
होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है, जो मानती है कि शरीर खुद को ठीक कर सकता है। होम्योपैथी दवाओं द्वारा काफी सालों से बीमारियों का उपचार किया जा रहा है, लेकिन हां कोरोना के बाद से लोग उपचार को और ज्यादा अपना रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि इसमें किसी तरह के साइड इफेक्ट की संभावना कम होती है। दुनियाभर में किसी बीमारी के इलाज के लिए एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी ये चार तरह की चिकित्सा पद्धति अपनाई जाती है। 1700 के अंत में जर्मनी में इस चिकित्सा को विकसित किया गया था, जिसे आज भी कई यूरोपीय देश फॉलो कर रहे हैं। भारत में भी होम्योपैथी दवाओं से कई लोगों को बीमारियों को ठीक करने में मदद मिली है।
विश्व होम्योपैथी दिवस का इतिहास

डॉ. सैमुअल हैनीमैन की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। ये एक जर्मन चिकित्सक थे और इन्हेें ही होम्योपैथी का संस्थापक भी कहा जाता है। जर्मन चिकित्सक और केमिस्ट सैमुअल हैनीमैन (1755-1843) द्वारा व्यापक रूप से सफलता पाने के बाद 19वीं शताब्दी में होम्योपैथी को पहली बार प्रमुखता मिली, लेकिन इसकी उत्पत्ति 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। हैनीमैन उन चिकित्सा तरीकों और दवाओं के खिलाफ थे जो शरीर पर साइड इफेक्ट डाल रहे थे। उनके इसी सोच ने चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ ऐसा खोजा, जिससे उन्हें होम्योपैथी के संस्थापक के रूप में पहचान मिली।
विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 की थीम

हर राल इस दिन को एक खास थीम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। साल 2024 के लिए थीम है- “होम्योपरिवार: एक स्वास्थ्य, एक परिवार साल 2023 में इसकी थीम थी- ‘होम्योपैथी : पीपल्स च्वॉइस फॉर वेलनेस’
विश्व होम्योपैथी दिवस का उद्देश्य
विश्व होम्योपैथी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य चिकित्सा की इस अलग प्रणाली के बारे में लोगों में जागरूकता लाना है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिल सकें।
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