इतिहास पुरुष डॉक्टर साहब

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती

क्या कोई कल्पना कर सकता है कि आज से सौ वर्ष पहले महज पांच छह बाल स्वयंसेवकों से शुरु हुआ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन है। दुनियाभर में अलग अलग नामों से इसकी संस्थाएं हैं, जो समाज, राष्ट्र और संस्कृति के संरक्षण और उत्थान के लिए काम कर रही हैं। संगठित समाज ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। इसी ध्येय को लेकर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी। वर्ष प्रतिपदा पर एक अप्रेल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे डॉ. हेडगेवार एक प्रखर राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल संगठनकर्ता थे। उन्होंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत को एक संगठित, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना था। उनका जीवन पूरी तरह से राष्ट्र सेवा और समाज सुधार के लिए समर्पित था। डॉ. हेडगेवार का प्रारंभिक जीवन संघर्षों से भरा रहा।

बाल्यकाल में ही उन्होंने ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों को समझ लिया था। प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में प्राप्त करने के बाद, वे कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करने गए। वहाँ उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया और अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति के विचारों को अपनाया। लेकिन आगे चलकर उन्होंने यह महसूस किया कि केवल सशस्त्र क्रांति से स्वतंत्रता प्राप्त करना और राष्ट्र को संगठित करना संभव नहीं है। इसीलिए उन्होंने एक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन की नींव रखी, जो बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में स्थापित हुआ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना

संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में हुई। हेडगेवार ने महसूस किया कि भारतीय समाज बिखरा हुआ है और आत्मसम्मान की कमी के कारण गुलामी की स्थिति में है। उन्होंने एक ऐसे संगठन की आवश्यकता को महसूस किया जो समाज को एकजुट कर सके, अनुशासन सिखा सके और राष्ट्रभक्ति की भावना का संचार कर सके। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल उद्देश्य भारत को एक संगठित, सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना था। संघ की कार्यप्रणाली अनुशासन, स्व-निर्माण और सेवा पर आधारित थी। संघ की शाखाओं में स्वयंसेवकों को शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से तैयार किया जाता था ताकि वे समाज के हर क्षेत्र में योगदान दे सके।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई प्रत्यक्ष राजनीतिक उद्देश्य नहीं था, लेकिन डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़े रहे, लेकिन यह महसूस किया कि सिर्फ राजनीतिक आंदोलनों से भारत की स्वतंत्रता और समाज का पुनर्निर्माण संभव नहीं होगा। उन्होंने 1905 के बंग-भंग आंदोलन और 1920 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लिया और कई बार जेल गए। संघ ने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान भी कई स्थानों पर सहयोग किया। उस समय संघ के स्वयंसेवकों को एक प्रतिज्ञा लेनी होती थी- ‘मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रमाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूं।’

डॉक्टर हेडगेवार ने घोषणा की- ‘हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।’ जब कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया तो डॉक्टर हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी 1930 को सायंकाल 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाने का आदेश दिया। सभी शाखाओं के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश पहनकर नगरों में पथ संचलन निकाले और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़कर भाग लेने की प्रतिज्ञा दोहराई। गौरतलब है कि संघ ऐसी पहली संस्था थी जिसने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता का उद्देश्य रखा था।

1930 से पहले पूर्ण स्वतंत्रता का नाम तक नहीं लिया गया था। डॉक्टर हेडगेवार ने महात्मा गांधी के सभी सत्याग्रहों और आंदोलनों में स्वयंसेवकों को भाग लेने की अनुमति दी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आयोजित हुए असहयोग आंदोलन में स्वयं डॉक्टर हेडगेवार ने छह हजार से अधिक स्वयंसेवकों के साथ ‘जंगल सत्याग्रह’ किया था। इसके लिए उन्हें नौ मास के सश्रम कारावास की सजा हुई थी। इसी प्रकार 1942 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ में संघ के स्वयंसेवकों ने अपने सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर के आदेशानुसार हजारों की संख्या में भाग लिया था।

हिंदू संगठन की संकल्पना

डॉ. हेडगेवार का मानना था कि भारत की आत्मा उसकी हिंदू संस्कृति में बसती है। वे किसी भी जाति या संप्रदाय के खिलाफ नहीं थे, बल्कि उनका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करके राष्ट्र को सशक्त बनाना था। उनका विचार था कि यदि हिंदू समाज एकजुट और संगठित होगा, तो वह पूरे राष्ट्र को सशक्त बनाने में सक्षम होगा। उन्होंने हिंदू समाज में फैले जातिवाद, आपसी भेदभाव और कमजोर आत्मविश्वास को दूर करने के लिए संघ को एक माध्यम बनाया। संघ का यह विचार था कि भारत को पुनः “विश्व गुरु” के रूप में स्थापित करने के लिए भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।

राष्ट्र निर्माण में संघ

संघ ने स्वतंत्रता के बाद भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपदा प्रबंधन और सेवा में संघ ने प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, महामारी आदि में सेवा कार्य किए। इसी तरह शिक्षा और संस्कार संघ ने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की, जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। संघ ने भारतीय संस्कृति, भाषा और राष्ट्रीय मूल्यों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक समरसता के माध्यम से संघ समाज में जातिवाद और छुआछूत को मिटाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। संघ युवाओं में अनुशासन, शारीरिक शिक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना विकसित करने का कार्य किया। डॉ. हेडगेवार का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके विचार और संगठन शक्ति ने भारतीय समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। उनके प्रयासों से भारत में एक मजबूत और राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास हुआ, जो आज भी समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव बना रही है।

मुरारी गुप्ता
मुरारी गुप्ता

– मुरारी गुप्ता