
सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का बेहद खास महत्व है। यह हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव के घमंड को खत्म करने के लिए और ग्रामीणों को भगवान इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए पूरे गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था, तभी से गोवर्धन पूजा का विधान है।

इस शुभ दिन पर गोवर्धन पर्वत और गौ माता की पूजा का भी विशेष महत्व है। हर साधक को यह पूजा अवश्य करनी चाहिए। कहा जाता है, जो लोग ऐसा करते हैं भगवान उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। ऐसे में विधि अनुसार, पूजा के बाद गोवर्धन पूजा का समापन श्री गोवर्धन आरती से करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
श्री गोवर्धन महाराज की आरती ।।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,
तेरी झाँकी बनी विशाल।।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।।
करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।