किसान आंदोलन : किसान आज निर्णायक रणनीति की घोषणा करेंगे, सरकार के साथ बेनतीजा रही थी वार्ता

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आंदोलनकारी किसान संगठनों और सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद “डॉयलॉग” अब “निर्णायक” मोड़ पर पहुंच गया है। अगर आठ जनवरी को दोनों हाथ से “ताली” नहीं बजी तो “डेडलॉक” तय है। अगली वार्ता से पहले अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर सरकार के साथ-साथ आंदोलनकारी किसान संगठनों की भी नजरें टिक गई हैं।

सोमवार को सरकार से वार्ता के बाद सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई संभव है। मंगलवार को ही पंजाब के किसान संगठनों की बैठक और उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में अगली रणनीति बनेगी। पहले से घोषित छह जनवरी के कुंडली-मानेसर-पलवल  (केएमपी) एक्सप्रेस-वे ट्रैक्टर मार्च पर आठ जनवरी की वार्ता तक पुनर्विचार संभव है। सरकार से सोमवार की बात, प्रस्तावित वार्ता की रणनीति और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर मंगलवार अहम साबित होने वाला है।

सुप्रीम सुनवाई

किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई संभव है। आठ पक्षकार किसान संगठनों भाकियू राजेवाल, भाकियू लखोवाल, भाकियू डकौंदा, जम्हूरी किसान सभा, कुलहिंद किसान, भाकियू दोआबा, भाकियू सिद्धुपुर, भाकियू टिकैत की ओर से प्रशांत भूषण और अन्य को पैरवीकार बनाकर कानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर ली गई हैं। किसान संगठनों ने अब तक की स्थिति पर अपना पक्ष रखने की तैयारी कर ली है।

आठ की वार्ता से पहले 8 बिंदुओं पर सहमति

आंदोलन के दौरान मृत किसानों को श्रद्धांजलि के बाद सोमवार को वार्ता शुरू हुई। “भरोसे” की बात करते हुए सरकार ने 8 बिंदुओं पर सहमति जताते हुए आंदोलन खत्म करने की अपील की। पहला, एमएसपी की लिखित गारंटी। आंदोलनकारी किसान एमएसपी की कानूनी गारंटी पर ही फिर कायम रहें।

दूसरा, एपीएमसी सिस्टम, तीसरा बिजली,चौथा पराली, पांचवां मंडी में समान कर (निजी व सरकारी ), छठा नए विकल्प के साथ मंडी सिस्टम की बहाली, सातवां कांट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े विवाद एसडीएम के साथ-साथ अदालतों में निपटारे का अधिकार, आठवां, कॉरपोरेट का डर और अंदेशा दूर करने का भरोसा।

इनमें से अधिकांश पर दोनों पक्ष रजामंद दिखे। सरकार “भरोसा” के लिए सहमति के इन बिंदुओं की लिखित गारंटी देने और संशोधन को तैयार है। एमएसपी और तीन कानूनों पर फिर कमेटी का प्रस्ताव आंदोलनकारी किसान संगठन कमेटी पर राजी नहीं हैं।

रजामंदी के बीच दो टूक से तल्खी

सरकार ने दोहराया कि तीनों कृषि कानूनों को रद करना नामुमकिन है। बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने शिष्टमंडल के किसान नेताओं से तीनों कृषि कानूनों की आपत्तियों पर बिंदुवार चर्चा का ऑफर दिया। इस पर भाकियू राजेवाल के बलवीर सिंह राजेवाल ने भी दो टूक कहा- हमें तीनों कानूनों की वापसी से कम मंजूर नहीं है। राजेवाल का कहना था कि हमारा संघर्ष संशोधन के लिए नहीं है। बता दें, राजेवाल कांग्रेस हिमायती माने जाते हैं।

वार्ता के दौरान तोमर ने कहा कि किसान हित में इन 40 संगठनों के अलावा अन्य राज्यों के किसान संगठनों से भी सरकार खुले मन से बातचीत जारी रखकर समाधान निकालने का प्रयास जारी रखेगी। इस पर क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉ. दर्शनपाल ने कहा कि देशभर के सभी किसान संगठन एकजुट हैं। सरकार अलग-अलग बातचीत कर के देख ले, हल नहीं निकलने वाला है।

सरकार ने अब तक की बनी सहमति पर विचार कर फिर से अगली बातचीत में गतिरोध खत्म करने का प्रस्ताव रखा। भाकियू डकौंदा के बूटा सिंह बुर्जगिल ने सरकार पर कॉरपोरेट हितैषी का आरोप मढ़ा, तो जम्हूरी किसान सभा के कुलवंत संधु ने कहा कि बार-बार “डिस्कस” का कोई फायदा नहीं, इस पर समय बर्बाद करना फिजूल है। फिर भी काफी मशक्कत के बाद एक और तारीख पर जैसे-तैसे सहमति बन पाई। यह तारीख 8 जनवरी तय हुई। इससे पहले अब 5 जनवरी की पंजाब के किसान संगठनों व संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक पर नजरें टिकी हैं। 8 जनवरी की प्रस्तावित वार्ता के मद्देनजर 6 जनवरी के केएमपी ट्रैक्टर मार्च पर पुनर्विचार के आसार हैं।