की हमें शैडूयल ट्राईब से किया जाए। मगर शैडूयल ट्राईब का मुकाबला वो नहीं कर सके। क्?योंकि शैडूयल ट्राईब में विद्रोह हो गया तो उन्होंने ओबीसी में मांग करना शुरू किया। उस समय उसको नेता बनाने में वसुन्धरा राजे गवरमेन्ट का हाथ रहा। उस समय में तुरन्त आन्दोलनकारियों के ऊपर फायरिंग कर दी जिससे 70 के करीब लोग मर गये थे और उसकी वजह से उसकी एक लीडरशीप कायम हो गई। उसके बाद में आए गहलोत साहब उनकी थ्योरी यह रही की मैं किसी भी तरह से इन पर वो वायलेन्स नहीं करूंगा और निर्णय उनसे चर्चा करके ही समाधान करूंगा । अब गत वर्षों से वो बात नहीं रही, क्योंकि अब लोग जानने लग गये कि इसमें पॉलिटिक्स ज्यादा है और गुर्जर वेलफेयर कम है ।

मगर जैसा मैंने कहा की एक प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण उनकों नहीं मिल सकता था, यह अब सुप्रीम कोर्ट में भी ये मामला पेंडिंग है। 50 प्रतिशत से आगे ज्यादा टुकड़ा करके बांट नही सकते है- आरक्षित वर्ग को। आरक्षण का राजनीतिकरण हो गया। जाति आधार पर हो गया। मापदण्ड व प्रक्रिया समाप्त कर दी गई। राजनीतिक दृष्टिकोण से आन्दोलन से निपटा जाने लगा है। इसलिए मजबूत बड़ी कौमों की पूछ हो जाती है। 40 ऐसी पिछड़े वर्ग है जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला मगर उनकी सुनने वाल कोई नहीं है। 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध है। आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान निर्माताओं की मंशा के विरूद्ध है। उच्चतम न्यायालय ने माना है सभी लिस्टों का रिवाईज किया जाना चाहिए। क्रिमीलेयर होना चाहिए, जिन वर्गो के परिवारों को लाभ मिल चुका है उनके स्थान पर उसी वर्ग के अत्यधिक पिछड़ को आरक्षण लाभ मिले। जिन वर्गो को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल चुका है उन्हें नहीं दिया जाना चाहिए।

आजादी के 75 वर्ष बाद भी क्या राजनीतिक और सरकारी नौकरियों में आरक्षण चलना चाहिये ?
एससी, एसटी और ओबीसी की बहुत सी ऐसी जातियां/कोमें है जिनका आज तक एक भी नौकरी में किसी को पर्दापण नहीं हुआ। हमारे यहां दुर्भाग्य से क्या हो गया है जो इन वर्ग्रों से रिर्जव केटैगरीज में जो बढ़ गये है वो ही फैमिलिज और जो सब बढ़ गये, सब कास्ट वो ही आगे बढ़ रहे है । और बाकी दूसरी नहीं बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसकी समीक्षा करके जिन लोगों को मिल गया है या जो लोग आगे बढ़ गये है या पढ़ गये है जो नौकरियों में आ गये है, सम्पति वाले हो गये है पॉलिटिक्स में अच्छे हो गये है उन लोगों के बजाए उसी कैटेगरीज में ऐसे लोग है जो पूर्णरूप से डिवाइड है जिनकों अभी तक लाभ नहीं मिला है उनका चलना चाहिए क्योंकि अभी तक सोशियल डिस्क्रपेन्सी और अत्याचार हमारे समाज से मिटा नहीं है, आरक्षण राजनीति में तो हर 10 साल का ही बढ़त है। इन पर विचार करना जो आदमी जो कोमें/जातियां तीन-तीन बार जिनकी कैटैगरीज बढ़ गई है उनकी समीक्षा करके जो लोग अभी तक वास्तव में सोशियली बेकवर्ड है जिनसे आज की तारीख में भी अत्याचार भी होते है। इतने पिछड़े है जिनको कुछ भी नहीं मिला है उन लोगों के लिए तो रखना चाहिए बाकी अब इसकी समीक्षा करके ठीक करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी है की हर 10 साल में इस लिस्ट का रिविजन करों। अनफोरचूनेटली कोई रिवाईज करता ही नहीं है आज कितने दशक बीत गये।

