बरसात में बहती जिम्मेदारियां,उफनती सियासत

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राजस्थान में बरसात आई और सड़कों से लेकर सरकार की जिम्मेदारियों तक सब बह गया।स्कूल की छतें गिरीं, मासूम बच्चों की जान गई, पर क्या टूटा? केवल बच्चों का भविष्य ,नेताओं की नींद नहीं।

अब राजनीतिक हलचल शुरू। कोई मौके पर जाकर भीगे कुर्ते में फोटो खिंचवा रहा है, कोई विधानसभा में बयान दे रहा है “दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।” दोषी कौन? सीमेंट का थैला, ईंट का ठेला या वो सिस्टम जो बरसों से जिम्मेदारियों की दीवार पर काई जमा रहा है?

मानसून अभी भी तेवर दिखा रहा है। जल निकासी की व्यवस्था चौपट है। रास्ते जाम हैं। पाश कॉलोनियां हों या कच्ची बस्तियां, हर जगह हालात ‘रैन-एरेस्ट’ हैं पानी ने सबको बंधक बना रखा है। स्कूल भवनों की हालत वैसे ही थी जैसे पुराने टायर पर नई पॉलिश ऊपर से चमक, अंदर से सड़न। बारिश ने बस सच्चाई उजागर कर दी।

सरकारी कागजों में हर साल मरम्मत होती रही, पर असल में बजट केवल ‘फ़ाइलों की छतरी’बनकर रह गया। अब हर नेता कह रहा है “हम जांच कराएंगे।”

जांच मतलब पानी सूखने तक इंतजार और अगले बरसात तक नई फाइल। असल सवाल ये है क्या अगले साल भी यही बरसात होगी या जिम्मेदारियां कभी सूखेंगी?

– बलवंत राज मेहता