भगवान उन्हें हाजा-ताजा रखें

भगवान उन्हें हाजा-ताजा रखें। वो जल्दी ठीक हों। वो शीघ्र तंदुरूस्त हो कर पहले घर और फिर अपनी ड्यूटी पर लौटें। पूरे देश का आशीर्वाद आप के साथ है। हमारी दुआ आप के साथ है। नुगरे और मतलबी लोग आप से क्यूं मिलने आएंगे। वो वही जाएंगे जहां उन्हें भरी परात नजर आती है। आगे चल कर भले ही ‘पलोथन भी उनके हाथ ना लगे मगर नियत भरी-पूरी परात पर। वो धरना पर्यटन पर जा सकते हैं, आप की खैरखबर लेने की फुरसत नहीं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे के साथ प्रार्थना-प्रेयर-अरदास और दुआ का दौर चल रहा था।

अपने यहां आशीष-आशीर्वाद देने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है। पहला आशीर्वाद किस ने दिया। किस को दिया और किस मसले-मुद्दे पे दिया इसका तो पता नहीं। इतना जरूर जानते हैं कि यह प्रथा सैकड़ो-हजारों साल से चली आ रही है। कई बार जो चमत्कार दवा नही कर पाती, वो दुआ करके दिखा देती है। सुधि पाठकों को लग रहा होगा कि हमेशा चासापंथी में अव्वल रहने वाले आज आशीर्वाद से झोली क्यूं भर रहे हैं। वो महज चासे लेते हों, ऐसा नही है। हथाई पर जरूरत के हिसाब से हरेक का वितरण होता है। जिसे लेना है। आओ और ले जाओ। घर पे ‘कांसा पहुंचाने वाला कोई नहीं। वैसे भी यह परंपरा समाप्ति की ओर बढ रही है। जहां है वही है वरना ज्यादातर स्थानों में ढलान की ओर।

‘कांसा पर नई नस्ल को हैरत हो रही होगी। ‘कांसे को ‘हांती कह दो या ‘हांती को ‘कांसा बात एक ‘इज। एक जमाने में किसी के यहां खाना-जीमण होने पर अगले दिन आस-पड़ोस और रिश्तेदारी में बचे हुए भोजन से भरे थाळ पहुंचाए जाते थे। उनमें प्राथमिकता तय हुआ करती थी। कोई स्थानीय रिश्तेदार मौत-मैयत या हारी-बीमारी की वजह से जीमण में नही आ पाए तो उनके यहां पहले ‘हांती पहुंचाई जाती थी।

उसके बाद किसी परिवार से कम लोग आए या जिन के यहां वृद्धावस्था की वजह से कोई ना आ पाया हो उनके यहां ‘कांसा पहुंचाया जाता था। अड़ोसी-पड़ोसी के यहां भी ‘थाळ परोस के भेजे जाते। इस प्रथा के पीछे लॉजिक ये कि कोई ‘खाने से वंचित ना रहे और दूसरा ये कि खाना खराब ना हो। कई लोग तो मेजबानी करने वाले घरों से ‘थाळÓ आने का इंतजार किया करते थे। बाहर से आने वाले मेहमानों की विदाई पर पैकेट्स देने की परंपरा भी थी। आज वो बात नहीं। आओ-जीमो-लिफाफा पकड़ाओ और जैरामजी की। लिफाफे पर आशीर्वाद और बधाई संदेश के साथ अर्पित करने वाले का नाम-पता। घूमा फिरा के बात आशीर्वाद पे ले आए।

अपने यहां समय-काल के अनुसार आशीर्वाद-आशीष देने का प्रचलन है। कई आशीर्वाद सदाबहार। बारामासी। एवरग्रीन। जनमदिन से लेकर विवाहोत्सव के अपने आशीर्वाद। इम्तिहान-इंटरव्यू मे सफल होने के अपने आशीष। यात्रा पे जाने के बखत का अपना आशीर्वाद। जीवता रो। भगवान हाजा-ताजा राखे। दूधो-नहाओ-पूतो फलो। सदा सुहागिन रहो। बाबो भली करे सरीखे आशीर्वाद सदाबहार। प्रणाम करने पर आशीर्वाद मिलता है। पगै लागणा करने पर आशीष मिलता है। सलाम करने पर दुआ मिलती है। इन सब का असर भी होता है। कहा जाता है कि कई बार दवा से ज्यादा असर दुआ-प्रार्थना-और अरदास का होता है। डॉक्टर हाथ झटक दें तो एक बात जरूर कहते हैं-‘मालिक से प्रार्थना करिए।

पर हथाईबाज जिन के लिए दुआ कर रहे हैं उनने हमेशा गालियां खाई। हथाईबाज उन्हें हाजाताजा रखने की कामना कर रहे हैं जिनको ज्यादातर लोग कटके काढ़ते हैं। पर उन्हें सेल्यूट। उन्हें सलाम। उन्हें प्रणाम। उनकी सहनशक्ति को नमस्कार। अगर वो अपने पे आ जाते तो ‘सीन कुछ और ही होता। अगर वो उनके बराबर हो जाते तो सड़कों का रंग बदल जाता, मगर वो खुद लाल हो गए। यहां वो धिन हैं। उनने खुद ने जख्म ले लिए मगर जखम देने वालों की हिफाजत की। विडम्बना देखिए कि हमारे मतलबी नेते जख्म देने वालों के प्रति तो हमदर्दी जता रहे हैं और जो जख्म भुगत रहे हैं उन्हें सहलाने का समय किसी के पास नहीं।

हथाईबाज 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के नाम पर हिंसा फैलाने वाले उपद्रवियों की पत्थरबाजी-लाठीबाजी और तलवारबाजी में घायल हुए पुलिस कर्मियों की बात कर रहे है। उन लोगों ने किसानियत को कैसे कलंकित किया-आखी दुनिया ने देखा। हिंसा में चार सौ के करीब पुलिस वाले घायल हुए। जिन का इलाज चल रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उनकी सुध जरूर ली वरना विपक्ष का एक भी नेता उन्हें देखने नही गया।

ये गंदे लोग ट्रेक्टर स्टंट करने वालों के टेंटों में चले गए। ये नामुराद उत्पातियों के बीच बैठ कर आ गए मगर उन पुलिस वालों के हालचाल पूछने नही गए जिन की वजह से उपद्रवी लाल किले की प्राचीर पर फहरा रहा तिरंगा नही उतार सके। हथाईबाज उन्हीं के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। उनके हाजा-ताजा रहने की दुआ कर रहे हैं। पूरे देश की शुभकामना-आशीर्वाद और आशीष उनके और उनके परिजनों के साथ है। जय हिन्द-जय भारत।