हो सकता है टू के बाद थ्री-फॉर-फाइव का नंबर भी आ जाए। संख्या बढ भी सकती है। लोगों के मन में इतनी भड़ास है कि निकलने के वास्ते मचल रही है। जैसे हम बिलबिला रहे हैं, वैसे भड़ास भी बिलबिला रही है। ये कैसी विडंबना है कि महाशक्तियों की आंखों में आंखें डालकर बात करने का दम भरने वाले तेल कंपनियों के सामने नतमस्तक हो के खड़े है। कारण- वजह चाहे कुछ भी हो। अंदरखाने क्या खिचड़ी पकी अथवा पक रही है। उससे आम आदमी को कोई मतलब नहीं। हम तो सिर्फ यही चाहते हैं कि-‘अब की बार तेल कंपनियों पे वार..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
मन की भड़ास और भड़ास टू पढते ही समझने वाले समझ गए होंगे कि धारा का रूख किस ओर जाने वाला है। पाठक बड़े समझदार हैं, वो शब्दों की धार देखकर समझ जाते है कि कौन क्या कहने वाला है और कहने के पीछे उस का मकसद क्या है। उद्वेश्य साफ-सुथरा हो तो पता चल जाता है, मैला-सूगला हो तो भी उनकी नजर से बच नही सकता। यहां तो खुली किताब है। जो चाहे पढ सकता है। कभी भी पढ सकता है। खुल्ला खेल खिलाड़ी का। सच बात कहने से क्यूं डरना-कैसा डरना और किस से डरना। सच को तकलीफ आ सकती है, आखिर में जीत उसी की होवे है।
हथाईबाजों ने कल मन की भड़ास शीर्षक से छपी हथाई में पेटरोल-डीजल की बेकाबू होती जा रही कीमतों को लेकर केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और राज्य की अशोक गहलोत सरकार को जम के भूंडे दिए थे। आज भड़ास टू में एक्शन री-प्ले। जरूरत पड़ी तो थ्री- फॉर-फाइव का उपयोग भी किया जा सकता है। जब फिल्मों, कैसेट्स और पुस्तकों के आगे टू-थ्री लग सकता है, तो भड़ास के आगे क्यूं नहीं। जबकि इसके लिए तो कोई सीमा या गति भी निर्धारित नही है। एक यही तो बाकी रह गई है, वरना आज आखा देश किसी ना किसी बेबसी-मजबूरी में बंधा नजर आ रहा है। भड़ास के दरवाजे खुले। जिसे देखो, वो इसी में लगा हुआ है। महंगाई के इस गला काटू बखत में जो चीजें सस्ती हैं, उनमें भड़ास भी शामिल है।
कई लोगों को ‘सस्ती पे हैरत हो रही होगी। भाई एलियन के देश से आए हो क्या, जो सस्तीवाडे की बात कर रहे हैं। यहां तो सस्तीवाड़ा ढूंढे से भी नही मिल रिया। महंगाई ने अगणितों की ‘हगाई शुरू करवा दी है। भतेरों की बंद करवा दी। यहां लोचा। न खाऊंगा-ना खाने दूंगा, तो भाई शौचालयों पर करोड़ों-अरबों क्यूं फूंके। खैर, फिलहाल पटरी बदलने का नहीं। बात मुंगीवाड़े में सस्तीवाड़े की चल रही है तो उसी पे आते हैं। हथाईबाज उस फेहरिस्त में शामिल नाम पहले भी गिना चुके हैं। फिर गिना देंगे तो कौन सा धोनी 99 पे आउट हो जाएगा। बातें बनाना एक दम सस्ता। किसी की इज्जत उछालना एकदम सस्ता। मां-बहन-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करना साव सस्ता। जब गुरूजी छठी क्लास की छात्रा को गर्भवती बना सकतेहै तो समझ ल्यो नीचता की पराकाष्ठा पार हो गई। किसी के मांजणे में धूड़ डालना सस्ता। अब उसमें भड़ास का नाम भी जुड़ गया। आज जुबान गुस्सा उगल रही है, ढंगढांग का विकल्प मिल जाए तो रास्ता बदल भी सकता है।
हथाईबाजों ने राज्य की गहलोत सरकार को इस वास्ते भूंडे दिए कि वो आग में पेटरोल डालने का काम कर रही है। पेटरोल-डीजल पर सबसे ज्यादा जीएसटी राजस्थान में है। पेटरोल पे 36 रूपए और डीजल पे 26 रूपए प्रति लीटर और कांगरेसी मोदी सरकार को कोस रहे हैं। मोदी सरकार को इस लिए भूंडे दिए कि वो तेल कंपनियों के आगे सिर झुका के खड़ी है। पेटरोल-डीजल के दाम सौ रूपए लीटर के बाहर निकलना कोई मामूली बात नही है। इन के दामों का असर आम जरूरत की कीमतों पर पड़ता है और पड़ भी रहा है। जैसे पेट खराब तो तंदुरस्ती खराब, वैसे पेटरोल-डीजल महंगा तो हर सामान महंगा। यात्रा और आवागमन के साधन तकातक महंगे।
हथाईबाजों को भाजपा के उन ‘लिफळे नेतों के बयान पर हैरत हो रही है, जो पेटरोल मे आग लगने का कारण पेटरोलियम कंपनियों को बता रहे हैं। कह रहे हैं-सरकार का उनपे कोई नियंत्रण नही है। धूड़ है ऐसे बयानों पे। लानत है ऐसी लाचारी पे। एक तरफ तुम 56 इंच के सीने पे इतरा रहे हो और दूसरी तरफ कंपनियों के आगे मुंंह पिलका कर के खड़े हो। हमने चीन को उसकी औकाद बता दी। हम अमेरिका-रूस जैसी महाशक्तियों को लाइन पे ले आए और यहां तेल कंपनियां सरकार के माथे पर नाच रही है। पेटरोल-डीजल के साथ रसोईगैस सिलेंडर के दाम भी दुगुने हो गए और तुम तमाशा देख रहे हो। आज पेटरोलियम कंपनियों को खाल से बाहर किया, कल को खाद्य तेल मिलों- चीनी मिलों-दाल मिलों और धान-गेहूं-मिर्च-मसाले वालों को भी छूट मिल गई और वो भी बेलगाम हो गई तो 56 इंच का सीना 18 इंच का हो जाएगा। जब तुम तेल कंपनियों को नियंत्रित नही कर सकते तो तुम्हें सरकार में बने रहने का कोई अधिकार नही है। बड़बोलापन छोड़ो। खूब हो गई लच्छेदार भाषणबाजी। भाईयों-बहनों को शीशी में खूब उतार लिया। जैसे चीन को लातें दी वैसे तेल कंपनियों को भी दो, तो जाने। वरना भड़ास थ्री-फोर-फाइव तैयार है।