
आमतौर पर देखा जाए तो आंखों का फडक़ना एक स्वभाविक बात है, लेकिन जब कभी भी किसी की आंख फडक़ती है तो हमारे घर के बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कोई शुभ या अशुभ घटना होने वाली है। ऐसे में अशुभ घटना से बचने के लिए वह हमें कुछ उपाय भी बताते हैं। सामुद्रिक शास्त्र में बताया गया है कि शरीर के अंगो के अलावा आंखों का फडक़ना भी एक संकेत है, लेकिन आंखों का फडक़ना हर बार अशुभ हो यह जरूरी नहीं। कई बार आंखों का फडक़ना शुभ समाचार मिलने का भी संकेत होता है। सामुद्रिक शास्त्र बताता है कि शुभ अशुभ संकेत इस बात पर निर्भर करता है कि आप की कौन सी आंख फडक़ रही है।
मायोकेमिया

इस समस्या में आंखों का फडक़ना नॉर्मल होता है। जो कभी-कभार होता है और खुद से कुछ देर में ठीक भी हो जाता है। यह समस्या ’यादातर स्ट्रेस, आंखों की थकान, कैफीन के ’यादा सेवन, नींद की कमी या फिर लंबे वक्त तक मोबाइल या कंप्यूटर के ’यादा इस्तेमाल से होती है।
ब्लेफेरोस्पाम

यह समस्या आंखों की मसल्स सिकुडऩे की वजह से होती है। जो आंखों के लिए नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में व्यक्ति को पलकें झपकाते हुए दर्द होता है और कई बार तो आंखों को खोलना भी मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही आंखों में सूजन बनी रहती है, चीजें धुंधला दिखाई देती हैं।
हेमीफेशियल स्पाम
- इस प्रॉब्लम में चेहरे का आधा हिस्सा सिकुड़ जाता है जिसका इसका असर आंख पर भी नजर आता है। पहले तो इसमें आंखे फडक़ती हैं लेकिन बाद में गाल और मुंह की मसल्स भी फडक़ने लगती हैं। यह आमतौर पर किसी तरह के जलन और चेहरे की नसों के सिकुडऩे की वजह से होता है। इस तरह का फडक़ना लगातार बना रहता है।
- यह कोई गंभीर समस्या नहीं है और इसकी वजह से कोई दूसरी परेशानी नहीं होती। इस समस्या के कारणों में आंखों में ड्राईनेस, पलकों में संक्रमण या सूजन, लंबे समय तक स्क्रीन देखना, जिससे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम भी होता है या नींद में कमी या अन्य कारणों से होने वाली थकान हो सकते हैं। इन मामलों में लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स और जेल के प्रयोग की सलाह दी जाती है।
- लेकिन अगर इसका संबंध फेशियल डायस्टोमास से होता है, तो इसमें ऑप्थेलमोलॉजी और न्यूरोलॉजी से जुड़ी जांच कराने की जरूरत पड़ती है, जिनमें न्यूरोइमेजिंग तकनीक का सहारा भी लिया जा सकता है। गौरतलब है कि फेशियल डायस्टोमास में सामान्य असेंशियल ब्लेफरोस्पास्म और बेनिफिशियल स्पास्म शामिल होते हैं।
- ब्लेफरोस्पास्म के लिए बोटुलिनम टॉक्सिन टाइप ए (बोन्टा) सबसे पहले दिया जाने वाला इलाज है। इससे 90 प्रतिशत से ’यादा मरीजों में लक्षणों में सुधार दिखाई देता है। हालांकि, इन इंजेक्शंस के एक से ’यादा सेट्स की जरूरत पड़ सकती है। उचित परिणाम दिखाई नहीं देने पर सर्जरी की सलाह दी जाती है।
यह भी पढ़ें : लंदन में ‘माणक’ राजस्थानी पत्रिका को मिला सम्मान