वंदे भारत एक्सप्रेस को हमने भविष्य की रफ्तार का प्रतीक मान रखा था चिकना, चमकदार, एरोडायनामिक, जैसे पटरियों पर उड़ान भरती हो। पर पाली जिले के फालना के पास अचानक ‘भविष्य’ की मुलाकात ‘परंपरा’ से हो गई । वो भी ऐसी कि इतिहास ने ट्रैक पर ही दम तोड़ दिया। जी हां, दो ऊंट साहब बिना टिकट वीआईपी अंदाज़ में पटरियों पर आ धमके और वंदे भारत की नाक तोड़ गए।
रेलवे वाले कहते हैं ‘नोज़कॉन’ क्षतिग्रस्त हुआ, वाइपर कवर टूटा, शीशे में दरार आ गई! सुनकर लगता है जैसे ट्रेन अस्पताल में भर्ती है और डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर में भाग-दौड़ कर रहे हैं। लेकिन ग़नीमत ये रही कि जोधपुर पहुंचते-पहुंचते ‘सर्जरी’ हो गई और वंदे भारत फिर से ‘सुंदर-सुशील’ बन गई।
अब सवाल ये है कि आखिर ऊंट वहां कर क्या रहे थे? शायद उन्हें भी ‘सेमी-हाईस्पीड’ का रोमांच चाहिए था। या फिर वे जानना चाहते थे कि ये चमकती हुई चीज़ आखिर किस रफ्तार से दौड़ती है। दुर्भाग्यवश, उनका ‘जिज्ञासा-भ्रमण’ अंतिम सफर बन गया।
रेलवे पुलिस जांच कर रही है, लेकिन कौन बताए कि रेगिस्तान की शान ऊंट कब से ‘पटरियों का खतरा’ हो गए? ये हादसा हमारे बुनियादी सवाल भी उठा रहा है – क्या हाईस्पीड ट्रेनें रेगिस्तान के साथ सामंजस्य बिठा पाएंगी या हर नई वंदे भारत के लिए एक नया ‘ऊंट-गाइड’ नियुक्त करना होगा?
फिलहाल वंदे भारत फिर पटरी पर है, पर उसकी नाक को अभी भी शायद ऊंटों की याद सता रही होगी।
– बलवंत राज मेहता