आपने अनेकों धार्मिक कार्य भी किये हैं, जनहित याचिकाएं लगाई हैं । क्या समाज में राजनीति को धर्म से जोड़कर वोट बटोरने और देश चलाने के वादे किये जाने चाहियें ?
मैं कांग्रेस के सिद्धान्तों में विश्वास रखता हूं प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य रहा हूं। इस देश को कांग्रेस पार्टी की आवश्यकता है, साम्प्रदायिक एकता, सामाजिक न्याय, समाजवादी विचारधारा, असमानता को कम करना, ग्रामीण विकास, विकेन्द्रीयकरण की आवश्यकता है। अनेक सुधारों की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार, सामाजिक पक्षपात, नौकरशाही, लालफीताशाही व आर्थिक व सामाजिक असमानता को दूर करने व महिला व बाल सशक्तिकरण की आवश्यकता है। कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो इस और कुछ कर सकती है। मैं विदेशों मे भी गया हूं। विदेशों में अध्ययन किया है। हमें पश्चिम की अच्छी बातों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना होगा। धार्मिक सामाजिक सहिष्णुता, श्रम सुधार, महिला सशक्तिकरण को अपनाना होगा। हम अभी सामाजिक आर्थिक उन्नति में पीछे है।

इस देश में संकुचित राष्ट्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, पूंजीवाद नहीं चल सकेगा। किसानों व ग्रामीण क्षेत्रों की उन्नति करनी होगी। लघु व मध्यम उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, पशुपालन डेयरी को प्रोत्साहन देना होगा। इस देश के लिए नेहरू नीति, मिश्रित अर्थ व्यवस्था उपयुक्त है। औद्योगिकरण से असमानता नहीं बड़ेे इसका ध्यान रखना होगा। यदि सामाजिक समानता नहीं रही, धार्मिक कटुता व वैमनस्य बड़ा, बेरोजगारी, बीमारी, गरीबी बड़ी तो अपराध बड़ेेगा, शांति व्यवस्था खतरे में रहेगी। सामाजिक आर्थिक समानता पर जोर रखना होगा। हमें इस देश में सुरक्षा बलों में राजनीति को पृथक रखना होगा। संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता कायम रखनी होगी, उन्हें मजबूत करना होगा। साफ्ट पूंजीवाद व वन पार्टी डेमोक्रेसी इस देश की प्रगति को रोकेगी।

आप सूचना और जनसंपर्क निदेशालय में तीन बार डायरेक्टर भी रहे हैं। तब और आज के दौर में क्या फर्क लगता है, आपको?
मैं तीन भू.पू. मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में सूचना व जनसम्पर्क निदेशक में रहा। मैंने राज्य की भौगोलिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक उत्पकृष्टता को देश-विदेश के समाचार-पत्रों के माध्यम से प्रचारित प्रसारित कराने के लिए देश के वरिष्ठ लब्ध प्रतिष्ठित सम्पादकों व वरिष्ठ पत्रकारों के दौरे कराये। फिल्म डिवीजन के माध्यम से लघु फिल्में बनवाई। सूचना व जनसम्पर्क कार्यालयों को पत्रकारों का कार्यस्थल बनाया। आज का जनसम्पर्क निदेशालय एक सुन्दर अच्छे प्रभावशाली सरकारी विभाग की तरह कार्य करता है। कार्यों में सुधार हुआ है परन्तु पत्रकारों को जितनी सूचनायें मिलनी चाहिए शायद नहीं मिलती। एक व्यक्तिगत सम्पर्क शायद कम हुआ हैं। पत्रकार अब उसे अपना कार्यालय शायद नहीं मानते जैसा मुझे कुछ महानुभाव कहते है। परन्तु ये चेंज बेटर के लिए है। मेरा कार्यकाल स्वर्ण युग था। कोई भ्रष्टाचार, पक्षपात, विवाद, तकनीकि कमी नहीं थी ।

आज के 5जी युग और सोशल मीडिया के युग में युवा पीढ़ी के लिये साहित्य और संस्कृति में आपकी प्रतिक्रिया क्या है ?
सोशियल मीडिया हो, या आप टेलीविजन पर भी देख लो। विगत में हमारे साथ में जो टॉप के इन्डियन मीडिया के पर्सन थे उन लोगों की सोच और राष्ट्रहित पर समाहित रहता था। वह सब मूल्य आज की तारीख में नहीं है। आज की तारीख में तो में मीडियामेन कैसे भी पॉपलिरिटी गेन करे या कैसे भी लाईम-लाईट में आयें, उसके लिए कुछ भी करना पड़े, वह कर रहा है। जिम्मेदारी से तो ना सोसियल मीडिया में चल रहा है और ना हीं हमारे टेलीविजन मीडिया में चल रहा है। अब प्रिन्ट मीडिया में भी वो बात नहीं रही है।