रजाई से मैं …

रजाई के स्थान पर अपनी सुविधा और जरूरत के अनुसार किसी और का उपयोग किया जा सकता है। कोई चाहे तो पत्तना काम में ले सकता हैं। लिहाफ का प्रयोग भी दौड़ेगा। गूदड़ी या गूदड़ों का उपयोग ठेठ देसी भाषा में। किसी की इच्छा ओढने के अन्य साधन का उपयोग-प्रयोग करने की हो, तो खुल्ली छूट है। इत्मिनान से कर सकता है। रही बात ‘मैं के आगे छोड़े गए खाली स्थान की, तो उसमें अपने-अपने नाम भरे जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पे रजाई से मैं-‘प्यारेलाल अग्रवाल..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

हथाई और रजाई के बीच एक हिसाब से देखा जाए तो काके-बड्डे का भी रिश्ता नही है। कहां रजाई और कहां हथाई। रजाई घर में.. घर के कमरे में। कमरे में बिछे पलंग-माचे में। जरूरी नहीं कि कमरे में पलंग या माचा हो ही, बिछौना फर्श पे भी बिछाया जा सकता है। सर्दी का मौसम ना होता तो रजाई की जगह चादर या मच्छरदानी का उपयोग भी कर सकते थे। ठारी में रजाई जरूरी। हथाई मौहल्ले के एक पर्टिकुलर स्थान पर। घर गली के ठेठ नुक्कड़ पे और हथाई उस पार, तो कहां रजाई और कहां हथाई। इसके बावजूद दोनों को मिलाया गया है तो जरूर इसके पीछे कोई ठोस कारण रहा होगा। कारण ये कि हथाईबाज पंचायती नहीं, हर मसले-मुद्दे पर ठावी चर्चा करते हैं।

रजाई की अपनी जोड़ी है। रजाई का अपना राशन कार्ड है। इसका उपयोग भले ही दो-तीन-चार माह के लिए होता है, पण इसके परिवार के अन्य सदस्यों का साथ बारामासी। कोई अगर बिछौना धरती को कर ले.. अरे आकाश ओढ ले.. की तान छेड़ दे तो बात कुछ और है। फिर सच्चाई तो यह है कि ये लहरियां रील लाईफ में ठीक लगती है, रीयल लाईफ में देखे तो गरीब-गुरबे रजाई से भले ही दूर रह जाएं, गूदड़ी-गूदड़े उनके वास्ते गद्दों से कमतर नहीं। बात करें रजाई परिवार की तो इसपे भी कई लोगों को हैरत हो सकती है।

उनने राज परिवार तो सुना। उनने राजू का परिवार तो सुना। उनने धनराजजी का परिवार तो सुना। रजाई परिवार पहली दफे परगट हुआ। ऐसा आप मानते हैं, पण ऐसा है नहीं। रजाई परिवार अरसों-बरसों से चला आ रहा है। हम-आप के पुरखों के कदम से कदम मिला के चल रहा है मगर किसी ने गंभीरता से गौर नही किया। जरूरत हुई तब बिछाया-ओढा और सुबह समेट के पटक दिया।


जिस प्रकार जूते जुराब का जोड़ा। जैसे साबुन और साबुनदानी की जोड़ी। जैसे पेंट-बुस्केट का जोड़ा। जैसे धोती-कमीज की जोड़ी। ठीक वैसे रजाई और धासिए का जोड़ा। अत्तना-पत्तना की जोड़ी। तकिया-दरी-चद्दर इस परिवार के सदस्य। रात्रिकालीन बिछाऊ-ओढाऊ परिवार हम-आप के परिवार से गूंथा हुआ।

बात करे ‘मै की, तो इसका अर्थ काफी गूढ है। हांलांकि यहां ‘मैं के मायने वो नहीं जिससे दूर रहने की सीख संत-सुजान और बड़े-सयाने देते रहे हैं। उनकी नजर में इसका मतलब घमंड। उनकी नजर में इसका अर्थ अहम। वो कहते हैं मानखों को घमंड-गुमान और अहम से दूर रहना चाहिए। मानने वाले मानते भी है। भतेरे लोग सादा जीवन उच्च विचार को ओढते-बिछाते..पहनते है। भतेरे लोग अमचूर की तरह अकड़े रहते हैं। ऊपर से ठोको तो नीचे ‘टें बोलेगा, फिर भी मैं लाडे री बुआ..। अरे भाई, अहंकार तो लंकेश का भी नही चला, तुम्हारी बिसात ही क्या। मगर ‘बू नहीं जाती। पर यहां वो ‘मैं नहीं, वरन वो ‘मै जिसका उपयोग अपना परिचय अथवा नाम बताने के लिहाज से किया जाता है। दो चार-छह बंदे मिलते हैं तो हाथ आगे बढाकर कहते हैं-‘मैं पेसूमल..। सामने वाला हाथ मिला के जवाब देता है-‘मैं पोटरमल..। उसके बाद आने का परिचय ।


खबरिया चैनल्स में इसका दोहन जोरदार तरीके से किया जा रहा है। मीडियापर्सन अपनी रिपोर्ट दिखाने के बाद कहता है-‘काली पहाड़ी से कैमरामेन बस्तीराम के साथ मैं रूपचंद त्रिपाठी.. उसके बाद अपने चैनल का नाम। अब सवाल ये कि जब वो लोगअपना रिपोर्टिंग स्थल बता सकते हैं तो हम क्यूं नहीं। जब हम रजाई से बोल रहे हैं तो चांदपोल कैसे बता दें।

असल में हुआ यूं कि कोरोनाकाल को देखते हुए शासन-प्रशासन ने अंगरेजी नए साल के स्वागत और गुजरे साल की विदाई समारोह पर पहरे बिठा दिए। पांडु पुलिस सख्त। पार्टी की तो ऐसा कर देंगे। हुल्लड़ मचाया तो वैसा कर देंगे। रात को इत्ती बजे के बाद सड़कों पर दिखे तो खैर नहीं।

बारह बजणी है तब बजणी हैं, पांडु पहले ही बारह बजा देंगे। हांलांकि हमारे जैसे लोगों के लिए इस अंगरेजी साल का वो महत्व नहीं। हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वाला नया साल मानने वालों में से, क्यूं कि समय के साथ बहना पड़ता है लिहाजा अंगरेजी साल भी मना लिया। परिवार के साथ मिल बैठ कर टीवी-सीवी देखा। गरमागरम बड़ों-पकोड़ों का आनंद लिया। दूध-फीणी का भोग लगाया फिर रजाई मे दुबक कर मोबाइल-वाट्सएप और संदेश के जरिए अंगरेजी नए साल की शुभकामनाएं दे दी। आगे जोड़ दिया बिना कैमरामैन क ‘रजाई से मैं..। आप ने ऐसा ही किया हो तो अपना नाम खाली जगह में भर सकते हैं।