गणेश चमुर्थी आज, जानें क्यों प्रसिद्ध है लालबागचा दरबार

लालबागचा दरबार की खासियत
लालबागचा दरबार की खासियत

गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में इसकी अलग ही धूम होती है। गणेश चतुर्थी, महाराष्ट्र का प्रमुख त्योहार है, जिसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बप्पा के स्वागत के लिए कई सार्वजनिक पंडाल लगाए जाते हैं, जहां ढ़ोल- नगाड़ो के साथ गौरी नंदन का स्वागत किया जाता है। इन पंडालों में लालबागचा राजा सबसे मशहूर है। यहां गणपति के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन इतने पंडालों में लालबागचा राजा सबसे मशहूर क्यों हैं? आइए जानते हैं क्या है लालबागचा राजा का इतिहास और इस साल यहां गणेशोत्सव के मौके पर क्या खास हो रहा है।

क्या है लालबागचा राजा का इतिहास

क्या है लालबागचा राजा का इतिहास
क्या है लालबागचा राजा का इतिहास

लालबागचा राजा का मतलब होता है लालबाग का राजा। इसकी शुरुआत के पीछे एक खास कहानी है। 1930 के दशक में औद्योगिकरण के समय वहां के टेक्सटाइल वर्करों को काफी नुकसान हुआ था, तब वे गणपति की शरण में गए थे। उन्हें बाद में एक जमीन का टुकड़ा दिया गया था। लोगों ने इसे बप्पा की कृपा समझा और तभी से उस जमीन का एक हिस्सा गणपति पूजा के लिए समर्पित कर दिया। लालबागचा राजा की मूर्ति बनाने की जिम्मेदारी कंबली परिवार ने अपने कंधों पर ले रखी है। 1934 से लेकर आजतक ये परिवार ही लालबाग के गणपति की मूर्ति बनाते हैं और उसका रख-रखाव करते हैं। इन्होंने गणपति की इस मूर्ति का डिजाइन पेटेंट भी करवाया हुआ है।

क्या है खास

क्या है खास
क्या है खास

लालबागचा राजा पुलटाबाइ चाल में है। हर साल गणेशोत्सव की शुरुआत लालबागचा राजा की पहली झलक से ही होती है। इस साल 15 सितंबर को गणपति के प्रतिमा के प्रथम दर्शन हुए। लालबागचा राजा की इस साल की थीम छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक पर आधारित है। लालबागचा राजा को नवसच गणपति भी कहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि यहां सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहीं कारण है कि गणपति कि दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। लालबागचा राजा की एक और खास बात ये है कि पूरे देश में सबसे लंबे विसर्जन का कार्यक्रम यहीं होता है। दसवें दिन विसर्जन सुबह 10 बजे से शुरू होता है और अगले दिन तक चलता है।

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