भारत में कैसे प्रचलन में आई बिरयानी, यह है इसका इतिहास

भारत में बिरयानी का इतिहास
भारत में बिरयानी का इतिहास

बिरयानी की हांडी की महक से ही उसके लाजवाब स्वाद का पता लगाया जा सकता है। इसके बाद आपके पैर अपने आप बिरयानी की दुकान पर पहुंच जाएंगे, फिर चाहे भूख लगी हो या नहीं। भारत के अलग- अलग राज्यों में बिरयानी बनाने का तरीका अलग है और इसी वजह से कई शहरों की बिरयानी अपनी अलग खासियतों के लिए मशहूर हैं। जितनी सुपर टेस्टी बिरयानी होती है, उसका इतिहास भी उतना ही मजेदार है। आज हम निकलेंगे दिल खुश कर देने वाली बिरयानी के ऐतिहासिक सफर पर, जहां हम इसकी हिस्ट्री के साथ इसके अलग-अलग किस्मों के बारे में भी जानेंगे।

भारत में बिरयानी का इतिहास
भारत में बिरयानी का इतिहास

भारत ने कई आक्रमणकारियों को देखा है और प्रत्येक आक्रमणकारियों के साथ यहां अलग-अलग संस्कृति और नए-नए व्यंजन आते गए। तुर्क, अरब, फारस और अफगान जैसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत में दावतों की संस्कृति पेश की। भारत जिस मुगलई व्यंजन के लिए प्रसिद्ध है, उसका विकास 15वीं शताब्दी से लेकर लगभग 19वीं शताब्दी तक मुगलों के शासनकाल के दौरान हुआ। मुगलों ने खाना पकाने को एक कला के रूप में पेश और भारत को बिरयानी, पिलाफ और कबाब जैसे कई स्वादिष्ट व्यंजन मिले। माना तो यह भी जाता है कि पारंपरिक रूप से मटन और चिकन बिरयानी के रूप में बनाया जाने वाला यह व्यंजन उपमहाद्वीप में अरब और फारसियों द्वारा पेश किया गया था।

माना जाता है कि बिरयानी का इतिहास भी मुगलों से जुड़ा हुआ है। हालांकि, इस बात के कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य यह भी हैं कि मुगल आक्रमण से पहले भी भारत में इसी तरह के चावल के अन्य व्यंजन थे। 2 ई. में तमिल में “ऊन सोरू” नामक चावल के व्यंजन का उल्लेख मिलता है। ऊन सोरू चावल, घी, मांस, हल्दी, धनिया, काली मिर्च और तेज पत्ता से बनता था और इसका उपयोग सैन्य योद्धाओं को खिलाने के लिए किया जाता था।

भारत में बिरयानी का इतिहास
भारत में बिरयानी का इतिहास

प्रसिद्ध यात्री और इतिहासकार अल-बिरूनी ने मुगलों से पहले भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाले सुल्तानों के दरबार में भोजन का सटीक वर्णन किया है। इनमें मुगल बिरयानी जैसे चावल के व्यंजनों का भी जिक्र है। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस व्यंजन को प्रेरित और लोकप्रिय इस्लामी फारसियों ने बनाया।

बिरयानी शब्द कहां से आया?

बिरयानी शब्द फ़ारसी शब्द बिरियन से आया है जिसका अर्थ है खाना पकाने से पहले तला हुआ।

बिरयानी की कहानी

कुछ लोगों का यह कहना है कि बिरयानी की उत्पत्ति ईरान (जिसे पहले फारस के नाम से जाना जाता था) में हुई थी। इस जायकेदार डिश को लेकर एक दिलचस्प कहानी यह भी है कि इस व्यंजन की उत्पत्ति शाहजहां की रानी मुमताज महल ने (1593-1631) में की थी, जिनकी याद में ताज महल का निर्माण हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि वह एक बार सेना की बैरक में गईं और वहां सेना के जवानों को अल्पपोषित पाया। फिर उन्होंने रसौइये से एक विशेष व्यंजन तैयार करने को कहा, जो संतुलित पोषण प्रदान करता हो और इस तरह से बिरयानी की उत्पत्ति हुई।

वहीं, एक अन्य कहानी यह भी प्रचलित है कि जब अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता में अपदस्थ कर दिया, तो कलकत्ता बिरयानी का निर्माण हुआ। दूसरी ओर, उत्तरी भारत में छोटे क्षेत्रों पर शासन करने वाले निज़ामों ने हैदराबादी बिरयानी और अर्कोट नवाब बिरयानी जैसे बिरयानी को क्षेत्रीय रूप देते हुए प्रोत्साहित किया। मुगलों की बिरयानी रेसिपी आज भी उन जगहों पर पाई जा सकती हैं, जहां उनके साम्राज्य का दबदबा था।

एक अन्य कहानी पर विश्वास करें, तो बिरयानी को तुर्क-मंगोल विजेता, तैमूर द्वारा वर्ष 1398 में भारत लाया गया था। वहीं, हैदराबाद के निज़ाम और लखनऊ के नवाब भी इस व्यंजन की सराहना के लिए जाने जाते हैं। खैर, बिरयानी के पीछे कहानी कुछ भी हो, यह सच नहीं बदल सकता कि इस डिश ने शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के बीच में अपनी एक खास जगह बना ली है और विशेष मौकों को यादगार और स्वाद से भरपूर बनाने की जिम्मेदारी बिरयानी को ही दी जाती है। परंपरागत रूप से, बिरयानी को मिट्टी के बर्तन में कोयले पर पकाया जाता था। हालांकि, बदलते समय के साथ इसे पकाने की तकनीक में भी बदलाव आया है।

बिरयानी कितने तरह की होती है?

बिरयानी के कई किस्मों मौजूद है और यह सभी स्वादिष्ट हैं।

  • मुगलई बिरयानी
  • लखनवी बिरयानी
  • कलकत्ता बिरयानी
  • बॉम्बे बिरयानी
  • हैदराबादी बिरयानी
  • बैंगलोरियन बिरयानी
  • थालास्सेरी बिरयानी

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