अंगरेजी-देसी

कोई इशारा समझे या ना समझे पर जुमला जरूर उछलता रहा है। आज से नही अरसों-बरसों से उछल रहा है। यह बात दीगर है कि इशारा किसी की समझ के बाहर तो कभी समझ इशारे मेें। आगे चल कर अन्य कई धाराएं भी इसमें मिलती रहेंगी। जहां धार है,वहां धारा है। जहां धारा है, वहां धार है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


पक्का तो नहीं कह सकते कि मगर ऐसा लगता है कि इशारे की उत्पत्ति सारे से हुई है। सारे के माने सब-हम सब..। सारे के सारे गामा को लेकर गाते चले..। सारे का संसार लंबा-चौड़ा है। लंबी सोच रखें तो पूरा ब्रह्मांड इसमें। सारी जमीन। सारा आसमान। सारी दुनिया। सारे देश। सारे लोग। सारी वस्तुएं सारे साधन। सारे तामझाम। सबों का समावेश सारों में। सारे जहां से अच्छा.. हिन्दोस्तां हमारा.. हम बुलबुले हैं इसकी…यह गुलिस्तां हमारा..। हम-आप भी सारों में शुमार। लगता है किसी ने सारा के आगे ‘इ लगा कर ‘इसारा बना दिया। उसके बाद हिन्दी के किसी जानकार ने ‘स को गलत देखा तो उसे हटा के ‘श डाल दिया तो हो गया ‘इशारे आगे चलकर सारे अपनी जगह और इशारे अपनी जगह।


पहला इशारा किस ने, कब और किस प्रसंग पे किया था, इसका तो पता नहीं। अलबत्ता इतना जरूर जानते हैं कि इस का इतिहास-भूगोल खासा पुराना है। इशारों के तार सीधे तौर पे संकेत से जुड़े हुए। कई बार संकेत साफ और शुद्ध तो जुड़े हुए। कई बार संकेत साफ और शुद्ध तो कभी कोड वर्ड में। शॉर्टकट में। आजकल फेसबुक में ऐसे कोड भतेरे मिल जाएंगे। खुद फेसबुक को ‘एफबी में सिमटा दिया। जो लोग कभी फेस-टू-फेस मिलने में ज्यादा यकीन रखते थे, वो आज फेसबुक में जैरामजी की कर के इतिश्री कर रहे हैं।

इसके अपने कारण। एक तो कोरोना काल तिस पर मानखा-घरेलु और बाहरेलू के झंझटों में ऐसा उलझ गया कि किसी के पास फुरसत से बैठने की फुरसत ही नही। कोई कही आना-जाना या किसी से मिलना भी चाहे तो घरवाले बाहर जाने से मना कर देते हैं लिहाजा ज्यादातर वरिष्ठ लोग या तो घरों में या फिर घरों के आस-पास के सार्वजनिक पार्कों और मंदिरो तक सीमित। फेसबुक ने जो शॉर्टकट तय किए उसमें जीएम-जेएसके और टीक्यू सर्वाधिक चर्चित। जीएम का इशारा गुड मॉर्निंग की तरफ। पारंपरिक परिवार से जुड़े लोग आज भी सुप्रभात अथवा राम-राम के साथ दिन की शुरूआत करते हैं। फेसबुक ने उसे जीएम में सिमटा दिया। इसी प्रकार जै श्री कृष्ण को जेएसके और थैंक्यू को टीक्यू के ब्रेकेट में बांध दिया।

कई बार इशारों में विरोधाभास नजर आता है। ज्यादातर लोगों ने इस पर खासा गौर नही किया मगर बाल की चाल समझने वाले इसकी गहराई तक जा चुके है। कहावत है बाल की खाल और हथाईबाजों ने बाल की चाल का उपयोग इसलिए किया ताकि लोग इसके पीछे छुपा इशारा समझ सकें। एक तरफ कहा जाता है समझदार को इशारा काफी है और दूसरी तरफ ‘राज को राज रहने दो..की लहरियां गूंजती सुनाई देती है। लोगबाग असमंजस में कि इतकू जाएं या उधर तीसरी तरफ ‘समझ-समझ के समझो.. समझना भी एक समझ है का जुमला उछलता नजर आता है।
इशारों और समझ के तार आपस में इस प्रकार गूंथे हुए कि सुलझाने की हर कोशिश नाकाम होना तय समझो।

मूक-बधिर एक-दूसरे के इशारे समझ जाते हैं। आशिक-माशूक इशारों-इशारों में दिल खोल के रख देते हैं। उनके लिए कहा जाता हैं-‘मजमून भांप जाते हैं.. लिफाफा देख कर..। कई लोग आंखों-आंखों में बात कर लेते हैं। पर हथाईबाज जिन इशारों की बात कर रहे हैं वो सबसे अलहदा। सबसे अलग। सबसे न्यारा। समझने वाले एक शब्द और तीर में सब कुछ समझ जाते हैं। पेलीपोत तो पढ़-देखकर कई लोग हैरत में पड़ गए थे। धीरे-धीरे उनकी समझ में भी आ गया। हांलांकि जिसके लिए इशारा किया गया उससे उनका दूर का नाता भी नहीं, पण इशारा समझ में आ गया। इशारे में ना कोई कोडवर्ड ना कोई पेच या अळूझे। जो उससे संबंध रखते हैं, उन के लिए क्लू ही काफी है।


हथाईबाजों ने गली-गुवाडिय़ों से लेकर हाईवे ‘ज और नेशनल हाईवे ‘ज पर ‘अंगरेजी और ‘देसी लिखे बोर्ड टंगे देखे उनके नीचे दिशा दर्शाते हुए तीर भी। काफी समय तक तो समझ में नही आया लगा कि यहां अंगरेजी माध्यम की और उधर देसी माध्यम की स्कूल होगी। बाद में पता चला कि भाईसेणों ने कलाकारी कर रखी है। दुकानों का पूरा नाम नही लिख कर सिर्फ इशारा कर दिया। समझने वाले इशारा समझ गए। समझ-समझ के दुकानों तक पहुंच गए। जिन को नही समझना है उन्हें समझने की जरूरत ही नहीं।